करनाल के तीसरे दिन की मस्त रात
रजनी मेरी गांड चुदाई की सारी तैयारी करवा कर चली गयी थी। “उसने भी तो दीपक से चुदना था “। राकेश अब पूरे जोर शोर से गांड मेरी चोद रहा था – रगड़ाई भी मस्त हो रही थी।
मैंने राकेश को कहा, “राकेश थोड़ी क्रीम लगा लो, लंड छेद को रगड़ रहा है “।
“क्रीम तो लगा दूंगा, मगर गांड चुदाई में मजा तो इसी रगड़ के कारण आता है। चूत में चुदाई का असली मजा तब आता है जब लंड चूत के अंदर की खुजली मिटाता है और गांड चुदाई का असली मजा तब आता है जब लंड गांड के छेद के सिरे की खुजली मिटता है। मुझे लग रहा है आभा की आपकी गांड को थोड़ा आराम की जरूरत है ” ,कह कर राकेश ने लंड गांड में से निकाला और चूत में डाल दिया।
“असल में बात राकेश ने ठीक ही कही थी “।
अब पीछे से चूत चुदाई चालू थी। मगर फर्श पर खड़ी होने के कारण चूत थोड़ी नीची थी और लंड पूरा अंदर तक नहीं बैठ रहा था।
मैंने राकेश को कहा, ” राकेश पोज़िशन बदल लेते हैं, लंड पूरा चूत के अंत तक नहीं जा रहा “।
राकेश ने लंड चूत में से निकल लिया और खड़ा हो गया। मैं बेड के किनारे पर लेट गयी और अपनी कमर के नीचे मोटा तकिया रख कर चूत और गांड दोनों ऊपर कर दी। अपनी टांगें उठाई और चौड़ी कर दी।
“पक्की बात है की मेरी फुद्दी और गांड के छेद राकेश को दिख रहे होंगे “।
तभी तो राकेश ने एक सेकण्ड भी नहीं लगाया और जांघों से पकड़ कर मेरी टांगें चौड़ी की और फच्च पट्ट की आवाज के साथ पूरा लंड अंदर बिठा दिया – “और फिर दे दनादन” – वो धक्के लगाए मेरी चूत में कि क्या बताऊं।
राकेश ने इतने तेज धक्के लगाए और मैंने ऐसे जोर जोर से चूतड़ घुमाए की मैं अगले डेढ़ मिनट भी नहीं रुक पाई और मेरा पानी छूट गया। चूत मेरी लबालब मेरे पानी भर गयी। मेरे चूतड़ हिलने बंद हो गए। राकेश समझ गया की मैं झड़ चुकी हूं।
राकेश खड़ा तो गया, और उसने धक्के लगाने भी बंद कर दिए, मगर अपना खड़ा तना हुआ सख्त लंड मेरी चूत में से बाहर नहीं निकाला।
“क्या अनुभूति थी – मैं गर्म लंड अपनी चूत में महसूस कर रही थी और झड़ने के बावजूद चाहती थी की ये ऐसे अंदर खड़ा रहे। मैंने चूत टाइट कि और फिर ढीली की।
मैंने राकेश का लंड जकड़ना और ढीला छोड़ना शुरू किया। मुझे इसमें भी बड़ा मजा आ रहा था। राकेश धक्के तो नहीं लगा रहा था मगर लंड जरा जरा आगे पीछे हिला रहा था। “मैंने नोट किया की जब मैं चूत को टाइट करती हूं तो राकेश जोर लगा के अपना लंड चूत की गहराई तक बिठा देता है और जब मैं लंड ढीला छोड़ती हूं तो वो लंड को चूत से जरा सा बाहर निकाल लेता है”।
मैंने कहा, “राकेश थोड़ा चूत को चाटो और चूसो “।
राकेश बैठ गया और मेरी चूत और गांड दोनों चूसनी शुरू कर दी , “लपड़ सपड़ लपड़ सपड़ लपड़ सपड़ “। मुझे लग रहा था की मेरी चूत के पानी को राकेश निगल रहा है – पी रहा है।
“हर्ज ही क्या है अगर राकेश ऐसा कर रहा है तो। शुध्द हल्का नमकीन पानी ही तो है – क्या हुआ जो फुद्दी में से निकला है । और फिर हम लड़कियां भी तो कई बार एक दूसरी की चूत पर से मर्दों का सफ़ेद लेसदार पानी चाट लेती हैं”।
राकेश चूत चूसते चूसते बीच बीच में गांड के छेद में भी अपनी जुबान घुसा देता था। बड़ा ही आनंद आ रहा था। “मैं एक बार झड़ चुकी थी और राकेश का लंड ऐसे का ऐसे खड़ा था।
मैं सोच रही थी की अगर राकेश इस चुदाई में दो बार झड़ता है, तो अभी और कितनी बार झडूंगी ?
