चित्रा और मैं-4

फिर लौड़े के सामने एक गिलास पकड़ा एक हाथ से और दूसरे हाथ से लौड़ा पकड़ कर बोली “पहले अच्छी तरह मूत लो, फिर कुछ करूंगी।” मैंने भी आराम से मूता और कहा कि “आगे और कुछ करने से पहले अपने भी सब कपड़े उतारो”, क्योंकि मैं तो नंगा था ही। “ठीक है” बोल कर चित्रा ने चुप-चाप मेरी तरफ देखते हुए सारे कपड़े उतार दिए, और उसी कुर्सी पर आके पालथी मार के बैठ गयी, जिस कुर्सी के सामने मैं नंगा खड़ा था।

सांवली होने के बावजूद धांसू बॉडी की बनी थी वह। बड़े-बड़े लेकिन तने हुए मम्मे जिनमे मज़े से चूसने लायक चूचियां, थोड़े बगल के बाल, और मखमली और काली झांटों के सिवा थोड़े नाभि के नीचे रोंगटे थे, और कहीं भी बाल ही नहीं थे।

मैंने कहा “चित्रा यार तुम मेरे सामने एक-दम नंगी। वाह क्या चीज़ दिख रही हो। मन कर रहा है की तुम्हें बाहों में जकड कर तुम्हारे सारे बदन पर लम्बे-लम्बे किस दूँ, और फिर तुम्हारे चूचे चूसूं और झांटो को सहलाते-सहलाते तुम्हारी चूत को भी खूब मज़े दिलाऊं।”

चित्रा के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गयी थी, और वो तो बस मेरे लौड़े को एक टक देखे जा रही थी, जो उसके होटों से केवल 6 इंच दूर था।