पिछला भाग पढ़े:- बाप बेटी की चुदाई – मालिनी अवस्थी की ज़ुबानी-4
आलोक का मानना था कि मानसी समझ रही थी कि उसकी और रागिनी की चुदाई उतनी नहीं हो रही जितनी एक पति-पत्नी की होनी चाहिए, और इसीलिए मानसी ने अपने पापा से चुदाई करवाने का फैसला ले लिया। अब ये फैसला कितना सही था, कितना गलत ये पता लगना अभी बाकी था।
-आलोक और मानसी की चुदाई के बारे में रागिनी के आलोक से सवाल और आलोक के जवाब।
अब तक अपने पढ़ा, चुदाई के बाद आलोक और रागिनी दोनों ढीले हो कर लेट गए। मानसी के साथ आलोक की चुदाई रागिनी भूल ही नहीं पा रही थी। कुछ चुप्पी के बाद रागिनी ने आलोक से कहा, “आलोक जो मैं पूछने जा रही हूं, उसका सच-सच जवाब दोगे? कुछ छुपाओगे तो नहीं”?
आलोक ने रागिनी की इस बात का क्या जवाब दिया, ये पढ़िए कहानी के इस भाग में।
“जब मैंने आलोक से पूछा, “आलोक जो मैं पूछने जा रही हूं, उसका सच-सच जवाब दोगे? कुछ छुपाओगे तो नहीं? तो आलोक ने भी हैरान होते हुए मुझसे पूछ लिया, “क्या बात है रागिनी? कुछ ख़ास बात है क्या”?
मैंने कहा, “हां आलोक, ख़ास ही है”। फिर कुछ रुक कर मैं बोली, “आलोक सच-सच बताना क्या तुम्हारा मानसी के साथ कुछ और भी चल रहा है? मेरा मतलब है क्या तुम मानसी को चोदते हो? मानसी चुदाई करवाती है तुमसे”?
“आलोक ने एक बार मेरी और देखा, और चुप हो कर छत की तरफ देखने लगा। आलोक के चेहरे पर हैरानी साफ़ दिखाई दे रही थी”?
मैंने हाथ से आलोक का चेहरा अपनी तरफ घुमाते हुए आलोक की आंखों में देखते हुए कहा, “आलोक मैंने मानसी को तुमसे अपनी चूत चुदवाते हुए देखा है। मैंने तुम दोनों की चुदाई होते हुए देखी है”।
आलोक ने फिर भी कोइ जवाब नहीं दिया।
मैंने फिर कहा, “आलोक जवाब क्यों नहीं दे रहे, चुप क्यों हो। बताओ मुझे, क्यों चोद रहे हो अपनी बेटी मानसी को”?
कुछ देर आलोक चुप रहा, और फिर धीरे से बोला, “हां रागिनी, मानसी चुदवाती है मुझसे, मैं चोदता हूं मानसी को”। ये कह कर आलोक फिर छत की तरफ देखने लगा।
पहले तो मैं हैरान हुई कि आलोक ने कितनी आसानी से अपनी और मानसी की चुदाई की बात मान ली थी। क्या इसका मतलब ये था कि आलोक को अपनी ही बेटी को चोदने का जरा सा भी पछतावा नहीं हो रहा था”?
