चित्रा और मैं-6

चित्रा की लेक्चर वाली बात मैंने सुनी-अनसुनी सी करके पास ही रखे एक स्टूल को उसकी कुर्सी के पास खिसकाया, और उस पर खड़े होकर अपने चूत चूमने की वजह से टन्न हुए लौड़े को चित्रा के गाल से छू दिया। चूत पर चुम्मी पा कर गरम हुई चित्रा की आँखों में चमक और चेहरे पर मुस्कान आ गयी, और उसने एक हाथ से लौड़े को पकड़ कर मुँह में चूसना शुरू कर दिया, और अपने दूसरे हाथ से चूत सहलाने लगी।

लौड़ा चुसवाने में मस्त मैंने अपना हाथ उसके चूत सहला रहे हाथ के ऊपर रख दिया। काफी फिट मामला था हम दोनों के बीच। उस समय कोई फिल्म बनाने वाला होता तो ज़रूर एक धाकड़ फिल्म बन सकती थी। चित्रा ने भी मेरा हाथ अपने हाथ के ऊपर फील किया तो बोली “तुम रगड़ो मेरी चूत को अपने हाथ से, मैं बताती हूँ कहाँ और कैसे।”

उसने मेरी एक उंगली से अपनी क्लिट (चूत का चना) रगड़वाना चालू कर दिया, और लौड़े को तो गज़ब का चूस रही थी। मैं धीरे-धीरे अपने आप हिप्स को आगे-पीछे कर के लौड़ा चुसवा रहा था। हम दोनों एक-दूसरे की आँख में आँख मिला कर अपने कार्यक्रम में पूरी तरह खो गए थे। मुझे तो अपने लौड़े में आ रहे चरम सुख के सिवा किसी बात का कोई होश नहीं था।

तभी चित्रा ने गले में अटक-अटक के आने वाली लम्बी सांस के साथ दोनो जाँघों में कंपकंपी सी आई और क्लिट को रगड़ती मेरी उंगली और भी गीली और चिकनी हो गयी। चित्रा ने पल भर आँखें खोल कर लौड़े को थोड़ा और मूँह के अंदर खींचा और चूसते-चूसते मेरी बॉल्स से भी खेलने लगी।

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