पिछला भाग पढ़े:- बाप बेटी की चुदाई – मालिनी अवस्थी की ज़ुबानी-10
आलोक डाक्टर मालिनी को अपनी और मानसी के बीच किन हालात के चलते और कैसे चुदाई शुरू हो गयी ये बता रहा था। आलोक की मस्त चुदाई से मानसी की चूत एक बार पानी छोड़ चुकी थी, मगर आलोक का लंड अभी भी खड़ा ही था। अब आगे।
आलोक डाक्टर मालिनी को बता रहा था। “मालिनी जी, मैं और रागिनी जब भी चुदाई करते हैं, हममें एक से ज्यादा बार चुदाई होती है। मानसी को चोदते बार भी यही हुआ। मानसी को मजा आ चुका था, मगर मेरा लंड वैसे का वैसे ही खड़ा था”।
“एक तो शराब का सुरूर, दूसरी जवान मानसी की टाइट चूत। मेरे सर पर चुदाई का भूत सवार हो चुका था। मानसी को मजा आने के बावजूद मेरा चुदाई बंद करने का मन नहीं था। टाइट चूत की चुदाई की मस्ती में मैंने इतना भी नहीं सोचा कि ऐसी चुदाई क्या मानसी झेल भी पाएगी या नहीं”।
“मैं मानसी को चोदता ही जा रहा था। कुछ ही देर में मानसी ने फिर वही किया और आआह पापा आअह आअह पापा बड़ा अच्छा लग रहा है आआह पापा बोल कर मुझे फिर से वैसे ही पकड़ लिया”। मानसी को दुबारा मजा आने वाला था।
“तभी मानसी ने जोर से चूतड़ घुमाए और एक सिसकारी ली, ” आआआह पापा”। मानसी को एक बार और मजा आ गया था। चुदाई होते हुए तकरीबन बीस मिनट हो चुके थे। तभी मुझे भी मजा आया और मेरे लंड में से ढेर सारा पानी मानसी की चूत में निकल गया। मेरे मुंह से बस यही निकला, “ले मानसी ले”।
“कुछ देर मैं मानसी के ऊपर ही लेटा रहा। जैसे ही मेरा लंड ढीला हुआ, तो मैं मानसी के ऊपर से उतरा और मानसी के साथ ही लेट गया। कुछ देर में जब मेरे सर से चुदाई का भूत उतरा तो समझ आया कि ये क्या हो चुका था”।
“मैंने नशे की हालत में मानसी को, अपनी बेटी को ही चोद दिया था”।
“मैं शर्म से उठ कर बैठ गया। मैंने जल्दी से पायजामा पहना और अपना सर पकड़ कर मानसी से बोला, “मानसी ये क्या हो गया? ये तो बड़ी गड़बड़ हो गयी। ये नहीं होना चाहिए था। तू क्यों आई इस तरह हमारे कमरे में? हे भगवान मुझसे ये क्या पाप हो गया”।
मानसी भी उठते हुए बोली, “कैसी गड़बड़ और कैसा पाप पापा? ऐसा भी क्या हो गया जो आप ऐसे बोल रहे हो? जो भी हुआ है ठीक ही तो हुआ। आप भी तो मेरा पायजामा सूंघते-सूंघते यही तो चाह रहे थे। तभी तो आपने अपना पायजामा सूंघते हुए लंड हाथ में ले रखा था। आपका लंड चूत ही तो मांग रहा था, वो मिल गयी उसको”।
“मानसी एक चुदाई के बाद ही लंड चूत खुल कर बोल रही थी”।
फिर मैंने मानसी से कहा, “मानसी जाओ अपने कमरे में और भूल जाओ जो हुआ है। अब दुबारा ये नहीं होना चाहिए। ये गलत है बेटा। बाप-बेटी में ये रिश्ता गलत है”।
मानसी ने अपना पायजामा उठाते हुए कहा, “पापा आप सोचते ही क्यों हो ये आपकी बेटी की चूत है? बेटी वाली बात भूल कर बस इतना सोचो कि एक चूत आपके सामने है और आप उसे चोद रहे हो। मानसी को मेरे साथ हुई इस चुदाई का कोइ पछतावा या अफ़सोस नहीं लग रहा था”।
“कुछ देर मानसी ऐसे ही खड़ी रही, अपना पायजामा हाथ में लिए हुए कमरे से निकल गयी”।
“अगले दिन सुबह शर्म के कारण मैं मानसी के सामने भी नहीं जा रहा था। मगर मानसी जब भी मेरे सामने आती वो नार्मल ही थी, जैसे कुछ हुआ ही ना हो”।