“उसके इस रवैये से मुझे बड़ा गुस्सा आ गया। मैंने लगभग चिल्लाते हुए कहा, “मगर क्यों आलोक? मानसी तुम्हारी बेटी है तुम्हारी अपनी बेटी। तुम अपनी बेटी को ही चोदते हो? जानते भी हो इसका मतलब? ये समाज की नजरों में गलत है, पाप है”।
“आलोक ने कोइ जवाब नहीं दिया, बस ऐसे ही लेटा रहा। आलोक का हाथ अभी भी मेरे मम्मों पर ही था”।
“फिर कुछ चुप रहने के बाद मैंने ही पूछा, “कब से चल रहा है बाप-बेटी की इस चुदाई का सिलसिला? और मैं कहां थी? तुम्हारी अपनी चूत, तुम्हारी अपनी फुद्दी। मुझे तो तुम जब चाहते, जैसे मर्जी चाहते चोद सकते थे। फिर अपनी ही बेटी मानसी क्यों? बोलो आलोक”।
“आलोक तब भी चुप ही रहा”।
रागिनी डाक्टर मालनी को बता रही थी। “मालिनी जी जब अलोक ने मान ही लिया कि वो मानसी को चोदता है तो मैंने फिर आलोक से पूछा, “जवाब दो आलोक क्यों? क्यों चोदते हो तुम अपनी ही कुंवारी बेटी को? और कब से चोद रहे हो उसे? मानसी की चूत की तो सील भी तोड़ दी होगी तुमने तो अपना ये आठ इंच का लंड उसकी चूत में डाल कर”?
फिर आलोक धीरे से बोला, “रागिनी, पहले मैं तुम्हारे इस क्यों का जवाब देता हूं, कि क्यों चोदता हूं मैं मानसी को, और क्यों हो रही है हम दोनों बाप-बेटी में चुदाई”।
आलोक बोला, “रागिनी पहली बात तो ये है कि ये चुदाई मानसी की पहल से शुरू हुई है, मेरी पहल से नहीं। मैंने तो मानसी को कभी भी चोदने का सोचा भी नहीं था”।
आलोक कुछ देर के लिए चुप हुआ, और फिर बोला, “मगर रागिनी, अगर मैं कहूं कि एक तरह से बाप-बेटी के बीच हो रही चुदाई के रिश्ते की जिम्मेदार बहुत हद तक तुम हो तो ये गलत नहीं है”।
“आलोक की ये बात सुन कर मेरा पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। मुझे बड़ा गुस्सा आ गया, बाप बेटी में हो रही के चुदाई की जिम्मेदार आलोक मुझे ठहरा रहा था”?
मैंने लगभग चिल्ला कर गाली देते हुए कहा, “मैं? मैं जिम्मेदार हूं भोसड़ी के आलोक? तुम बाप-बेटी में हो रही चुदाई की जिम्मेदार मैं हूं? मैं कैसे जिम्मेदार हूं”?
गुस्से में मैं बोलती जा रही थी, “चूत में जाने के लिए लंड का खड़ा होना जरूरी है। क्या मैं तुम्हारा लंड पकड़ कर खड़ा करती हूं? क्या मैं तुम्हारा लंड पकड़ कर मानसी की चूत में डालती हूं? क्या मैं तुम्हारे लंड को मानसी की चूत में आगे-पीछे, अंदर-बाहर करती हूं, जिससे तुम्हारा लंड मानसी की चूत की चुदाई करे”?
