बाप बेटी की चुदाई – मालिनी अवस्थी की ज़ुबानी-26 (अंतिम भाग )

पिछला भाग पढ़े:- बाप बेटी की चुदाई – मालिनी अवस्थी की ज़ुबानी-25

रागिनी ने संदीप के मोटे लंड से साथ चूत रगड़ाई की कहानी डाक्टर मालिनी को सुना दी थी। संदीप तो पहले से ही डाक्टर मालिनी का दीवाना था। डाक्टर मालिनी ही संदीप को घास नहीं डालती थी। मगर जैसे संदीप ने रागिनी कि सूखी चूत रगड़-रगड़ कर फुला दी थी, उसे सुन कर डाक्टर मालिनी का मन भी संदीप से चुदवाने का होने लगा था। लेकिन उससे पहले आलोक ने डाक्टर मालिनी से एक आखरी मुलाक़ात करने आना था। अब आगे।

“क्लिनिक में बैठी मैं संदीप के बारे में ही सोच रही थी। जिस तरह से संदीप ने रागिनी कि चूत का पानी तौलिये से सुखा कर चूत की रगड़ाई की थी, और चोद-चोद कर रागिनी कि चूत फुला दी थी, ये अपने आप में अजीब और कमाल ही था”।

“इस तरह से भी चुदाई होती है, ये मैंने पहली बार सुना था”।

“कैसे-कैसे शौंक पालते हैं लोग”।

“मैं तो अब यही सोच रही थी कि बेकार ही इतने दिन चूत खोल कर संदीप के आगे नहीं लेटी। मैंने अपनी चूत को हाथ लगाया और सोचा, क्या ये भी संदीप से चुदाई के बाद वैसे ही फूल जाएगी, जैसे रागिनी की चूत फूल गई थी”?

“फिर मैंने यही सोचा – कोइ बात नहीं जो अब तक नहीं हुआ वो अब हो जाएगा। इसी को तो कहते हैं – देर आये दुरुस्त आये”।

“इन्हीं ख्यालों में दोपहर हो गयी। खाना खाने मैं ऊपर चली गयी, तभी आलोक का फोन आ गया”।

“आलोक के साथ अब आख़री मीटिंग होनी थी, बस ये जानने के लिए कि मानसी ने अब तो आलोक को चुदाई के लिए नहीं उकसाया, और मानसी का आलोक प्रति अब क्या रवैया है”?

“लेकिन ये तो थी मेरे पेशे से सम्बन्धित बातें थी। इसके अलावा आज मेरा आलोक के साथ ‘कुछ और’ भी होने वाला था”।

“मैं इस आखरी मुलाक़ात को यादगार मुलाक़ात भी बनाना चाहती थी”।

“आलोक ने फोन पर कहा, “नमस्ते मालिनी जी”।

“नमस्ते का जवाब देकर मैंने कहा, “नमस्ते आलोक, कैसे हो और मानसी कैसी है”?

“आलोक बोला, “ठीक ही लग रही है मालिनी जी। बस उसी सिलसिले में बात करनी है कि अब आगे क्या और कैसे करना है, जिससे मेरे और उसके बीच ये सब चुदाई-वुदाई वाला चक्कर अब कभी भी ना हो”।

मैंने कहा, “बोलो कब मिलना है”?

“आलोक बोला, “आप बताइये मालिनी जी, जब आप कहें मैं आ जाऊंगा”।

“मैंने कहा, “ठीक है आलोक, कल तो मैं बिज़ी रहूंगी। परसों आ जाओ बारह बजे”।

“बारह मैंने इस लिए बोला था कि चुदाई तो मैंने आलोक से करवानी ही थी। मगर अगर व्हिस्की पी कर पिछली बार की तरह आलोक का लंड लेने का प्रोग्राम बन गया तो सुबह-सुबह कौन दारू पियेगा। वैसे मेरा मन तो आलोक को वायग्रा खिला कर चुदाई करवाने का था”।

“मैं अभी तक असलम के साथ अपनी वायग्रा वाली चुदाई नहीं भूली थी, जिसमें आखिर में लंड का पानी मेरे मुंह में छुड़ाया था। और अब तो संदीप और रागिनी का किस्सा भी सामने था, जिसमें संदीप ने रागिनी के मुंह में पानी छुड़ाया था”।

“आलोक बोला, “ठीक है मालिनी जी, परसों ठीक बारह बजे पहुंच जाऊंगा”।

“मैंने अपनी चूत खुजलाई और अपनी दिनचर्या में लग गयी”।

“दो दिन बाद ठीक बारह बजे आलोक आ गया। कुछ रस्मीं बातों के बाद मैने पूछा, “हां तो आलोक अब बताओ मानसी कैसी है”?

