चित्रा और मैं-7

चित्रा बैडरूम में ही चाय लेकर आ गयी और हमने वहीं चाय पीते-पीते यह तय किया कि क्योंकि अभी 3:30 ही हुआ थे, तो हम पहले बाहर थोड़ा घूम कर और गोल-गप्पे खा कर आते हैं। जल्दी ही कपडे पहन कर हम दोनों पास वाले बाजार की तरफ चल दिए।

मैंने चित्रा को अपनी माँ के फेवरिट गोल-गप्पे वाले के खोमचे पर ले गया। गोल-गप्पे खा कर जब हम ऐसे ही घूम रहे थे, तो एक कोने में पेड़ के नीचे एक ठेला वाला किताबें बेचते हुऐ दिखा। मैंने चित्रा को वहीं रुकने को कहा यह कह कर, कि देखूं शायद उसके पास मस्तराम की किताब भी मिल जाए। ठेले पर सस्ती हिंदी की किताबों के अलावा एग्जाम की कुंजी और कम्पटीशन बुक्स भी थीं।

चूंकि कोई दूसरा ग्राहक आस-पास नहीं था, तो धीरे से उससे पूछा “कुछ फोटो वाली किताबें हैं क्या?” मुझे ऊपर से नीचे तक देख कर उसने फ़िल्मी किताबें दिखाईं। मैंने कहा “कुछ और एडल्ट टाइप दिखाओ”, तो मुस्कुरा कर एक पेपर-बैग में से नंगी औरतों की तस्वीरों वाली एक किताब दिखाई।

थोड़ी देर उस किताब को देखने के बाद हिम्मत करके धीरे से पूछा मैंने “फिर तो तुम्हारे पास मस्तराम वाली पोंडी भी होगी?” वोह बोला “है, मगर थोड़ी पुरानी सी है, क्योंकि लोग एक-दो दिन के लिए सिर्फ पढ़ने के लिए ले जाते हैं और फिर वापस कर देते हैं। घर पर अपने पास नहीं रखते।”

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