“आलोक तुम दोनों बालिग हो। तुम दोनों को दुनियादारी की समझ है। और फिर लंड तुम्हारा, चूत मानसी की। चुदाई तुम दोनों के बीच, और जिम्मेदार मैं? वाह क्या खूब कह रहे हो आलोक तुम”।
“मेरे इस तरह बोलने से आलोक की बोलती बंद हो गयी। मैंने फिर उसी तरह ऊंची आवाज में कहा, “अब क्यों नहीं बोलते आलोक, बताओ मुझे, तुम दोनों बाप-बेटी में हो रही चुदाई की जिम्मेदार मैं कैसे हो गयी”।
आलोक बड़ी मरी हुई सी आवाज में बोला, “रागिनी पहले तो अपना ये गुस्सा थूको और अपने दिमाग को हल्का करो, और मेरी पूरी बात शांति से सुनो”।
“ये जो मैं कह रहा हूं कि हमारे बीच हो रही चुदाई की जिम्मेदार तुम हो, ये मेरी नहीं मानसी की सोच है। जब से तुमने वो रात वाले शिफ्ट करवाई थी मैं रातों को अकेला होता हूं, और ये मानसी को भी दिखाई देता है”।
“पहले तो मानसी भी मेरे साथ ही सोती थी। बाद में वो अलग सोने भी लग गयी थी। अब मैं रात को अपने कमरे में अकेला होता हूं। अब तुम ही बताओ रागिनी क्या जवान होती हुई लड़की मानसी को दिखाई नहीं देता था कि हम पति-पत्नी रात इकट्ठे नहीं सोते। दिन की तो बात ही छोड़ दो, दिन में तो हम साथ-साथ होते ही नहीं”।
“रागिनी अब मानसी जवान हो गयी है। पति-पत्नी के रिश्ते का मतलब समझती है और चुदाई क्या होती है ये वो जानने, समझने लग गयी है। वो हमारे या कह लो मेरे इस अकेलेपन को अपने इस चुदाई वाले नजरिये से देखने लगी है”I
“मतलब उसकी नजरों में रातों को मैं घर पर अकेला होता हूं और तुम मेरे साथ नहीं सोती। मेरी तुम्हारे साथ चुदाई नहीं होती। उसे लगता है तुम मेरा वैसा ध्यान नहीं रखती जैसा एक पत्नी को पति का रखना चाहिए, मतलब तुम मुझसे चुदाई नहीं करवाती, या उतनी नहीं करवाती जितनी की पति पत्नी में होनी चाहिए”।
फिर आलोक धीरे से बोला, “वैसे रागिनी तुम खुद ही सोच कर देखो, अगर जवान मानसी के दिमाग में ये बात कभी आयी भी होगी तो ये बात गलत तो नहीं है। तुम खुद ही सोच कर बताओ कि पिछले कुछ सालों से मेरी और तुम्हारे बीच चुदाई होती रही है”?
“मालिनी जी हालांकि आलोक की बात ठीक थी। पिछले कुछ सालों में मेरी और आलोक के बीच चुदाई बहुत कम हो गयी थी। मगर फिर भी ये तो कोइ कारण नहीं था कि एक बाप बेटी को ही चोदना शुरू कर दे, वो भी जो कुंवारी थी”।
मैंने उसी गुस्से से कहा, “आलोक अगर मेरी तुम्हारी चुदाई नहीं होती थी, या कम होती थी, तो इसका ये मतलब तो नहीं कि तुम मानसी को ही पकड़ कर चोद दो। और फिर जब जब तुमने मुझे चुदाई के लिए कहा तो मैंने चुदाई तो करवाई ही तुमसे, मना तो नहीं किया मैंने”।
आलोक ने जवाब दिया, “हां रागिनी जब भी मैंने तुमसे कहा या तुमने मुझसे कहा, हमारे बीच चुदाई हुई। लेकिन मेरे तुम्हारे बीच की बात है। तुम अलग कमरे में सोती हो। जिस दिन हमारा चुदाई का मन होता है मैं तुम्हारे कमरे में जा कर तुम्हे चोद कर वापस अपने कमरे में आ जाता हूं। लेकिन मानसी को तो ये नहीं पता। मानसी को तो लगता था हम अलग ही सोते हैं उससे उसकी ये सोच बनती जा रही थी कि मेरे और तुम्हारे बीच चुदाई नहीं हो रही, या बहुत कम हो रही है। और इसके लिए वो तुम्हें जिम्मेदार मानने लगी है”।
