करनाल में पहला दिन
थक कर हम तीनो एक ही बेड लेट गयी। लेटे लेटे भी हम एक दूसरी कि गांड और चूत सहलाती रही।
ऐसे ही शाम हो गयी।
दीपक आ चुका था, सरोज का देवर राकेश भी आ गया था। हमे नमस्ते करने आया। मैं और रजनी तो उसे देख कर हैरान ही रह गयी। लम्बा चौड़ा, बिलकुल खिलाड़ी लग रहा था। मेरा तो मन आया की मैं ही इससे गांड मरवा लूं। फिर सोचा की नंबर तो मेरा भी आएगा ही। आज दीपक का मोटे टोपे वाला लंड लेती हूँ। रजनी कह रही थी चूत और गांड के अंदर बाहर होते हुए स्वर्ग की अनुभूति होती है। रजनी तो राकेश को देख कर मस्त थी। सोच रही होगी, “ये चोदेगा आज मुझे ” ? उसके चेहरे पर बड़ी ही तसल्ली के भाव थे।
दीपक और राकेश से सरोज ने ही बात कि। हम तो नए थे क्या बात करते। सरोज तो इन दोनों से चुदाई करवाती ही रहती थी।
रात का खाना खाने के बाद मैं बड़े कमरे में चली गयी। सरोज ने मुझे बता दिया था कि दीपक थोड़ी देर में पहुंच जाएगा। रजनी को ले कर वो अपने कमरों की तरफ चली गयी।
मैं बिस्तर पर लेट गयी और दीपक के आने का इंतज़ार करने लगी। लाइट मैंने बंद कर दी। रात वाली हल्की रौशनी वाली लाइट जल रही थी। दस मिनट ही गुज़रे होंगे की दरवाजा खुला और दीपक अंदर आ गया और मेरे पास ही लेट गया।
बात उसने शुरू कि, “सफर की थकान दूर हो गयी ” ?
मैंने हूँ में ही जवाब दिया। वो सीधा लेता हुआ था। मुझे लगा की वो थोड़ा हिल डुल रहा है।
असल में वह अपना लंड बाहर निकाल रहा था। उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपना लंड मेरे हाथ में पकड़ा दिया। मैंने महसूस किया कि रजनी ठीक ही कह रही थी। लंड का टोपा लंड से बड़ा थाऔर यह महसूस भी होता था। मैंने लंड को धीरे धीरे सहलाना शुरू कर दिया और दबाने लगी। लंड एकदम सख्त हो गया।
दीपक ने दबी आवाज में कहा,”आभा चूसो इसे”।
मैं तो इसी पल के इंतज़ार में थी।
मैं उठी और घुटनों के बल बैठ कर उसका लंड चूसने लगी।
थोड़ी देर चुसवाने के बाद दीपक बोला, “कपड़े उतार लो”।
मैं उठी और सारे कपड़े उतार लिए। दीपक भी अब नंगा था। मैं फिर उसका लंड मुंह में लेने के लिए झुकी किउसने मुझे कहा, ” ऐसे नहीं आभा। उलटा लेटो और अपनी चूत मेरे मुंह की तरफ करो “। मैंने वैसा होई किया। अब मेरी चूत उसके मुंह पर थी और उसका मोठे टोपे वाला लंड मेरे मुंह में था। सच ही जब लंड को मुंह में आगे पीछे करती थी तो मोटा टोपा क्या एहसास देता था। सोच रही थी ये मोटा टोपा जब चूत और गांड में जाएगा फिर तो मज़ा ही आ जाएगा।
“धन्यवाद रजनी इतना मस्त लंड दिलवाने के लिए “।
कुछ देर की चुसाई के बाद मेरी चूत तो पानी छोड़ने लगी। दीपक के लंड में से कुछ नमकीन नमकीन निकल रहा था। मैं तो चाटती जा रही थी जो भी ये नमकीन नमकीन था।
दीपक ने कहा, “आभा तुम्हारी फुद्दी तो तैयार लग रही है, शुरू करें ” ?
