रजनी का करनाल का किस्सा तो आप पढ़ चुके है अब आगे :-
आपको इंतज़ार होगा की मैं आपको बताऊँ की मैं (आभा) और रजनी कब करनाल गयी और कैसा हमारा वक़्त गुज़रा, कैसी रही हमारी चूत और गांड की चुदाई ।
वो कहते हैं न की अभी दिल्ली दूर है – हमारे लिए भी करनाल जाने से पहले अच्छा खासा चुदना लिखा था। करनाल जाने से पहले जो हमारी चूत और गांड की रगड़ाई हुई वो भी कम दिलचस्प नहीं है।
लेकिन जिस रात रजनी ने अपनी आप बीती सुनाई, उस रात क्या हुआ, ये भी अपने आप में बहुत ही दिलचस्प किस्सा है।
रजनी की आपबीती सुन कर मेरी चूत में आग लग गयी थी और गांड का छेद फड़क रहा था। हालत रजनी की भी कुछ ऐसी ही थी। रात को लंड मिल नहीं सकता था इसलिए हमने आपस में ही एक दूसरे की चूत और गांड को ठंडा करना का फैसला किया।
“ये साला चुदाई का चस्का भी अजीब है “।
नंगी हो कर एक दुसरे के ऊपर 69 का पोज़ बना कर लेट गयी – मतलब मेरी चूत उसके चेहरे पर और उसकी चूत मेरे चेहरे पर। एक दुसरे की चूत हम चाटने लगी और पीछे गांड में उंगली घुसेड़ने लगी।
रजनी बोली, “आभा कुछ और करें, चाटने वाटने और उंगली बाज़ी से कुछ नहीं होने वाला, आज रात की ही तो बात है कि कैसे चूत की आग बुझाई जाए। कल तो लंड मिल ही जायेंगे “।
मन तो मेरा भी ऐसा ही हो रहा था। हम इधर उधर तलाश करने लगी की कुछ ऐसा मिल जाये जो लंड से मिलता जुलता हो और उसे अपने अंदर करके रात गुजार लें।
तभी मुझे याद आया की हम इम्पोर्टेड बालों में कंघी करने वाले ब्रश लायीं थी जिनके हैंडल लंड से मिलते जुलते थे। ढाई इंच मोटे, साढ़े पांच इंच लम्बे और हैंडल के नीचे वाले हिस्से पर उभरा हुआ गोल सिरा जो कहने को तो ब्रश को हाथ से छूटने से रोकने के लिए था मगर लंड के टोपे की तरह दीखता था – पूरी तरह खड़े लंड की तरह ही था। काम चलने के लिए बढ़िया जुगाड़ – यों भी ढाई तीन इंच लम्बी उंगली से तो अच्छा ही था।
मैंने रजनी को ब्रश के बारे में बताया, और रजनी उछल पड़ी, “अरे आभा कमाल का दिमाग है तेरा, अभी का काम तो चल गया”।
हम उठी, नंगी ही थी। उठ कर ब्रश लाई और साथ ही क्रीम भी ले आयी – चूत कि लिए तो क्रीम की ज़रूरत नहीं पड़ती, गांड में पिलाई के लिए क्रीम चाहिए ही होती है।
वो बात अलग है की कोइ गांड मरवाने का ज़्यादा ही शौक़ीन हो तो उसकी गांड का छेद ढीला हो जाता है – मगर थोड़ी क्रीम तो फिर भी लगानी ही पड़ती।
“लड़कियों कि ऐसा ऐसा विदेशी माल है मार्किट में कि हर चीज़ दो दो काम करती है – बनाया ही इस तरह जाता है ।
अब लिपस्टिक को ही लो। लिपस्टिक के ऊपरी खोल को हटाने वाले ढक्कन का सिरा गोल उभरा हुआ और नरम रबड़ का बनाया जाता है। ऊपर छोटे छोटे दाने उभरे होते हैं – मतलब जब टॉयलेट करने बैठो तो ये रबड़ वाला सिरा अपने बुर – भग्नाशा या चूत के दाने पर रगड़ो। क्या मज़ा देती है।
मेरे पास भी ऐसी एक लिस्टिक है। बड़ा मजा देती है – मैं तो कहती हूँ सब लड़कियों को यह रखनी चाहिए “।
सारी तैयारी कर के हम बिस्तर पर आ गयी।
“अब”, मैंने रजनी से पूछा ?