“शायद दो बार और झडूंगी – इससे ज्यादा तो मुझ में भी दम नही। इतने में ही जोड़ हिला देगा ये करनाल का छोरा”।
राकेश ने मेरी चूत चूसनी बंद की और खड़ा हो गया। मेरी दोनों बाजू पकड़ी और बेड के किनारे पर बिठा दिया।
”मतलब साफ़ था, “आओ आभा और इस राकेश का मोटा लंड अपने मुंह में ले कर चूसो “।
मैंने भी देर नहीं की और राकेश का गीला लंड अपने मुंह में ले लिया। पांच मिनट की चुसाई के बाद, मेरी पहले से ही गीली चूत ने और पानी छोड़ दिया।
मैं फिर से धड़म से पीछे की तरफ गिर गयी। तकिया अपनी कमर के नीचे रखा और चूतड़ उठा दिए । टांगें हवा में उठाई और चौड़ी कर दी। गांड और चूत के दोनों छेद राकेश के लंड को बुला रहे थे।
“आओ राकेश के लंड घुसो अंदर “।
राकेश ने मेरी जांघों को पकड़ा और खोल दिया और पूछा, “कहां डालूं आभा ? आगे वाले छेद में या पीछे वाले छेद में ” ?
“जहां मर्जी डालो राकेश दोनों छेद तुम्हारे हवाले हैं, जैसे जी चाहे रगड़ो”। फिर मैंने पूछा, “इस बार लंड का गर्म पानी छोड़ना है क्या ” ?
“हां आभा, तुमने चुदाई करवाते हुए नीचे से जिस तरह से चूतड़ घुमाए, मैंने तो बस रोक ही रखा है अपने आप को। इस बार तुम्हारे झड़ने के साथ मै भी पानी निकाल दूंगा। बस ये बताओ की पानी गांड में छुड़वाना है की चूत में “।
अपने चूतड़ों के तारीफ सुन कर बड़ी खुशी हुई। मैंने भी पूछा, “तो फिर तुम भी ये बताओ राकेश चुदाई के कितने दौर और चलेंगे ” ?
राकेश ने कहा, मैंने दो बार झड़ना है। मैं हमेश एक चुदाई में दो बार ही झड़ता हूं। इस दौरान नीचे वाली चुदाई करवाने वाली चाहे दो बार झड़ जाये तीन बार झड़ जाये या चार बार “।
मैंने सोचा,”कितनी किस्मत वाली है सरोज जिसको इतनी मस्त चुदाई करने वाला देवर मिला है “।
मैंने कहा, “तो फिर ठीक है राकेश चोदो दोनों ही छेदों को। एक बार आगे वाले में लंड का गरम पानी छोड़ना, एक बार पीछे वाले में छोड़ना। और एक बात और, मेरे झड़ने की गिनती मत करना। जैसे चोदना चाहो चोदो, जितना चोदना चाहो आज चोदो “।
चुदाई की मस्ती और राकेश के लंड ने तो बेशर्म बना दिया था।
“और फिर रजनी की तजुर्बेकार मां भी तो यही कहती है – चुदाई करवाओ तो बेशर्मो से, पूरे मजे लो और पूरे मजे दो “।
“आज मैं वही कर रही हूं “।
राकेश ऐसे चोद रहा था जैसे फिर दोबारा चूत नहीं मिलेगी और मैं चुदवा रही थी जैसे दोबारा लंड नहीं मिलने वाला।
“मगर बात ये नहीं थी”।
“मुझे भी लंड मिलेंगे और राकेश को भी चूतें मिलेंगी – मगर हमे एक दुसरे की चुदाई का मौक़ा मिलेगा या नहीं, ये नहीं पता ”
मेरी चूत का पानी छूट गया, राकेश के लंड ने भी गर्म फव्वारा चूत में डाल दिया।
मुझ में हिलने की हिम्मत नहीं थी, राकेश पानी निकाल कर सोफे पर बैठ गया और मेरी तरफ देखने लगा। जब हमारी नजरें मिली तो बोला, “आभा बहुत मस्त चुदवाती हो। आज के लिए बस एक दौर और “।
चुदाई करवाते करवाते थक गयी थी पर मन नहीं भरा था। “मैंने भी हां में सर हिला दिया”।
“मोटे लंड का चस्का ही ऐसा था”।
तभी सरोज आ गयी – नंगी। “कैसी चल रही है आप लोगों की रगड़ाई पिलाई चुदाई “। मेरी तरफ देख कर बोली।
मैंने भी कहा,”खुद ही देख लो”।
“अच्छा दिखाओ”,सरोज आई और फर्श पर घुटनों के बल बैठ कर मेरी चूत को खोला और बोली – “वाह ये तो भरी पड़ी है “। फिर राकेश की ओर तरफ मुंह करके बोली, “राकेश अभी पानी छोड़ा है क्या जीजी की चूत में ” ?