आलोक फिर कुछ रुक कर बोला, “रागिनी मैंने मानसी को अपनी मर्जी से नहीं चोदा। मानसी ने ही मुझे उसकी चुदाई के लिए मजबूर कर दिया”।
रागिनी आगे बोली, “मैंने आलोक से फिर पूछा- फिर वही बात? कैसे मजबूर कर दिया आलोक, तुम्हें मानसी ने चुदाई के लिए? क्या उसने तुम्हारा लंड पकड़ कर खड़ा किया, और फिर अपनी चूत में डाल लिया? कैसे मजबूर कर दिया मानसी ने तुम्हें उसकी चुदाई के लिए, बताओ”।
“मालिनी जी एक तरह से देखा जाये तो ये सब बहानेबाजी भी तो हो सकती थी आपस में चुदाई का रिश्ता बनाने की। भला ये क्या बात हुई कि एक पति पत्नी में चुदाई कम हो रही थी या नहीं हो रही थी, इसलिए बेटी ने ही बाप से चुदवानी शुरू कर दी”।
“मैंने आलोक को बोल ही दिया, “अलोक मेरी तुम्हारी चुदाई कम होती है इसलिए मानसी तुमसे चुदवाने लग गयी, ये सब बहाना है। अगर यही कारण है तुम बाप-बेटी में चुदाई होने का फिर तो आधे से ज्यादा परिवारों में बाप अपनी बेटियों को चोदने लग जायेंगे। खरबूजे के ऊपर छुरी रखो, या छुरी के ऊपर खरबूजा – बात तो एक ही है”।
“मेरी इस बात से आलोक थोड़ा परेशान हुआ और फिर बोला, “रागिनी अगर ये बहाना भी है, तो भी ये बहाना मानसी की तरफ से ही है मेरी तरफ से नहीं। मैंने कभी मानसी को नहीं चोदना चाहा, कभी मानसी को उस नजर से नहीं देखा”।
आलोक ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “रागिनी ये तो तुम भी जानती ही हो, जब रात को तुम घर पर नहीं होती तो मैं अपनी, मतलब हमारे कमरे का दरवाजा अंदर से बंद नहीं करता। ये इसलिए नहीं कि मानसी मेरे पास आये, बल्कि इसलिए कि रात को मानसी को कोइ प्रॉब्लम, कोइ दिक्क्त हो तो मुझे बता सके”।
आलोक ने बताया, “कोइ एक साल पहले, एक रात मानसी मेरे पास आयी और मेरे पास बैठ गयी। मैं जाग रहा था। असल में मैं अपने मोबाइल पर चुदाई की फिल्म देख रहा था। मेरा लंड आधा खड़ा था। मैं लंड की मुट्ठ मारने की तैयारी में था। गनीमत थी की लंड पायजामे में ही था और कमरे नाईट बल्ब की हल्की रोशनी ही थी”।
“मानसी कुछ देर ऐसे मेरे ही पास बैठी रही और फिर बोली, “पापा क्या बात है आप अभी तक सोये नहीं? नींद नहीं आ रही? मम्मी का ख्याल आ रहा है क्या? मम्मी भी आपका कुछ ध्यान नहीं रखती, बस अपने मैं ही मस्त रहती है”।
“पहले तो मैं समझा नहीं कि मानसी क्या यही बात करने इतनी रात को कमरे में आयी थी? ये बात तो दिन में भी हो सकती थी। और फिर तुम्हारा ये मेरा ख्याल ना रखने वाली बात उस समय, इस तरह इतनी रात को क्यों कर रही थी। मगर फिर मुझे लगा की मानसी का इशारा तुम्हारी और चुदाई की तरफ था जो बहुत कम हो रही थी, लगभग ना के बराबर”।
“मेरे मन में के तरह के सवाल उठने लगे। पहला सवाल तो यही थी कि इतनी रात को मानसी आयी ही क्यों, किस नीयत से आयी थी? और आयी भी थी, तो लाइट क्यों नहीं जलाई”?