अब मैंने भी खुल कर बोलना ही ठीक समझा, “हाँ दीपक चूत लंड तो मांग रही है ”।
“गांड कब चुदवाओगी”। दीपक ने पूछा, “सरोज कह रही थी तुम्हारी गांड की चुदाई जरूर करूं “।
अब शर्माने से कुछ नहीं होना था। मैंने कहा, “मैंने तो दोनों ही की ही चुदाई करवानी है। अब तुम जैसे मर्ज़ी रगड़ो”।
दीपक ने कुछ सोचा फिर बोला,” ठीक है बन जाओ घोड़ी, करो गांड मेरी ओर। दोनों का ही बैंड बजाएंगे “।
“दोनों का ही बैंड बजाएंगे, मजा आ गया “।
मैंने आव देखा ना ताव, बिस्तर से उतर कर, गांड पीछे कर के चूतड़ उठा कर खड़ी हो गयी।
दीपक ने मेरी गांड चाटनी शुरू की। जब वो अपनी जुबान गांड के छेद में करता था तो बड़ा ही मजा आता था।
फिर उसने थोड़ा थूक लगा कर उंगली मेरी गांड में की। अंदाज़ा लगा रहा होगा की जैल कितनी लगानी पड़ेगी।
मेरा अंदाज़ा ठीक ही था। दीपक बोला, “आभा तुम्हारी गांड भी रजनी की तरह टाइट है। या तो गांड चुदाई नहीं करवाती या बहुत कम कभी कभी करवाती हो “।
मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना वो कहीं गया। शायद जैल लेने गया होगा।
“वैसे भी उसने मुझसे पूछा थोड़े ही था, उसने तो मुझे बताया था की या तो मैं गांड चुदाई नहीं करवाती या कभी कभी करवाती हूँ “।
अगले ही मिनट बाद ही मुझे गांड के छेद पर कुछ ठंडा ठंडा लगा। “मेरा अंदाज़ा ठीक ही था, दीपक जैल ही लेने गया था ”
गांड के छेद के ऊपर और उंगली घुसेड़ कर गांड के अंदर दीपक ने खूब सारी जैल लगाई जिससे उसके लंड का फूला हुआ टोपा आसानी से
अंदर चला जाए। “मैं तो उसका लंड अपनी गांड में महसूस करने के लिए मरी जा रही थी”।
जैल लगाने के बाद दीपक ने लंड गांड के छेद पर रखा और धीरे धीरे अंदर धकेला।
“पहली बार में लंड अंदर नहीं गया “। शायद और जैल की ज़रुरत थी।
दीपक ने फिर से जैल लगाई। “इस बार गांड के अंदर की तरफ ज़्यादा जैल लगाई “।
दीपक लंड को गांड पर रखा। जब आधा टोपा अंदर चला गया तो उसने मेरी कमर पकड़ी और जोर लगाना शुरू किया। ढेर सारी जैल और दीपक के जोर का कमाल था की लंड का टोपा अंदर की तरफ फिसलने लगा। अब दीपक नहीं रुका और लंड अंदर धकेलता गया। मुझे गांड पर दर्द हो रहा था।
“पर गांड पर दर्द तो तब भी हुआ था जब कुणाल ने पहली बार मेरी गांड मारी थी “। आगे आने वाले मजे का सोच कर मैं दर्द सहती गयी।
तभी फूला हुआ टोपा फिसला और गांड के अंदर बैठ गया। गांड का छेद जो फूले हुए टोपे के हिसाब से फ़ैल गया था एक दम थोड़ा सा बंद हुआ और लंड को जकड़ लिया।
दीपक अब कुछ रुका और टोपा बाहर निकला।
“हे भगवान, तो इस मजे के बारे में कह रही थी रजनी” ?
जैसे ही दीपक ने लंड पीछे खींचा तो गांड का छेद थोड़ा फ़ैल गया। टोपे का नीचे का सिरा छेद के साथ रगड़ खाता बाहर निकला और आवाज आयी “पप्प” और जो सुखद अनुभूति हुई उसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता – जन्नत थी ये।
दीपक ने फिर टोपा अंदर किया – फिर बाहर निकला। सात आठ बार उसने ऐसे ही किया फिर थोड़ी जैल क्रीम और लगाई।
“लग रहा था पूरा पेलने के चक्कर में था। “कुणाल और पंकज भी ऐसा ही करते थे “।
मैंने दीपक से कहा, “दीपक थोड़ा और ऐसे ही करो ना “।
“कैसे” ? शायद वो समझा नहीं ।
“यही – लंड का टोपा अंदर करो फिर बाहर करो और फिर अंदर, जैसे अभी कर रहे थे “।
“टोपा ? तुम्हारा मतलब लंड का सुपाड़ा ” ?