राकेश कुछ नहीं बोला, बस मुस्कुरा दिया। सरोज मेरी चूत चाट चाट कर राकेश का सफ़ेद लेसदार पानी साफ़ करने लगी।
“देखें गांड की क्या हालत है” ? सरोज ने मेरे चूतड़ों को बाहर की तरफ किया और झुक कर गांड के छेद को देखा। “ये क्या राकेश जीजी की गांड तो बिलकुल नई नकोर कुवांरी लग रही है। चोदी नहीं क्या ” ?
“चोदी है भाभी, मगर थोड़ा धीरे से सोच ज्यादा रगड़ा ही ना लग जाए “।
अरे राकेश, रगड़ के चोद, भुर्ता बना आभा जीजी की गांड का जैसे रजनी जीजी का बनाया था – लाल कर दे चोद चोद कर। सुजा दे, फुला दे I कुछ नहीं होगा। मैं क्रीम लगा दूंगी, एक दिन में ही ठीक हो जाएगी – अगली गांड चुदाई के लिए तैयार “।
सरोज ने मेरी गांड का छेद चूसा, चाटा, जुबान भी अंदर डाली और उठ कर राकेश के सामने बैठ कर उसका लंड चूसने लगी।
“भाभी की चुसाई में क्या जादू था, देवर का लंड फिर फनफनाने लगा”।
मेरी तरफ आ कर बोली, “आभा जीजी आप ने बोला था राकेश को धीरे धीरे गांड मारने को ” ?
“नहीं सरोज मैंने तो कुछ भी नहीं बोला। मैंने तो उलटा इस राकेश से कहा था, “ये रहे मेरी गांड और चूत के छेद, चोदो जैसे मर्जी – तुम खुद ही पूछ लो राकेश से”।
“तो चलो ठीक है फिर, मैं चलती हूं – उधर दीपक से गांड चुदवाने की मेरी बारी है। वो लंड हाथ में पकड़ कर मेरा इंतज़ार कर रहा होगा”। फिर राकेश की तरफ देख कर बोली, “राकेश ध्यान रखो जीजी का। रोज रोज थोड़ी आना है इन्होंने ” !
“राकेश ने भी आज्ञाकारी बालक की तरह हां में सर हिला दिया”।
सरोज चली गयी और राकेश आ कर मुझे चुदाई के लिए तैयार करने लगा।
उसका काम तो उसकी प्यारी भाभी कर ही गयी थी। “भाभी की दो मिनट के चुसाई ने ही देवर जी का लंड क़ुतुब मीनार की तरह सीधा कर दिया था “।
“अगले आधे घंटे में राकेश ने मेरा कचूमर निकाल दिया”।
मेरी चूत ने कितनी बार पानी छोड़ा मुझे नहीं पता – मेरा तो राकेश लंड के हर धक्के के साथ पानी छूट रहा था। अब तो हालत ये थी की मेरे चूतड़ अपने आप ही गोल गोल और आगे पीछे हिल रहे थे।
आखिर एक लम्बी हुंकार “आआआ…….आहहहहह” के साथ राकेश ने मेरी गांड को अपने गरम लेसदार सफ़ेद पानी से सींच दिया।
लग रहा था राकेश तीन बार झड़ा था, मुझे अपने झड़ने की तो गिनती ही नहीं पता थी। “मैं निढाल हो गयी”।
राकेश ने लंड मेरी गांड में से निकाला और मेरे साथ ही लेट गया। मैंने अपनी गांड का भींच लिया – छेद बंद कर लिया जिससे राकेश के लंड में से निकला सफ़ेद लेसदार पानी बाहर ना निकल जाए । क्या पता कुछ नया ही ना करना पड़ जाए। मैं भी उसकी बगल में ही लेट गयी।
थोड़ी देर के बाद जब थोड़ा दम आया तो मैं उठी और राकेश के ऊपर लेट गयी। मेरी चूचियां उसकी छाती से टकरा रहीं थीं। मेरी चूत राकेश के लंड के ऊपर थी। मैंने पीछे हाथ कर राकेश का लंड अपने नीचे से निकाल कर अपनी गांड की तरफ पीछे की तरफ कर दिया।
फिर एकदम मैंने अपनी चूत और गांड को ढीला छोड़ दिया और बाहर की तरफ जोर लगाया। मेरी चूत का सारा पानी और राकेश के लंड का सफ़ेद पानी, जो मेरी गांड के अंदर थे, निकल कर राकेश के लंड और टट्टों पर फ़ैल गए।
यही तो था “कुछ नया ” I मै कुछ देर ऐसे ही राकेश के ऊपर लेटी रही। फिर उठ कर राकेश के लंड के लंड और उसके टट्टों को चाट चाट कर अच्छी तरह साफ़ किया और खड़ी हो गयी।
राकेश ऐसे ही निढाल लेटा हुआ था।
“आखिर को मेहनत भी बहुत की थी उसने”।
मैंने कपड़े उठाए और रजनी के कमरे की तरफ बढ़ गयी।
रजनी की मां के कमरे में तो चुदाई चल रही होगी और अब मुझ में चुदाई करवाने की हिम्मत तो नहीं बची थी – कम से कम आज चुदवाने के लिए तो नहीं ही।