“तब मेरे शक की कोइ गुंजाईश नहीं रही जब मानसी ने मेरे लंड से जरा सा ऊपर मेरे पेट पर हाथ रख कर कहा, “पापा मेरी बात सच है ना। मम्मी भी आपका कुछ ध्यान नहीं रखती, बस अपने मैं ही मस्त रहती है”।
“मैंने मानसी का हाथ अपने पेट से हटाने की कोशिश की मगर मानसी ने हाथ नहीं हटाया। मैंने फिर मानसी से कहा, “ऐसी बात तो नहीं मानसी। तुम्हारी मम्मी ध्यान तो रखती है। तुमसे किसने कहा वो मेरा ध्यान नहीं रखती”?
“अब जो मानसी ने जो किया और जो कहा, वो सुनने के बाद मेरे दिल में कोई शक नहीं रहा कि मानसी का इशारा मेरी और तुम्हारी चुदाई कि तरफ था और मानसी मुझे चुदाई करवाने की बात इशारों इशारों में कर रही थी”।
“मानसी ने मेरे पेट पर रखा हाथ थोड़ा सा नीचे सरका दिया, मेरे आधे खड़े लंड से सिर्फ दो इंच कि दूरी पर और बोली, “पाप मैं बीस साल की हूं अब, और सब समझती हूं। अब तो मैं भी आपका ख्याल रख सकती हूं। आप कहो तो मैं आपका ध्यान रख दिया करूं मम्मी की तरह”।
“मैं मानसी का इशारा तो समझ गया, मगर ये सोच कर हैरान भी हुआ और परेशान भी की मानसी किस हद तक जा चुकी थी। मानसी मुझसे चुदाई करवाने की बात कह रही थी”।
“मैंने मानसी का हाथ अपने पेट से जबरदस्ती हटाया और बोला, “मानसी ये तुम क्या कह रही हो? तुम अपनी मम्मी की तरह मेरा ध्यान रखोगी? जो तुम कह रही हो मैं समझ रहा हूं। मानसी ये बात समझ लो, ये कभी नहीं हो सकता, ऐसा कभी सोचना भी मत। ये गलत है”।
“और जहां तक तुम्हारी मम्मी का मेरा ध्यान रखने वाली बात है, वो मेरा ध्यान वैसा ही रखती है जैसा पहले रखती थी। वक़्त के साथ-साथ हालात और जरूरतें बदलती रहती हैं। इसलिए हो सकता है तुम्हें ऐसा लग रहा हो कि तुम्हारी मम्मी मेरा पहले जैसा ध्यान नहीं रख रही। मगर मानसी अगर ऐसा है भी तो इससे मुझे कोइ शिकायत नहीं। जाओ और अपने कमरे में जा कर सो जाओ”।
आलोक बता रहा था, “उस रात मानसी चली गयी। दो तीन महीने और गुज़र गए। फिर मानसी ने इस तरह की कोइ बात नहीं की”।
– मानसी चुद गयी अपनी सहेली स्नेहा के बॉय फ्रेंड प्रभात से
“आलोक ने अपनी बात अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “एक दिन मानसी सुबह सुबह अपनी किसी सहेली के घर गयी। तुम रात की शिफ्ट कर के आयी थी और सोई हुई थी। शाम पांच बजे मानसी वापस आयी। तब तक तुम हस्पताल जा चुकी थी। मानसी आते ही अपने कमरे में चली गयी”।
“ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। मानसी जब भी बाहर से आती थी मुझे दो बातें करने के बाद ही अपने कमरे में जाती थी”।
“जब काफी देर तक मानसी कमरे से बाहर नहीं आयी तो मुझे चिंता हुई कि मानसी की तबीयत तो खराब नहीं? मैं मानसी के कमरे में गया। मानसी लेटी हुई थी। मैंने मानसी से पूछा, “क्या बात है मानसी? तबीयत तो ठीक है”?
मानसी उठ कर बैठ गयी मगर कुछ भी नहीं बोली।
मैंने ही दुबारा पूछा, “मानसी क्या बात है? ऐसे चुप-चुप क्यों हो, तबीयत तो ठीक है?