“और फिर मैंने हंसते हुए कहा, “अब तो नहीं चूत खोल कर लेटती तुम्हारी आगे? या कहती हो पापा एक आख़री चुदाई कर दो”?

“आलोक थोड़ा शर्माता हुआ बोला, “नहीं मालिनी जी, अब तक ऐसा हुआ तो नहीं”।

“मैंने पूछा, “और रागिनी के साथ कैसी चुदाई चल रही है”?

“आलोक बोला, “मालिनी जी अब तो रागिनी एक दिन से ज्यादा चुदाई के बिना नहीं रहती। अगर मैं कभी थका हुआ भी होऊं तो चूस-चूस कर लंड खड़ा कर देती है। हां मगर मालिनी जी इस बार चार-पांच दिन हो गए मेरी और रागिनी की चुदाई नहीं हुई। रागिनी की तबियत थोड़ी ठीक नहीं थी”।

“मैंने सोचा, तबीयत क्या ठीक नहीं थी, संदीप से चूत फड़वा कर आयी है। संदीप ने रागिनी की चूत सूखी ही रगड़-रगड़ कर फुला दी थी, इसलिए आलोक से चुदाई नहीं करवा रही”।

“अपने आप ही मेरा हाथ मेरी अपनी चूत पर चला गया”।

फिर आलोक बोला,”एक बात और बताऊं मालिनी जी, अब तो रागिनी को माहवारी भी कई बार चार-चार, पांच-पांच महीने के बाद आती है, वो भी बस एक दिन के लिए। मस्त चुदाई होती है अब तो हम लोगों में”।

“फिर कुछ सोचता हुआ आलोक बोला, “लेकिन मालिनी जी अगर मानसी ने मुझे कभी चुदाई के लिए बोल दिया तो? आखिर को मानसी ने भी तो मेरे लम्बे लंड कि मजे लिए ही हैं। कभी उसका दिल चुदाई का आ गया तो”?

“मैंने सोचा तो आलोक को भी अपने लंड के कुछ ज्यादा ही लम्बे होने का एहसास है, और उसे भी लगता है कि मानसी का दुबारा भी आलोक को उसे चोदने कि लिए कह सकती है”।

“मैंने कहा, “अगर मानसी चुदाई के लिए बोले तो चोद लेना। अब ऐसा भी तो नहीं कि तुम दोनों में अब तक चुदाई हुई ही ना हो। तुम दोनों में वैसी शर्म या हिचकिचाहट तो है नहीं। वैसे आलोक जिस तरह से मानसी से मेरी बातें हुई है मुझे लगता नहीं ऐसे नौबत आएगी”।

“फिर मैंने आलोक को बता दिया, “आलोक मानसी को मैंने तीनो सेक्स टॉयज मंगवा ही दिए हैं, जिसमें एक लंड है, एक चूत का दाना चूसने वाला खिलौना है और एक चूत और गांड में लेने वाला भी है”।

“आलोक मेरे तरफ देख रहा था। मैंने फिर कहां, “लेकिन मैंने रागिनी को इनके बारे में नहीं बताया। तुम भी मत बताना, और ना ही मानसी से ही इनका कोइ जिक्र करना। समझो मेरी तुम्हारी इस बारे में कोई बात नहीं हुई”।

“फिर मैं हंसते हुए बोली, ”जब कभी मानसी की चूत जिद पर आ ही जाएगी तो ये रबड़ के खिलौने उसके बहुत काम आएंगे। आलोक कमाल के खिलौने हैं ये। असली वाले लंड में वैसी वाली वाइब्रेशन नहीं होती है जैसी इन चुदाई के खिलौनों में होती”।

“मैंने उसी तरह से हंसते हुए रागिनी का बोला हुआ डायलॉग दोहरा दिया, “कैसे कैसे चुदाई के खिलौने बनाते हैं ये फैक्ट्रियों वाले मादरचोद भी”।

“मेरी इस बात पर आलोक भी खुल कर हंस दिया”।

“मैंने फिर आलोक को पूछा, “आलोक तुम किसी रजत को जानते हो”?

