रजनी की करनाल वाली आपबीती, और रात को जो हम ने अपनी चूत और गांड के साथ किया, उसने तो दोनों की चूत और गांड में खुजली मचा दी थी। अब ये जब तरह अच्छी तरह चुद ना जाएँ – बिना पूरी चुदाई रगड़ाई के – इनको चैन नहीं आने वाला था।
इस एहम मौके पर हमें अपने बॉय फ्रेंड्स याद आ गए। अब तो वही हमारी चूत और गांड की खुजली दूर कर सकते थे।
अब मैं अपने बॉय फ्रेंड्स का परिचय भी करवा दूँ।
मेरा बॉय फ्रेंड पंकज एक कंप्यूटर कंपनी में काम करता है और रजनी का बॉय फ्रेंड कुणाल एक मेडिकल रिपेरजेन्टटिवे है।
हम अपने बॉय फ्रेंड्स के साथ बाहर घूमने जाती रहती हैं। कभी कभी किसी होटल में जा कर चुदाई भी करा लेती हैं।
वो हमारे घर भी आते हैं – मगर कभी इक्क्ठे नहीं आये। कभी एक दूसरे से मिले नहीं। जब भी किसी एक का बॉय फ्रेंड आता है तो वह दूसरी को भी ज़रूर चोदता है। जब रजनी का बॉय फ्रेंड कुणाल आता है तो रजनी को चोदने के बाद मुझे जरूर रगड़ता है और जब मेरा बॉय फ्रेंड पंकज आता है तो मुझे चोदने के बाद रजनी को ज़रूर चोदता है।
असल में बात ये है की जब एक की चुदाई चल रही होती है तो दूसरी ड्राइंग रूम या दूसरे कमरे में बैठी या तो टी वी देख रही होती है या अपनी चूत में उंगली कर रही होती है। उंगली करते करते उसकी चूत लंड की प्यासी हो जाती है – बस यही प्यास बुझाने के लिए दूसरी की चुदाई होती है।
हमारे घर में एक बड़ा सा ड्राइंग रूम है। एक तरफ छोटी किचन और स्टोर हैं। दूसरी तरफ बाथ रूम है। बाथ रूम के कोने में टॉयलेट सीट है, दूसरे कोने में शावर – नहाने का जुगाड़ है। बीच में सिंक है जिसके ऊपर बड़ा सा शीशा लगा है। ड्राइंग रूम के साथ दो कमरे हैं जिनके दरवाज़े ड्राइंग रूम में ही खुलते हैं। एक कमरा बड़ा है जिसमें डबल बेड लगा है – हम दोनों इसी पर सोती हैं – चुदाई भी इसी बेड पर होती है। दूसरा कमरा छोटा है, इसमें छोटा बेड है, इसे कम ही प्रयोग किया जाता है।
रजनी और मेरा रात भर की चूत और गांड के खेल और एक दूसरे के ऊपर मूत का फव्वारा छोड़ने के बाद से हम कुछ अलग से चुदाई करवाना चाहती थीं। अब हमारा मन था की अब हमारी गांड में भी लंड की एंट्री हो ही जानी चाहिए ।
रजनी ने जिस तरह गांड चुदाई का गुणगान किया था, मेरा तो मन बड़ा ही चंचल हो रहा था और गांड का छेद रह रह कर फड़क रहा था। हालत रजनी की भी कुछ ऐसी ही था।
अब एक ही रास्ता ताकि किसी तरह पंकज और कुणाल को इक्क्ठे बुलाया जाये और चुदाई का खेल खेला जाय। इसी में कुछ ऐसा किया जाये की दोनों हमारी गांड चोदने को तैयार हो जाएँ।
इसमें मुश्किल ये थी की अभी तक हमारे बॉय फ्रेंड्स, पंकज और कुणाल कभी इक्क्ठे हमारे घर हमारी चुदाई करने नहीं आये थे ।
आख़िरकार चूत और गांड चुदाई की प्यासी रजनी और मैंने और रजनी ने मिल कर एक प्लानिंग बनाई। हम पंकज और कुणाल दोनों को अलग अलग समय पर बुलाएंगी।
जब एक चुद रही होगी तो दूसरा आ जाएगा और यहीं से असली खेल चालू होगा I
चुदाई के दौरान या बाद दोनों का आमना सामना हो जाएगा और फिर कुछ भी छुपाने के लिए नहीं रहेगा,और हम इक्क्ठी चुदाई के लिए उनको उकसाएंगी। इसी बीच मौक़ा देख गांड चुदाई की भी बात छेड़ देंगे। अगर बात बन गई तो मजे ही मजे, नहीं तो फिर देखेंगे आगे क्या करना है।
दुसरेलड़कों से हम चुदाई नहीं करवाना चाहती थी। एक तो हम चुदाई को पढ़ाई के ऊपर हावी नहीं होने देना चाहती थीं I
“पढ़ाई अपनी जगह और चुदाई अपनी जगह – हम पढ़ाई में भी अव्वल रहना चाहती थीं और चुदाई में भी “I
“और फिर हमने अपनी भोसड़ी का भोसड़ा थोड़े ही बनवाना था , आखिर को तो हमारी भोसड़ी और गांड हमारे पतियों की अमानत थी “I
तो हो गया फैसला दोनों को इक्क्ठे बुलाने का – तो अब शुभ काम में देर कैसी ?