“इसे सुपाड़ा कहते हैं ? मैं और रजनी तो इसे टोपा ही बोलते हैं ” ?
“इसे टोपा भी बोलते हैं और सुपाड़ा भी। तुम्हारा मतलब टोपा कुछ देर अंदर बाहर करूं ” ?
“हाँ “, मैं बोली, “और अब इसे सुपाड़ा ही कहो। अच्छा लगता है। बोलते हुए लगता है पूरा मुंह इससे भर गया है। मैं रजनी को भी बोलूंगी अब इसे लंड का टोपा नहीं लंड का सुपाड़ा बोला करे “।
“दीपक ने मेरी कमर पकड़ी और टोपा, नहीं नहीं सुपाड़ा अंदर बाहर करने लगा”।
“मैं तो आनंद सागर में गोते लगा रही थी’। सोच रही थी क्या ऐसा भी लंड होता है ? फूला हुआ सुपाड़ा।
दीपक पांच मिनट तक ऐसे ही करता रहा। पांच मिनट में ज़्यादा नहीं तो सौ बार तो सुपाड़ा गांड अंदर बाहर हुआ ही होगा। जब मेरी तस्सल्ली हो गयी तो मैंने दीपक से कहा, ” मजा आ गया दीपक, अब गांड चुदाई कर सकते हो “।
सुपाड़ा अंदर ही था, दीपक ने एक धक्का लगाया और पूरा लंड गांड के अंदर बैठ गया।
“आह आह “। मुझे थोड़ी दर्द हुई, पर ठीक था।
मेरी दर्द वाली “आह आह ” से दीपक रुका नहीं। उसने धक्के लगाने शुरू कर दिए। उसने हर बार लंड गांड से बाहर निकाला और फिर गांड के अंदर डाला।
“शायद वह समझ गया था कि जब उसके लंड का सुपाड़ा बाहर निकलता है गांड के छेद में फैलाव आता है, मुझे उससे मजा आ रहा है “।
दस मिनट कि पूरी गांड चुदाई ने मेरी बस कर दी। अब और नहीं रहा जा रहा था। एक तो गांड दर्द कर रही थी, दूसरा चूत पानी छोड़ रही थी।
मैंने दीपक से कहा, “दीपक अब चूत को भी रगड़ो, मगर ऐसे ही करना – पूरा लंड बाहर, फिर एक ही बार में अंदर “।
इस बार जो दीपक ने लंड गांड से बाहर निकाला तो सीधा चूत में घुसेड़ दिया। गीली चूत में फिसलता हूआ लंड अंदर चला गया। और जब दीपक ने इसे पूरा निकला तो आवाज आयी “पप्प” – जैसे पेप्सी की बोतल का ढक्कन खुला हो। जब दीपक ने गांड से अपना लंड निकला था तब भी यही आवाज हुई थी “पप्प”। दीपक ने जब पूरा लंड जब चूत के अंदर झटके से डाला तो आवाज आयी “फच” और जब उसके टट्टे मेरी गीली चूत से टकराये तो आवाज आई “पट्ट “।
“जब दीपक लंड निकलता था तो पप्प और जब घुसेड़ता था तो फच और जब पूरा बैठता था तो पट्ट”।
“पप्प…फच…पट्ट —— पप्प…फच…पट्ट —— पप्प…फच…पट्ट —— पप्प…फच…पट्ट ” मेरी तो छूट की चुदाई भी संगीतमयी हो रही थी। कितनी ताल से लंड मेरी चूत में चोद रहा था।
“पप्प फच पट्ट —- पप्प फच पट्ट —- पप्प फच पट्ट —- पप्प फच पट्ट”।
क्या मस्त चूत चुद रही थी मेरी।