रजनी बोली, “अब क्या, शुरू करते हैं। तू बिस्तर पर लेट जा, मैं तेरे ऊपर लेटती हूँ और फिर करते हैं आगे का काम “।
मैं बिस्तर पर लेट गयी, मेरा ब्रश मेरे हाथ में था। रजनी मेरे ऊपर इसतरह लेट गई की उसकी चूत मेरे चेहरे के ऊपर थी और उसका चेहरा मेरी चूत के ऊपर था। रजनी ने ब्रश को मेरी चूत के अंदर घुमाया, मेरी चूत के लेसदार पानी से हैंडल गीला हो गया। रजनी ने धीरे धीरे हैंडल मेरी चूत में डाल दिया।
जैसे ही ब्रश पूरा अंदर गया, आनंद आ गया। मैंने भी हैंडल रजनी की चूत में डाल दिया। दोनों एक दुसरे को हैंडल से चोदने लगी।
थोड़ी देर में मैंने कहा रजनी, “गांड में डालो ना “। जहां मेरी गांड रजनी की आँखों के सामने थी, वहीं नीचे लेटी होने के कारण मेरी गांड रजनी की आँखों के सामने नहीं थी, उसे मेरी गांड में हैंडल डालने में परेशानी आ रही थी।
मैंने कहा ,”ठहरो। मैंने मोटा तकिया अपनी कमर के नीचे रखा, अब मेरी गांड उठ गयी थी और रजनी उसे देख सकती थी। इस सारे क्रियाकर्म के दौरान हैंडल मेरी चूत में ही रहा। रजनी ने हैंडल चूत में से निकाला और क्रीम लगा कर मेरी गांड में घुसेड़ दिया।”आअह”, सच कहूँ बड़ा ही मज़ा आया ।
मैंने रजनी से पूछा, “रजनी तेरी गांड में भी डालूं ” ?
“डाल दे आभा, नेकी और पूछ पूछ “? मैंने भी हैंडल पर क्रीम लगाई और रजनी की गांड कि अंदर में हैंडल पेल दिया।
मैंने रजनी से पूछा, ” रजनी कैसा लग रहा है, दीपक के लंड जैसा ? ”
बोली, “अरे कहाँ, दीपक के लंड की तो बात ही कुछ अलग है। इस बार जब हमारे बॉय फ्रेंड आएंगे तो उन्हें ही कहेंगे गांड चोदने को। साले चूत मार कर चलते बनते हैं, गांड की तरफ देखते भी नहीं “।
“साले चूत मार कर चलते बनते हैं, गांड की तरफ देखते भी नहीं “। रजनी की ये बात सुन कर मेरी हंसी छूट गयी।
खैर , काफी देर ऐसे की करते रहे हम, कभी ब्रश चूत में कभी गांड में। थोड़ी देर की रगड़ा पच्ची के बाद मुझे मज़ा आने लगा, उस समय ब्रश मेरी गांड में था। मैंने रजनी को कहा, “रजनी मैं छूटने वाली हूँ, ब्रश चूत में डाल कर चूत की चुदाई कर “।
रजनी ने वही किया। पांच सात मिनट की घिसाई चुदाई के बाद मेरा पानी छूट गया। मैंने रजनी का हाथ पकड़ कर ब्रश चूत से बहार निकाल लिया।
पता नहीं रजनी के दिमाग में क्या आया, रजनी ने वो ब्रश भी मेरे हाथ में पकड़ा दिया।
मैं समझ गयी रजनी क्या चाहती है – ”अपने दोनों सूराख, चूत और गांड, दोनों बंद चाहती है। एक ब्रश गांड में गया ही हुआ था दूसरा मैंने उसकी चूत में घुसेड़ दिया।
एक ब्रश चूत में एक गांड में, मैं दोनों अंदर बहार कर रही थी। रजनी की चूत का पानी मेरे मुंह पर गिर रहा था – गरम गरम, नमकीन नमकीन।
“अब समझ आया लड़की को नमकीन भी क्यों कहते हैं “।
थोड़ी ही देर में रजनी भी झड़ गयी।
दोनों निढाल हो कर बिस्तर पर लेट गयी। पंद्रह मिनट के बाद दोनो उठी और बाथ रूम में पेशाब करने गयीं।
मैं सीट पर बैठ पेशाब करने ही वाली थी की रजनी बोली , “रुक”।
मैंने निकलता पेशाब रोक लिया। “क्या हुआ “, मैंने पूछा।
हुआ कुछ नहीं, सरोज की याद आ गयी (पिछली कहानी **आप बीती – रजनी की चुदाई, उसी की जुबानी ** भाग एक और भाग दो पढ़ें )।
एक सेकण्ड को तो मैं नहीं समझी, फिर सरोज और रजनी की मूत वाली बात याद आ गया – मैंने पुछा,”पहले मैं कि पहले तुम “।
” तू बैठ जा “। रजनी बोली। और मैं बैठ गयी – अपना चेहरा ऊपर की तरफ उठा दिया। रजनी ने अपनी दोनों टांगें चौड़ी की, अपनी चूत को बिलकुल मेरे मुंह के ऊपर लाई, और सरररररर , पूरा मूत सीधा मेरे मुंह के अंदर जा कर मेरी चूचियों से होता मेरी चूत पर गिरने लगा। दो मिनट तक रजनी पेशाब करती रही। “कितना पेशाब किया, कोइ हिसाब नहीं “।
फारिग हो कर रजनी हटी और नीचे बैठ गयी। अब मेरी बारी थी। मैंने भी गरम गरम पेशाब धार उसके ऊपर छोड़ दी।
नहा धो कर बाहर निकली और एक ही बिस्तर पर नंगी ही सो गयी। क्या पता रात को फिर मूड बन जाए। कौन कपड़े उतारने चढ़ाने का झंझट करे। मगर हम दोनों रात की सोई सुबह ही उठी।
एक बार फिर नहा कर तैयार हो कर कालेज जाने की तैयारी करने लगी।
“दिमाग में तो चुदाई घूम रही थी, पढ़ाई पता नहीं कैसे होगी “।