हमने आने वाले शनिवार को ही उनको बुलाने का फैसला कर लिया। अगला दिन ऐतवार था, सोचा रात भर की मेहनत की थकान उतारने के लिए अच्छा रहेगा ।
प्लानिंग के अनुसार पंकज को मैंने चार बजे बुला लिया। कुणाल शहर से बाहर था और शनिवार को ही लौटने वाला था, उसे रजनी पांच बजे आने को कह दिया।
ठीक चार बजे पंकज आ गया I
“चूत चोदने का चक्कर ही ऐसा होता है। इसमें लेट वेट की गुंजाईश नहीं होती गाड़ी लेट हो सकती है चुदाई नहीं “।
हम तीनो ड्राइंग रूम में ही बैठे गप शप कर रहे थे। लगता था पंकज को चुदाई की तलब होने लगी थी । उसकी पैंट में से लंड का उभार साफ़ दिखाई दे रहा था। मेरे और रजनी के लिए ये लंड का उभार कोइ नया नज़ारा नहीं था।
“इनका बस चले तो ये चुदक्कड़ लंड निकल कर ही सोफे पर बैठें। उल्टा मुझे तो लग रहा था की अगर हमारी प्लानिंग सही रही तो वो समय भी आने ही वाला है”।
पंकज बोला,”चलें आभा” ? लग रहा था चुदाई के लिए बेचैन था।
हमारी प्लानिंग थी की कुणाल के आने से ज़रा सा ही पहले ही हम कमरे में जायें।
अभी साढ़े चार ही हुए थे – पांच बजने में आधा घंटा था। मैंने कहा, “अभी चलते हैं”।
गपशप फिर शुरू हो गयी। पंकज रह रह कर अपने आधे खड़े लंड की पोज़िशन बदल रहा था। मैं और रजनी एक दुसरे को देख कर मुस्कुरा रहीं थी।
जब पांच बजने में पांच सात मिनट थे – मैंने कहा, “चलो पंकज”।
वह तो तैयार ही था। हम उठे – जाते जाते मैंने रजनी को आँख मारी, “अच्छा रजनी “।
रजनी ने भी आँख दबाई, और हाँ में सर हिला दिया “।
दरवाजा बंद करते ही पंकज ने मुझे अपने बाहों में ले लिया। मेरे होठ चूसते हुए मेरी चूचियां दबानी शुरू कर दी। मेरी चूत पानी छोडने लगी थी। गांड में सनसनाहट हो रही थी मैंने पंकज की पैंट की ज़िप खोल कर उसका मोटा लंड अपने हाथ में ले लिया । हाथ में लेते ही वो कड़क हो गया। मैं घुटनों के बल बैठ गयी और उसका लंड अपने मुंह में ले लिया और अपनी जुबान उसकी लंड के टोपे के छेद के ऊपर फेरने लगी। पंकज के मुंह से आनद की एक सिसकारी निकली और उसने मुझे उठा लिया और फिर से मेरे होंठ चूसने लगा
पंकज कपड़े उतार कर बेड पर लेट गया। “खूंटे की तरह सीधा खड़ा लंड “। मेरी तो चूत में झुरझुरी होने लगी।
अपने कपड़े उतारते हुए मैंने पूछा, “पंकज, तुमने कभी गांड चोदी है ” ?