आलोक बोला, “रजत खत्री? जानता हूं मालिनी जी। रजत शशि भूषण खत्री का बेटा है। भूषण भी मेरी तरह ही CA है। रजत भी CA कर रहा है और मानसी से एक साल या शायद दो साल आगे है। दोनों एक ही कालेज में हैं। मगर आप क्यों पूछ रहीं हैं”?

मैंने कहा, “आलोक रजत मानसी में दिलचस्पी रखता है – बहुत पहले से रखता था। मगर मानसी ही उसे भाव नहीं देती थी। तब वो तुम्हारे साथ होती चुदाई के कारण उसे लड़को के साथ दोस्ती करने में कोइ दिलचस्पी ही नहीं थी”।

“मुझसे बात करने के दौरान ही उसने मुझे रजत के बारे में बताया। रजत की फोटो भी दिखाई”।

आलोक बीच में ही बोल पड़ा, “मालिनी जी मैं भी मिला हुआ हूं रजत से। रजत देखने में तो ठीक है, बात-चीत करने में भी अच्छा है”।

मैंने फिर जरा सा हंसते हुए कहा, “आलोक, रजत देखने और बात-चीत में ही अच्छा नहीं, रजत लंड का भी बढ़िया है, अच्छा खासा मोटा। वैसा लंड जैसा अक्सर लड़कियों को पसंद आता है”।

आलोक जरा हैरान हुआ और इतना ही बोला, “जी”?

मैंने हंसते हुए कहा, “आलोक हैरान क्यों हो रहे हो? ये मुझे मानसी ने बताया। मानसी रजत का खड़ा लंड एक बार हाथ में ले चुकी है”।

“मेरा ये बताने पर आलोक मुझे कुछ परेशान सा दिखाई दिया”।

“फिर मैंने आलोक की टेंशन दूर करने के लिए आलोक के हाथ को पकड़ा और कहा, “आलोक ज्यादा मत सोचो, ये चुम्मा-चाटी, लंड पकड़ना, चूत में उंगली करना, ये सब मामूली बातें हैं। ये लड़के-लड़किया आपस में करते रहते हैं। आखिर को मानसी की प्रभात के साथ भी तो चुदाई हुई ही है। इसके बाद मैंने आलोक को मानसी और रजत की मुलाकातों के बारे मैं सब कुछ बता दिया”।

आलोक को कुछ तसल्ली हुई और वो बोला, “मालिनी जी आप तो कमाल हैं। कोइ जादू है क्या आपके पास जो इतने कम वक़्त में इतना सब कुछ बदल दिया”?

मैंने हंसते हुए कहा, “कोइ जादू नहीं आलोक, बस ये साइकाइट्रिस्ट – मनोविज्ञान की डिग्री का कमाल है। लोगों के दिमाग को पढ़ना ही मेरा पेशा है। बीस साल की लड़की को अगर चुदाई की तलब ना भी हो तो भी उसे लड़कों का साथ चाहिए ही होता है”।

“लड़कों का छूना हल्की-फुल्की चुम्मा-चाटी। यही मानसी अभी तक रजत के साथ भी कर रही है। अब क्योंकि मानसी उस लड़के प्रभात और तुम्हारा लंड चूत में ले चुकी है, और चुदाई करवा चुकी है तो हो सकता है वो रजत से भी चुदाई करवा ले, अगर कभी मौक़ा मिल गया तो”।

“मैंने बात जारी रखते हुए कहा, “और आलोक अगर ऐसा होता है और तुम्हें पता चल जाता है ऐसा तो होने देना और परेशान मत होना। ये चुदाई ही मानसी को तुमसे दूर करेगी, वरना अगर उसे दुबारा चुदाई की तलब लगी और रजत या प्रभात से चुदाई का मौक़ा ना मिला तो फिर तुमसे ही चुदाई करवाएगी”।