“हालंकि मानसी को चोदने का मुझे पछतावा था, मगर फिर भी मैं मानसी के साथ हुई चुदाई भूल नहीं पा रहा था। पहले जब भी मैं खाली बैठता या लेटता तो जैसे पहले मेरी आंखों के आगे प्रभात और मानसी की चुदाई घूमा करती थी, अब मेरी आंखों के आगे उनकी नहीं, मेरी अपनी और मेरी बेटी मानसी की चुदाई घूमने लगी थी”।
“सोचते-सोचते मेरा लंड खड़ा होने लगता और मुझे लगता जैसे मानसी की टाइट चूत ने मेरा लंड जकड़ा हुआ है”।
आलोक डाक्टर मालिनी को बता रहा था। “इसके बाद तो जब भी मानसी से आमना-सामना होता मुझे मेरी और मानसी की चुदाई याद आ जाती। रातों को मानसी और अपनी चुदाई का सोचते-सोचते मेरा लंड खड़ा हो जाता था”।
“रातों में रागिनी पास होती नहीं थी और मानसी को मैं चोदना नहीं चाहता थ। ऐसे में फिर मुट्ठ मार कर लंड का पानी निकालने के अलावा कोइ रास्ता नहीं रहता था”।
“मैं मानसी की छोटी-छोटी चूचियां अपने हाथों में महसूस करता था। मुझे लगता था मानसी की चूत के छोटे मुलायम झांटों के बाल मेरे होठों को छू रहे हैं”।
“और फिर एक दिन मैं ऐसे ही मानसी के साथ हुई चुदाई का सोचते-सोचते मुट्ठ मार रहा था कि मानसी आ गयी और आ कर मेरे पास आ कर लेट गयी”।
मैंने हड़बड़ाहट में मानसी से पूछा, “क्या हुआ मानसी यहां क्यों आई हो इस वक़्त, जाओ अपने कमरे में”?
“मुझे साफ़ महसूस हो रहा था कि मेरी आवाज कांप रही थी। मैं मानसी को जाने के लिए तो बोल रहा था, मगर मानसी को अपने पास से हटा नहीं रहा था। मानसी के साथ लेटने से मेरे लंड की सख्ती बढ़ रही थी”।
“मानसी ने अचानक मेरा लंड हाथ में पकड़ लिया और दबाने लगी। मेरा लंड मानसी का हाथ लगती ही सख्त हो गया। मैंने मानसी का हाथ अपने लंड पर से नहीं हटाया। कुछ देर बाद मानसी उठी और मेरा लंड मुंह में लेकर चूसने लगी”।
“मेरे मन में फिर से मानसी को चोदने का ख्याल आने लगा। मैंने सोचा आज आख़री बार और मानसी को चोद लेता हूं, आज के बाद फिर कभी भी मानसी को नहीं चोदूंगा”।
“मैंने मानसी के मुंह से अपना लंड निकाला, उसके कपड़े उतारे, और पहले की तरह ही मानसी को लिटा कर उसकी चुदाई कर दी। पहले दिन वाली चुदाई की तरह ही ये चुदाई भी बीस-बाईस मिनट चली और इसमें मानसी की चूत का पानी पहले की ही तरह दो बार छूटा”।
“चुदाई पूरी होने के बाद मैं मानसी के ऊपर से उतरा और चुप-चाप मानसी के पास लेट गया। मुझे मानसी की चुदाई का इतना पछतावा हो रहा था कि समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या बोलूं”।
“हम दोनों ही चुप थे। कुछ देर बाद मानसी उठी और अपने कपड़े उठा कर कमरे से बाहर निकल गयी”।
“मेरे मन में फिर वही ख्याल आया, “ये ठीक नहीं हो रहा। बाप-बेटी में चुदाई ठीक नहीं”। यही सोचते-सोचते मैं सो गया।
“लेकिन इसके बाद ये सिलसिला शुरू हो गया। पंद्रह बीस दिन या महीने के बाद जब मानसी का चुदवाने का मन होता रात को मानसी हमारे में आ जाती, और मेरे पास लेट जाती। कुछ देर बाद मानसी उठती, अपने पकड़े उतारती, मेरा लंड मुंह में लेकर चूसती और कुछ देर बाद ही हमारी चुदाई हो जाती। चुदाई करवा कर मानसी चुप-चाप उठती और अपने कमरे में चली जाती”।
