मेरी हिंदी सेक्स कहानी के पिछले पार्ट में आपने पढ़ा, कि आंटी ने मुझे बहाने से अपने घर बुलाया। फिर मैंने आंटी को अपने लंड का पानी पिलाया। अब आगे-
फिर आंटी खड़ी हुई, मेरे चेहरे को अपने पेट पर प्यार से दबाया, और पूछा, “कितनी देर के लिए भेजा है मम्मी ने तुझे? अच्छे से मेरी चूत चूस कर ही जाना प्लीज़!” “ओके आंटी, चूत तो मुझे चूसनी ही है। लेकिन सोच रहा हूं कि अगर चूत चूस कर घर गया तो मम्मी फ़ौरन मेरे मूंह से निकल रही महक से पहचान लेगी। क्योंकि चूत के पानी की खुशबू तो छुपाये नहीं छुपती किसी औरत से! क्या करूं?”
“बड़ा माहिर निकला यार तू तो। ये तो शायद मैंने भी ना सोचा होता। लेकिन तू बैठ, मैं इसका अभी इंतेज़ाम करती हूं।” “और सुना है चित्रा अब अपना ग्रेजुएशन यहां रह कर ही करना चाहती है। मज़ा आ गया तुम दोनों को तो, क्यों? मैं तो परसों जा रही हूं। मगर जाने से पहले तेरे साथ और दो-चार घंटे नंगे ही बिताने हैं। तेरा लौड़ा बड़ा ही प्यारा है, और तू तो चूत में उंगली करने में भी कुदरती माहिर है।
मैंने कइयों से करवाई है, लेकिन तेरी तो बात ही बिलकुल अलग है। और हमारे पास सिर्फ कल का टाइम है। एक बात और, मैं तुझे चूत के अंदर उस जगह के बारे में भी बताउंगी जिस जगह को अगर तू चूत में उंगली करते वक्त छू ले, तो औरत को इतनी जोर का ओर्गास्म आएगा कि वो दिन में कई बार खुद ही अपनी चूत खोल कर तेरे सामने बैठ जाएगी। तो कल तू खुद ही टाइम निकाल कर मेरे पास आजा तो तुझे जी भर के चूत, चूची, चोदन,और ज्ञान, मिल जाएगा।”
आंटी तो इस लेक्चर के बाद ना जाने किस इंतेज़ाम के लिए अपने किचन में चली गयी। लेकिन उसके लेक्चर और उसके इंतेज़ाम के बारे में सोच कर मेरे मुन्ने मियां फिर फुदकने की तैयारी में महसूस हुए मुझको। मैंने भी उसकी मदद में अपनी जांघें और खोल ली, और थूक लगा कर टोपे से फोरस्किन को दो-चार बार आगे-पीच सरका कर फिर से खड़ा करने की तैयारी कर ली।
आंटी भी चूत की महक को छुपाने का धाकड़ इंतज़ाम करके लाई थी, मिक्स-फ्रूट जैम! वो खुद सोफे पर बैठ गयी और मुझे ज़मीन पर बिठाया, जांघें चौड़ी की जिससे खुली घुंगराले काले बाल वाली गीली चूत मेरी नाक से सिर्फ 4-5 इंच दूर थी। फिर मुझको जैम की शीशी देकर कहा, “ले जैम लगा, और मज़े से चूस मेरी क्लाइटोरिस और पूरी चूत। अब तेरी मम्मी को लगेगा जैसे मेरे यहां तू सैंडविच खा के आया है, चूत चूस कर नहीं।”
तो जनाब हमने भी जैम भी खाया और चूत भी जम के चूसी! आंटी का या तो मज़ा लेने का अंदाज़ निराला है, या फिर मैं पैदायशी माहिर हूं मज़ा दिलाने में! आंटी के चूतड़ जैसे अपने-आप ऊपर उठ रहे थे, दोनों हाथ से मेरे सर को पकड़े हुए इतनी ज़ोर से पूरी खुली चूत पर दबा रहे थे, कि मुझे मुश्किल से सांस आ रही थी।
उसके पेट के मस्सल कभी टाइट तो कभी ढीले हो रहे थे। लेकिन सबसे ज़्यादा मज़ा तो तब आया जब लेटी हुई आंटी अचानक उठी, मेरा हाथ पकड़ कर मेरी हथेली ऊपर की, और बीच वाली उंगली चूत के छेद में घुसवा ली। फिर बोली, “हां, धीरे-धीरे अंदर-बाहर करते हुए मेरी चूत के छेद में ऊपर की तरफ एक दाना-सा होगा। उसे खोज और धीरे-धीरे रगड़।”
जैसा आंटी ने कहा वैसा करने से चूत के छेद में करीब डेढ़ इंच अंदर छोटा सा बम्प महसूस हुआ तो मैंने पूछा “यहां?” आंटी के हाव-भाव देख कर जवाब अपने आप ही मिल गया। उसकी जांघों की कम्पन, सर हिला-हिला कर तड़पना, और गले के बहुत अंदर से निकलती ननणणन जैसी लगातार आवाज़, और आखिर में पसीने दिला देने वाला ओर्गास्म।
ज़ाहिर है, ये सब उस अंदर वाले दाने को प्यार से रगड़ने से ही हुआ था। एक-दम निढाल होकर वैसे ही पड़ी रही आंटी अगले पांच मिनट, और फिर एक बार और मेरे लौड़े को 69 पोजीशन में चूसा और अपनी चूत बहुत मज़े से क्लाइटोरिस पर और सारी की सारी मेरे मूंह पर दबा कर चुसवाया। और इस बार बिना जैम लगाए। वो बोली, “तेरी मां को पता चलता है तो तू संभाल लेगा, मुझे मालूम है।” एक घंटे से ज़्यादा हो चुका था, और आंटी अभी भी मेरे लंड को ललचाई नज़रों से देख रही थी।