“फिर मैंने आलोक की आखों में देखते हुए पूछा, “आलोक एक बात बिल्कुल सच-सच बताना। क्या तुम्हारा मन अभी भी मानसी को चोदने का करता है? आखिर को तो वो जवान है उसका जिस्म कड़क है, उसकी चूत भी टाइट होगी, कम से कम मेरी और रागिनी की चूत से तो ज्यादा टाइट ही होगी”।

“आलोक ने जवाब दिया, “मालिनी जी सच कहूं तो मुझे मानसी को चोदने का कभी भी वैसा मजा नहीं आया, जितना रागिनी को चोदने में आता है, या आपको चोदने में आया था। ऐसा वाला मजा जो चुदाई के बारे में सोच-सोच कर आता है”।

“मानसी की चुदाई में ऐसी कोइ बात नहीं होती। मानसी की चुदाई के ख्यालों से कोई मजा नहीं आता। बस तभी मजा आता था जब चुदाई के बाद लंड का पानी निकलता था, और मानसी की चूत में गिरता था। ऐसे मजे का क्या, ऐसा मजा तो मुट्ठ मार कर भी लिया जा सकता है”।

“रागिनी ने मुझसे जिस तरह की चूत और गांड चुदाई करवाई है, मानसी के साथ मेरी वैसी चुदाई कभी नहीं हो सकती। चुदाई के वक़्त मैं और रागिनी जो बोलते हैं, वो भी तो रागिनी ने आपको बताया ही है”।

“मैंने आलोक को बीच में ही टोकते हुए हंसते हुए कहा, “हां आलोक मुझे तो मालूम ही है”।

“आलोक नीचे कि तरफ देखते हुए बोला, “मालिनी जी मेरी और मानसी कि चुदाई में मैं तो कुछ बोलता ही नहीं था। बोलने का मन ही नहीं होता था। बस जब लंड का पानी मानसी की चूत में जाता था तो मजे के मारे बस इतना ही कहता था ले मानसी ले”।

“हां मानसी जरूर बोलती – आह पापा, ऐसे ही करो पापा, पूरा निकाल कर डालो पापा। और वो इस लिए बोलती थी क्योंकि चुदाई उसकी मर्जी से हो रही होती थी मेरी मर्जी से नहीं”।

“यहां तक कि ना तो मैंने कभी मानसी कि चूत चूसी, ना ही मैंने मानसी से कभी लंड चूसने को कहा”।

“फिर आलोक कुछ याद करता हुआ बोला, “हां मालिनी जी एक बार जरूर मैंने मानसी को अपने लंड पर झुका दिया था जब मानसी चूत फैला कर मेरे मुंह पर बैठ गयी थी। जिस दिन हमारी पहली चुदाई हुई थी। तब मैंने मानसी को अपने लंड के ऊपर झुका दिया था, और मानसी ने मेरा लंड मुंह में ले लिया था। उसके बाद अगर कभी मानसी ने मेरा लंड चूसा भी तो उसके लिए मैंने उसे कभी नहीं कहा”।

“मैंने आलोक की सारी बातें सुन कर कहा, “आलोक इस सिलसिले में आज हमारी आखरी मुलाक़ात है। रागिनी के साथ भी इस सिलसिले में दो दिन पहले आख़री मुलाक़ात थी। रागिनी के टेप मैंने रागिनी को दे दी है”।

“फिर मैंने आलोक की टेप भी आलोक को देते हुए कहा, “ये रही तुम्हारी बातों वाली टेप। अब इनकी कोई जरूरत नहीं। आलोक इसे संभाल कर मत रखना। तोड़ कर फेंक देना”।

“अब एक आख़री मुलाकात मानसी के साथ करनी है। वैसे आलोक मैंने मानसी को कहां था वो भविष्य में भी जब चाहे यहां आ सकती है मानसी तो मुझे बहुत अच्छी लगी है, उसके साथ तो मुझे लगाव सा हो गया है। उससे तो मैं मिलना-जुलना जारी रखूंगी”।

“आलोक कुछ रुक कर बोला, “तो मालिनी जी अब”?

“मैंने हंसते हुए कहा, “अब क्या? अब मेरी फीस अदा करो पीछे वाले कमरे में चल कर”।

“आलोक बोला, “मालिनी जी एक बात कहूं”?