“ये सोचते-सोचते भी कि मेरी और मानसी की चुदाई ठीक नहीं, मैं मानसी को चोद देता। जवान मानसी जब मेरे साथ नंगी लेटी तो मेरा दिमाग ही काम नहीं करता था। हर चुदाई से पहले मैं यही सोचता आज मानसी को चोद देता हूं आज के बाद नहीं चोदूंगा, और चुदाई हो जाती”।
“ये बिल्कुल ऐसा ही था मालिनी जी जब नए-नए जवान होते लड़के मुट्ठ मरना शुरू करते हैं तो वो भी यही सोचते हैं। उनके दिमाग में टीचर और कई बार मां बाप ये भूसा भर देते हैं कि वीर्य जीवन का मूल है, अनमोल मोती है, वीर्य को मुट्ठ मार नष्ट नहीं करना चाहिए, वगैरह-वगैरह। तब लड़के भी मुट्ठ मारते हुए यही सोचते है, “आज आखरी बार मुट्ठ मार लेता हूं, आगे से नहीं मारूंगा”।
“मेरी हंसी छूट गयी। आलोक की ये बात बिल्कुल सही थी, ऐसा ही होता है”।
आलोक बता रहा था, “मालिनी जी, हर चुदाई के बाद मैं मानसी को समझाता, “मानसी ये ठीक नहीं बेटा, मुझे नहीं अच्छा लगता। तू समझती क्यों नहीं मानसी। तुझे नंगी देख सामने देख कर मैं कमजोर पड़ जाता हूं और अपना आपा खो देता हूं, और तुझे चोद देता हूं। पर ये गलत है मानसी, ये ठीक नहीं है। ये नहीं होना चाहिए”।
“हर बार मानसी वही बात दुहराती, “पापा आप ये सोचते ही क्यों हो कि आप अपनी बेटी को चोद रहे हो। आप सोचो आप एक चूत को चोद रहे हो बस किसकी चूत चोद रहे हो ये सोचो ही मत”।
“इसके बाद एक दो बार चुदाई से मैंने मना किया तो मानसी ने जिस तरह से चुदाई के लिए जिद की, मुझे उससे हैरानी सी हुई”।
मैंने आलोक से पूछा, “ऐसा क्या कहा मानसी ने आलोक”?
आलोक बोला, “मालिनी जी जब मैंने मानसी को चुदाई के लिए मना किया तो मानसी बोली, प्लीज़-प्लीज़ पापा, आज कर लो आगे से नहीं कहूंगी”। मानसी के चुदाई के लिए इस तरह ‘प्लीज़’ कहने मैंने सोचा चुदाई के लिए इतनी पागल हो चुकी है मानसी? मानसी के इस तरह ‘प्लीज़’ कहने से मुझे महसूस हुआ कि बात हाथ से निकल रही है”।
“मैं सोचने लगा कहीं मानसी को चुदाई करवाने का चस्का ही तो नहीं लग गया? ऐसे में तो अगर मैंने मानसी को चोदने से मना किया तो क्या पता किस-किस से चुदाई करवाएगी या फिर कोइ गलत कदम भी उठा सकती है”।
“कई बार मेरा मन हुआ कि रागिनी से बात करूं, मगर फिर वही बात याद आ जाती जब i-pill लाते हुए मानसी ने मुझसे कही थी, “पापा मम्मी को मत बताना आपको मेरी कसम”।
“फिर एक दिन मैंने सोच ही लिया कि बहुत हो गयी बाप बेटी की चुदाई, अब और नहीं”।
“एक दिन वो चुदाई के लिए मेरे पास आयी और मैंने उसे चोदने से मना कर दिया। उसके बहुत कहने के बाद भी जब मैंने उसे नहीं चोदा तो उसने मुझे साफ़ कह दिया की अगर मैंने उसे नहीं चोदा तो वो कुछ कर लेगी”।
“जब मानसी के ये कहने के बाद भी मैं मानसी को चोदने के लिए नहीं उठा तो मानसी उठी, उसने अपने कपड़े उठाये और पैर पटकते हुए अपने कमरे में चली गयी”।
“मुझे वही डर सताने लगा कि कहीं मानसी कुछ कर ही ना ले कोइ गलत कदम ही ना उठा ले। कुछ देर बाद मैं उठा और मानसी के कमरे में गया। मानसी लाइट बंद करके लेटी हुए थी”।
“मैं मानसी के पास बैठ गया और बोला, “क्या हुआ मानसी ऐसे क्यों आ गयी? तुम ठीक तो हो? नाराज हो गयी हो क्या”?