पंकज हैरान हुआ, “क्या ” ?
मैंने फिर पूछा, “तुमने कभी गांड चुदाई की है ” ?
उसने जवाब दिया, क्या बात है आभा आज गांड चुदाई की बात क्यों कर रही हो ” ?
“यों ही”, और मैं उसके लंड के ऊपर बैठ गयी थी। पूरा का पूरा लंड मेरी चूत के अंदर था। एक दो बार ऊपर नीचे होने के बाद जब लंड पूरी तरह मेरी चूत में चला गया तो मैंने फिर पुछा, “पंकज तुमने बताया नहीं, तुमने कभी गांड चोदी है ” ?
अब पंकज से नहीं रहा गया, ” क्या बात है आभा क्या हो गया, क्या आज गांड चुदवाने का मन है ” ?
मैंने, जवाब नहीं दिया उल्टा पूछा, “बताओ तो सही क्या चोदी है ” ?
” हाँ आभा दो तीन बार लड़कियों की चोदी है – और बचपन में तो लड़कों की चोदी भी है और चुदवाई भी है “। और वो हंसा दिया।
“अरे तो क्या तुम गे हो, समलिंगी – लौंडे”। मैंने हैरानी से पूछा।
“नहीं आभा ना तो मैं गे हूँ ना समलिंगी या लौंडा। कभी कभार गांड मरवाने या मारने से कोइ गे समलिंगी या लौंडा नहीं बन जाता। लड़कियां भी कभी कभी मस्ती में आ कर एक दूसरी की चूत चूस लेती हैं, चूत में उंगली कर देती हैं, एक दूसरी की गांड चाट लेती हैं या कभी कभी कुछ और कर लेते हैं जैसे की एक दूसरी के ऊपर मूतना। इससे तो वो लेस्बियन या समलैंगिक नहीं हो जाती ”
“मुझे तो अपना और रजनी का एक दुसरे पर मूतना याद आ गया”।
और जो बचपन में गांड मारने और मरवाने की बात ” ? मैंने फिर कुरेदा।
पंकज हंसा, “बचपन में तेरह चौदह पंद्रह बरस के बच्चों को चूत क्या होती है ये समझ आ जाती है और लुल्ली भी खड़ी होने लग जाती है – इस उम्र के बच्चों की लुल्ली ही होती है लौड़ा तो ये अट्ठारह साल की उम्र के बाद बनता है। अब जब भी उन बच्चों को जब लड़की की चूत का ध्यान आता है और लुल्ली खड़ी हो जाती है, तो एक दुसरे की गांड में ही लुल्ली डाल कर अपनी ठरक पूरी कर लेते हैं। लुल्ली छोटी होने के कारन गांड के छेद पर थूक लगाने से ही गांड के अंदर चली जाती है। बस हो गया काम”।
” इस सारे कार्यक्रम में अदलाबदली चलती है। पहले एक लड़का ऊपर दूसरा नीचे, फिर नीचे वाला लड़का ऊपर, ऊपर वाला नीचे – सब खुश और खेल खत्म। बस ऐसी ही गांड बचपन में मैंने मारी है और मरवाई भी है ” ?
ये सुन कर मेरी तो गांड में भी खुजली मच रही थी।
मन कर रहा था की अभी बोल दूं पंकज को, “मार साले मेरी गांड, रगड़ मेरी गांड को अभी की अभी आग ठंडी कर इसकी – पर फिर ख्याल आया रजनी भी तो है “।
पर आज मैं कहां छोड़ने वाली थी मैंने फिर पूछा, ”और किसी लड़की की गांड नहीं चोदी ” ?
” चोदी है, पांच या शायद छः बार – वो भी जब उन्होंने गांड चोदने को कहा तब”।
” मगर आभा आज तुम गांड की बात कुछ ज़्यादा ही कर रही हो, बताओ तो सही क्या गांड में लंड लेने का मन है ? बताओ मुझे मुझसे क्या छुपाना” ?
मैं चुप चाप चुदाई में मस्त रही। नीचे से आवाज़ें आ रही थी फच…….फच……फच…..फच…..।