मानसी मुझसे नजरें नहीं मिला पा रही थी। कुछ देर चुप रहने के बाद मानसी बोली, “पापा मुझे आपसे कुछ बात करनी है”।
मैंने कहा, “बोलो मानसी क्या बात है”?
मानसी कुछ देर चुप रही और फिर धीरे से बोली, “पापा मुझे i-pill चाहिए, प्लीज आप ला दो”।
मैंने हैरानी से पूछा, “i-pill? i-pill तुमने क्या करनी है मानसी”?
मानसी नजरें झुका कर बैठी रही मगर कुछ नहीं बोली।
मैंने मन ही मन सोचा i-pill? i-pill तो चुदाई के बाद लड़कियां खाती हैं, जिससे उनको बच्चा ना ठहरे। मानसी को i-pill क्यों चाहिए? तभी मेरे दिमाग में ये बात बिजली की तरह कौंधी। तो क्या मानसी चुदाई करवा कर आयी?
मैंने मानसी सी पूछा, “मानसी i-pill? तो क्या तुम…”? मुझे समझ ही नहीं आ रहा था की मैं क्या कहूं।
“फिर भी मैं कहा, “मानसी i-pill तो सेक्स करने के बाद लड़कियां लेती है जिससे प्रेगनेंसी ना हो” I
मानसी ने वैसे ही सर झुकाये हुए जवाब दिया, “हां पापा आज मैं अपनी सहेली स्नेहा के घर गयी थी। वहीं स्नेहा के बॉयफ्रेंड प्रभात के साथ मेरा सेक्स हुआ है – दो बार। दोनों बार प्रभात का डिस्चार्ज मेरे अन्दर ही निकला है”।
“मैं एक-दम बेड से खड़ा हो गया। मेरे पैरों के नीचे से जमीन निकल गयी। ये मानसी क्या कह रही थी। मानसी चुदाई करवा कर आयी थी? एक बार तो मन में आया एक थप्पड़ लगाऊं मानसी को, मगर फिर ध्यान आया मानसी बीस की हो चुकी थी, बालिग थी। अगर चुदाई करवाई भी तो ऐसा क्या हो गया”।
“रागिनी, मानसी में मुझे उस वक़्त अपनी बेटी नहीं एक जवान लड़की दिखाई देने लगी जो चुदाई करवा कर आयी थी। ना चाहते हुए भी मेरी आंखो के आगे मानसी का नंगा जिस्म आ गया। मुझे मानसी की चूत दिखाई देने लगी, जिसमें लंड गया हुआ था”।
“जवान लड़की की चुदाई की बात सुन कर मेरे लंड में भी हरकत होनी लगी। मैंने इतना ही पूछा, “कौन है वो, तुम जानती हो उस लड़के को”?
मानसी बोली, “हां पापा जानती हूं I पापा उसका नाम प्रभात है। प्रभात मेरी सहेली स्नेहा का बॉयफ्रेंड है। पहले एक दो बार मिली भी हूं उससे। आज जब मैं स्नेहा के घर गयी तो प्रभात भी आया हुआ था”।
“मुझ हैरानी हुई। प्रभात स्नेहा का बॉयफ्रेंड था, और मानसी के साथ चुदाई हो गयी? बात कुछ समझ नही आ रही थी”।
मैंने मानसी से ही पूछा, “मानसी अगर प्रभात स्नेहा का बॉयफ्रेंड है तो तुम्हारे साथ उसने ये सब कैसे किया वो भी स्नेहा के ही घर पर, स्नेहा के सामने”?
मानसी धीमे से बोली, “सब कुछ अचानक से हो गया पापा”।
आखिर मानसी की अपनी सहेली स्नेहा के बॉयफ्रेंड के साथ चुदाई हो कैसे गयी, ये पढ़ेंगे आप इस कहानी के अगले भाग में।
अगला भाग पढ़े:- बाप बेटी की चुदाई – मालिनी अवस्थी की ज़ुबानी-6