“मानसी कुछ नहीं बोली, बस चुप-चाप लेटी रही”।
“मैंने मानसी को कंधे से पकड़ कर हिलाया तो मानसी ने मेरा हाथ अपने कंधे से झटक दिया और गुस्से से बोली, “पापा जाईये आप, आपको मेरी नाराजगी की चिंता करने की जरूरत नहीं। मैं ठीक हूं”।
“उस वक़्त मुझे लग रहा था रागिनी का वहां होना बड़ा ही जरूरी था। मुझे लगा अगर रागिनी की रात वाली शिफ्ट शुरू ना हुई होती तो शायद मेरी और मानसी की मेरे साथ चुदाई भी शुरू ना होती”।
मैं परेशान सा हो गया था। मैंने मानसी की चूचियों पर हाथ फेरने शुरू किये और मानसी से दुबारा पूछा, “मानसी क्या बात है, गुस्सा हो गयी हो क्या”?
“कुछ देर तो मानसी कुछ नहीं बोली। मैं अपना हाथ मानसी की चूचियों पर फेरता रहा। तभी मानसी ने अपना एक हाथ मेरे हाथ पर रख दिया और मेरा हाथ अपनी चूची पर दबाने लगी”।
“मेरा हाथ मानसी की चूचियों पर ही घूम रहा रहा था। जल्दी ही मानसी लम्बी-लम्बी सांसें लेने लग गई। तभी मानसी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपनी तरफ खींचा। मानसी मुझे अपने पास लेटने के लिए बोल रही थी”।
“मैं वहीं मानसी के साथ ही लेट गया। कुछ देर हम ऐसे ही लेटे रहे। फिर मानसी ने अपना हाथ मेरे लंड पर रख दिया और आअ पापा आअह पापा बोलने लगी”।
“मानसी के हाथ में मेरा लंड खड़ा होने लग गया”।
“मानसी ने मेरे पायजामे का नाड़ा पकड़ा कर नाड़ा खोलने की कोशिश करने लगी। अंधेरे में नाड़ा खुल नहीं रहा था। आखिर मैंने ही अपने पायजामे का नाड़ा खोल दिया”।
“मानसी ने मेरा सख्त होता हुआ लंड पकड़ा और आगे-पीछे करने लगी जैसे लंड की मुट्ठ मार रही हो। दस मिनट मानसी ने ऐसे ही किया फिर मानसी उठी और सलवार नीचे करके मेरे ऊपर उल्टा लेट गयी। मानसी की चूत मेरे मुंह पर थी, और मैं मानसी की चूत चूस रहा था। उधर मानसी मेरा लंड चूस रही थी”।
“चूत चुसाई से मानसी की चूत भी पानी छोड़ रही थी। जल्दी ही मानसी ने चूतड़ घुमाने शुरू कर दिए। मानसी की चूत लंड मांग रही थी”।
“मैंने अपना मुंह मानसी की चूत से हटाया और मानसी के चूतड़ों को ऊपर की तरफ किया। मानसी समझ गई कि मैं मानसी को अपने ऊपर से उतरने का लिए इशारा कर रहा हूं”।
“मानसी उठी और उठ कर बाथरूम चली गयी। पांच मिनट के बाद मानसी आयी तो मानसी के जिस्म पर एक कपड़ा नहीं था। मानसी आयी और आ कर मेरे पास लेट गयी, और मेरा लंड फिर से पकड़ लिया और बस इतना ही बोली “अअअअअह पापा”।
“मेरे सामने कोइ दूसरा रास्ता नहीं था। मैं भी उठा, मानसी के चूतड़ों के नीचे तकिया लगा कर मानसी की चूत ऊपर उठाई, और टांगें खोल कर लंड मानसी की चूत में डाला और चुदाई चालू कर दी”।
“बेमन से हुई वो चुदाई पांच-सात मिनट ही चली लेकिन हम दोनों को मजा आ गया। मानसी ने इस चुदाई के दौरान बस एक, “आह पापा निकल गया” की सिसकारी ली और ढीली हो गयी”।
“मैं भी उठा और अपना पायजामा उठा कर अपने कमरे में चला गया। मैं बिस्तर पर लेटा था मगर मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैं यही सोचता जा रहा था कि मानसी कैसे मुझसे चुदाई करवाना बंद करेगी”?