लेकिन इस बार उठ करा मुझको मेरा निक्कर पहनाया, उस पर इर्द-गिर्द ग्रीस के निशान लगाए, और घर भेज दिया। मेरे जाते-जाते मुझसे प्रॉमिस करवा लिया कि अगले दिन एक बार और अपनी मर्ज़ी से 2-3 घंटे के लिए आ जाऊंगा। घर वापस आया तो मां दोपहर का खाना बना चुकी थी। मुझे ग्रीस लगे कपड़ों में देख कर जल्दी नहा कर आने को कहा, क्योंकि साथ बैठ कर ही खाना चाहती थी।
सही हो गया। मां मेरे पास ही नहीं आयी तो कोई भी महक आने का सवाल ही नहीं था। नहा कर आया तो डाइनिंग टेबल पर चार प्लेट लगी देखी। इससे पहले की मम्मी से पूछता कि बेल बजी। दरवाज़ा खोला तो देख कर हैरान रह गया। सामने खड़े थे पापा, और उनके बगल में पड़ोसन आंटी, और वो भी चित्रा की जैसी ऊंची सी स्कर्ट और टॉप में।
पहले तो समझ में नहीं आया कि माजरा क्या था? पर तभी मम्मी ने हम सब को खाने के लिए बैठने को कहा और मुझे बताया कि ये पापा का आईडिया था कि आज हम सब एक साथ भोजन करें। क्योंकि परसों तो आंटी को चले ही जाना था। पड़ोसी भाई साहब आ नहीं सके क्योंकि उन्हें अपने ऑफ़िस में चार्ज हैंडओवर करना है। वो शाम को पापा के साथ एक-आध ड्रिंक और स्नैक्स लेने के लिए आ जाएंगे। खाना खाते-खाते –
मम्मी: तो शशि (पड़ोसन का नाम), कैसा रहा तुम्हारा यहां का स्टे? अब फिर कभी आना होगा क्या?
शशि: बहुत ही अच्छा टाइम बीता आप लोगों के पड़ोस में। और मैं तो भाई साहब और आप से बहुत ही इम्प्रेसड हूं कि आप दोनों ने राज को कितने कायदे से बड़ा किया है। बहुत ही आसानी से घुल-मिल जाता है! एक्चुअली, लगता है कि आप लोग तो खानदानी बहुत कल्चर्ड लोग हैं। ये मैं इसलिए कह रही हूं क्योंकि चित्रा से भी तो खूब अच्छी तरह मिल चुकी हूं ना। राज और चित्रा एक साथ एक-दम सगे भाई-बहिन जैसे लगते भी हैं, और रहते भी उसी तरह हैं। जैसे एक साथ ही बड़े हुए हों।
पापा: हां यह तो हमारी मैडम का कमाल है। घर को कायदे से रखना और बच्चों को सही रास्ते पे इन्होंने ही रखा है।
मम्मी (बस चेहरे पर हल्की सी लाली, और बड़ी सी स्माइल): बस करो अब, राज के सामने ही अगर सब मिल कर उसकी बड़ाई करोगे, तो उसका भी दिमाग खराब हो जायेगा। अच्छा चित्रा के आने का कुछ फाइनल हुआ क्या?
पापा: हां, अबकी बार भाई साहब और भाभी भी आ रहे हैं। चित्रा का एडमिशन करा कर मंडे शाम को वापिस चले जायेंगे।
आंटी मेरे दाहिने तरफ ही बैठी थी। चित्रा के आने की बात सुन कर चुप-चाप अपने बाएं हाथ से मेरी पैंट के ऊपर से ही मेरा लंड हलके से स्क्वीज़ कर दिया, और हम्म्म सी आवाज़ निकाली, जैसे अपना गला साफ़ कर रही हो। ज़रूर अपने टाइम में चित्रा से बदमाशी में दो कदम आगे ही रही होगी। खाना सब का हो गया था, केवल मैं अभी अपनी दही-बड़े की प्लेट शुरू करने वाला था, कि मम्मी ने आंटी से कहा, “मेरे साथ आओ ज़रा, रसगुल्ले और सर्विंग बोल्स ले आते हैं।”
जैसे ही मम्मी की हेल्प के लिए आंटी उठने वाली थी, पापा ने उसे रोकते हुए कहा, “नहीं, आप बैठो राज के साथ, उसने अभी खाना ख़तम नहीं किया है, हम दोनों अभी आते हैं।” कह कर वो दोनों डिजर्ट लाने चल दिए। आंटी उनके जाते ही तपाक से मेरी तरफ घूम गयी, और अपनी स्कर्ट उठा कर बोली, “देख राज, मैं स्कर्ट के नीचे नंगी हूं। खा-पीकर अगर मौका हो तो घर आ जाना, बहुत मन कर रहा है एक-दो और राउंड आज ही लगाने का।
सच, ये सोच कर कि तेरे साथ अब आख़िरी दो ही दिन हैं, तुझे तो बस सूटकेस में बाकी सामान के साथ पैक करने का मन कर रहा है। मैंने भी किचन के दरवाज़े की तरफ नज़र रखते हुआ सामने खुली आंटी की चूत में वही बीच वाली उंगली डाल कर अंदर वाले बम्प को टटोला। तब तक जब तक आगे-आगे मम्मी और उनके पीछे-पीछे पापा के आने की आवाज़ आयी। समझ मैं आ गया कि शादी-शुदा औरत भी (क्या कोई भी औरत?) कितनी सेक्स के लिए उतावली हो सकती है, और वो भी किसी भी टाइम!