“मैंने कहा, “हां आलोक बोलो”।

“आलोक बोला, ” मालिनी जी आज मैं आपकी फीस पूरी सूद समेत चुकाना चाहता हूं। आज आपको वियाग्रा की गोली खा कर चोदता हूं। मैं वियाग्रा ले कर आया हूं”।

“मैंने सोचा, मैं तो व्हिस्की के दो पैग लगा कर चुदाई करवाने के चक्कर में थी। जब आलोक ने वियाग्रा खा कर चोदने की बात की, तो मेरी चूत ने फुर्र से पानी छोड़ दिया। मैंने आलोक से कहा, “वाह आलोक क्या बात है! पहले से ही वियाग्रा खा कर चोदने का मन बना कर आये हो, मगर तुमने तो कहा था वियाग्रा खा कर तुम्हारा लंड पानी नहीं छोड़ता”।

“आलोक बोला, “वहीं तो करना है मालिनी जी आज। आज आपकी ऐसी चुदाई करनी है कि आप हमेशा याद रखें। रही लंड के पानी ना छोड़ने वाली बात, तो जब आपकी चुदाई करवा कर तसल्ली हो जाएगी, तब आप चूस कर लंड का पानी निकाल लेना”।

“मैंने हंस कर कहा,”वैसे ही जैसे रागिनी के मुंह में मुट्ठ मार कर तुम निकाला करते हो”?

“आलोक हंस दिया और ये कहते हुए मुझे असलम की याद आ गयी। वियाग्रा खाने के बाद उसने भी तो ऐसे ही मेरे मुंह में मुट्ठ मार कर लंड का पानी निकाला था और अब संदीप ने भी रागिनी से लंड चुसवा कर मुंह में पानी छुड़ाया था, और शायद अब संदीप मेरे भी मुंह में अपने लंड का पानी छुड़ाएगा”।

“साले सारे मर्द एक जैसे ही होते हैं”।

“तभी ना जाने आलोक को क्या हुआ। वो बोला, “मालिनी जी वैसे तो आपके साथ मेरी चुदाई हो चुकी है, मगर मुझ पर आपका बहुत बड़ा एहसान है। आपने हमारी मानसी को सही रास्ता दिखा दिया, जो शायद मैं और रागिनी ना कर पाते। सच मानिये, मेरा मन तो करता एक बार यहीं, अभी आपके पैर छू कर आपका शुक्रिया अदा करूं”।

“मेरे साथ ऐसा होता रहता है, जब मेरे पास मेरी सलाह के लिए आने वाले लोग भावुक हो कर इस तरह की बातें करने लगते हैं। मगर मैं किसी से भी अपने पैर नहीं छुआती”।

“मैंने आलोक से कहा, “देखो आलोक मानसी मेरी बेटी जैसी है। मैंने तुम्हें बताया ही है कि मानसी से मुझे लगाव सा हो गया है। मुझे उसकी मदद करके बहुत ज्यादा खुशी मिली है”।

“मैं बहुत अच्छे तरह से जानती हूं बाप-बेटी या मां-बेटे के बीच चुदाई के रिश्तों का कोइ भविष्य नहीं होता। बस यही मैंने असलम को भी समझाया था और यही मानसी को भी समझाया था और वो इस बात को समझ गयी थी”।

फिर मैंने आगे के तरफ झुक कर कहा, “आलोक रही बात शुक्रिया अदा करने की, तो उसके लिए तुम्हें इतना नीचे, मेरे पैरों तक जाने की जरूरत नहीं। ये शुक्रिया तुम मेरी चूत और गांड तक रह कर भी कर सकते हो”।

“और फिर मैंने आलोक को कहा, “चलो आलोक खा लो अब जमुनी रंग की वियाग्रा और जितना चाहो, जब तक चाहो और जैसा चाहो मेरा शुक्रिया अदा करो”।

“आलोक ने वियाग्रा खा ली। गोली का असर होने में कम से कम आधा घंटा लगना था। मैंने आलोक से कहा, “आलोक ये गोली तो अपना करिश्मा आधे घंटे की बाद दिखाएगी। तब तक तुम लंड चुसवाओ और चूत चूसो मेरी”।