“मैं इन्हीं ख्यालों में ही उलझा हुआ था कि मानसी दुबारा आ गयी, वैसी ही बिना कपड़ों के। आ कर मानसी मेरे पास ही लेट गयी और बोली, “पापा आप नाराज तो नही हो”?
“मानसी को इस तरह बिना कपड़ों के देख मैं एक बार तो हैरान रह गया। मैंने सोचा अभी-अभी तो मानसी की चुदाई हो कर हटी है, और अब मानसी दुबारा ऐसी नंगी क्यों आ गयी है। मेरे मुंह से बस इतना ही निकला, नहीं मानसी नाराज नहीं हूं, क्या बात है”?
“मेरा मतलब था कि मानसी अभी तो तुम्हारी चुदाई हुई है, फिर अब क्यों आई हो”?
“मानसी ने बिना कुछ बोले पयजामे के ऊपर से मेरा लंड फिर से हाथ में ले लिया। मेरी मानसी को मना करने की हिम्मत ही नहीं हुई”।
“कुछ देर ऐसे ही लेटने बाद मानसी ने मेरे पायजामे का नाड़ा खोला और उठ कर लंड फिर से मेरे मुंह में ले लिया और चूसने लगी”।
“मानसी की चुसाई से जल्दी ही फिर से मेरा लंड दुबारा खड़ा हो गया। मानसी ने लंड मुंह से निकला और बिस्तर पर लेट गयी। मानसी ने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चूत पर रखा और बोली, “पापा इस बार अच्छे से करना, जैसे पहले करते थे”।
“अच्छे से करना, जैसे पहले करते थे? ये मानसी क्या बोल रहे थी? मतलब मानसी को भी उस बेमन वाली चुदाई का पूरा मजा नहीं आया था। मानसी पूरी रगड़ाई वाली चुदाई चाहती थी”।
“उस वक़्त मैंने भी सोचा, जब मानसी को चोदना ही है तो फिर जैसी चुदाई मानसी चाहती है, वैसी चुदाई ही करनी पड़ेगी – रगड़ाई वाली चुदाई”।
“फिर मैं भी उठा। इस बार मानसी के चूतड़ों के नीचे तकिया नहीं लगाया। पहली बार की चुदाई की तरह मैंने मानसी की टांगों के नीचे अपने बाजू डाले और ऊपर की तरफ होने लगा। मानसी की चूत ऊपर उठते चली गयी”।
“मैंने लंड मानसी की चूत पर ऊपर-नीचे किया। जैसे ही लंड चूत की छेद पर जरा सा रुका, मैंने एक झटके से लंड मानसी की चूत के अंदर डाल दिया।
“मानसी ने आअह पापा की आवाज के साथ जोर से चूतड़ घुमाये और बोली, “हां पापा ऐस ही”।
“इतना सब होने के बाद चुदाई का भूत मेरे सर पर भी सवार हो चुका था। इसके बाद मेरी और मानसी की जोरदार चुदाई हुई। मानसी “आअह पापा मजा आ गया आअह पापा और जोर से आह पापा आह पापा ” बोलती जा रही थी साथ ही अपने चूतड़ घुमा रही थी”।
“कोइ पंद्रह मिनट चली इस चुदाई मानसी एक बार झड़ चुकी थी, और लगातार चूतड़ घुमा रही थी। मानसी को दुबारा मजा आने वाला था। तभी मुझे मजा आ गया। मैंने मानसी को कस कर पकड़ा और तीन-चार जोर-जोर के धक्के लगाये और, “ले मानसी निकला तेरे अंदर” के आवाज के साथ ढेर सारा गरम पानी मानसी की चूत में डाल दिया”।
“कुछ देर ऐसे ही लेटने के बाद मैं मानसी के ऊपर से उतर गया। पल्प की आवाज के साथ मेरा लंड मानसी की चूत में से फिसल कर बाहर निकल गया”।
“कुछ मिनटों के बाद मानसी उठी और इतना ही बोली, “थैंक यू पापा, आप बहुत अच्छे हो”। इतना बोल कर मानसी चली गयी”।
“मानसी जिस तरह एक बार चुदाई करवा कर दुबारा चुदाई करवाने आयी, उससे मैं हैरान था। मानसी को सीधी सादी चुदाई से मजा ही नहीं आया था। मानसी ने तो एक बीस साल की लड़की की तरह नहीं बल्कि एक चुदक्कड़ औरत की तरह चूतड़ झटका-झटका कर चुदाई करवाई थी”।
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