“आलोक ने देर नहीं लगाई और पेंट उतार कर मेरे सामने आ गया। मैंने आलोक का लंड पकड़ा और मुंह में लेकर चूसने लगी। आलोक का लंड लम्बा तो था मगर उसे पतला नहीं कह सकते थे। मेरा मुंह आलोक कि लंड से ही भर गया था”।

“मैं बस यही सोच रही थी कि अगर आलोक कि लंड से मेरा मुंह इस तरह भर गया है तब जब मैं संदीप का लंड मुंह में लूंगी तब क्या होगा”।

“दस मिनट मैंने आलोक का लंड चूसा, और बेड पर लेट कर चूतड़ों के नीचे तकिया लगा कर आलोक से बोली, “अब तुम अपनी जुबान का कमाल दिखाओ आलोक”।

“आलोक आया और मेरी चूत का दाना चूसने लगा। आधा घंटा ये चुसाई चली और आलोक बोला, “बस मालिनी जी मेरे लंड का काम हो गया है। अब ये तैयार है, बोलिये कहां लेना है आगे या पीछे – चूत में या गांड में”?

“मैंने कहा, दोनों जगह डालो। मगर आज सारे काम पीछे से ही करो”।

“तभी मुझे संदीप और रागिनी की चुदाई का ख्याल आ गया। मैंने मेज की दराज से मुंह पोंछने वाला बड़ा सा रुमाल निकाला और अलोक के हाथ में दे कर बोली, “ये लो आलोक चुदाई से पहले मेरी चूत का पानी अच्छी तरह साफ़ करके लंड डालना”।

“आलोक ने रुमाल हाथ में लेकर रुमाल को उलट-पलट कर देखा, फिर कुछ सोचते हुए मुस्कुराते हुए कहा, “क्या बात है मालिनी जी आज सूखी चूत चुदवाने का मन है क्या? रगड़ाई वाली चुदाई करवानी है क्या”?

“मैंने भी कह दिया, “हां आलोक आज हर वो काम करना है जिससे आज की चुदाई यादगार चुदाई बन जाए”।

“अलोक ने कहा, “ठीक है मालिनी जी, अब आप देखना, ऐसी चूत रगडूंगा, फुला दूंगा आपकी चूत रगड़-रगड़ कर”।

“आलोक की ये बात सुन कर मेरी आंखों के आगे रागिनी की फूली हुई चूत घूम गयी”।

“और फिर इसके बाद एक घंटा मेरी और आलोक की जम कर चुदाई हुई। वियाग्रा के असर से आलोक कि लंड का पानी तो छूट नहीं रहा था। मगर मेरी चूत रह-रह कर गीली हो रही थी। हर दस मिनट के बाद आलोक लंड चूत में से निकाल कर रुमाल से चूत का पानी साफ़ कर रहा था। आलोक का लंड खूब रगड़ा लगा-लगा कर मेरी चूत में जा रहा था”।

“क्या आलोक सच में ही रगड़-रगड़ कर चूत फुला देगा”?

“मैं बस यही सोच रही थी अगर आलोक का लंड इस तरह रगड़-रगड़ कर चूत में जा रहा है तो संदीप का मोटा लंड कैसी रगड़ाई करेगा”।

“आलोक ने मेरी चूत और गांड की जम कर रगड़ाई की और आखिर में असलम की ही तरह आलोक ने मुट्ठ मार कर लंड का पानी मेरे मुंह में निकाला”।

“बारह बजे का आया आलोक तीन बजे वापस गया। चुदाई के बाद आई सुस्ती से मैं ऊपर जा कर लेट गयी। चुदाई मेरी आलोक से हुई थी, मगर मेरे ख्यालों में संदीप ही घूम रहा था”।

“छः बजे प्रभा चाय ले आयी। चाय की चुस्कियां लेते लेते भी मैं संदीप के मोटे लंड की रगड़ाई के बारे में ही सोच रही थी”।

“मुझसे और रहा नहीं गया और मैंने संदीप को फोन मिला दिया”।

“अब जब संदीप से चुदाई का मन बना ही लिया था तो ज्यादा दिन इंतजार के मूड में मैं नहीं थी”।

समाप्त

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