हर होली की तरह इस होली भी मां घर से बाहर निकली होली खेलने। हम कॉलोनी में रहते थे, जहां का रिवाज था कि हर औरत एक-एक करके उतरेगी, और उसको रंग पोता जाएगा, और फिर पूरा झुंड अगले घर की तरफ़ बढ़ेगा, अगली औरत को रंग लगाने ।
इस होली पर जब मां उतरी तो उसके साथ भी वैसा ही हुआ। कुछ अंकल आंटी लोगों ने मिल कर मां को अच्छे से रंग लगाया, और आगे बढ़ गये। आम तौर पर मां भी उनके साथ जाती थी। लेकिन मां ने देखा कुछ अंकल लोग कोने में बैठ कर गप्पे मार रहे थे, और भांग पी रहे थे। उनमें से एक अंकल मां के काफ़ी अच्छे दोस्त थे। उनमें काफ़ी हसी-मज़ाक होता था। मां वहां जा कर सीढ़ी पर उनके साथ बैठ गई और गप्पे मारने लगी। अंकल लोग भी थोड़ा मूड में थे और मां को छेड़ने लगे।
“अरे भाभी आपको तो बिल्कुल भी रंग नहीं लगाया। पूरा ख़ाली-ख़ाली लग रहा है आपका”, शुक्ला अंकल बोले।
मां खीझ कर बोली, “क्या बात कर रहे हैं? ये देखिए कहीं भी नहीं छोड़ा”, मां ने अपना हाथ और पेट दिखाया। वो नीली रंग की साड़ी, और गुलाबी रंग का ब्लाउज पहने थी। उसकी साड़ी और ब्लाउज के बीच में काफ़ी पेट दिख रहा था। मां ने जब पेट दिखाया तो अरोड़ा अंकल ने वहां हाथ लगा कर देखने की कोशिश की। मां ने शरारत भारी आवाज़ में उनको हाथ पर धीरे से मारा और बोली, “हाथ दूर ही रखिए अरोड़ा साहब। आपकी बीवी देख लेगी तो आप कहीं भी हाथ रखने लायक़ नहीं रहेंगे।”
इतने में त्रिपाठी अंकल जो कि मां के काफ़ी ख़ास थे, उन्होंने मां की साड़ी को पाओं से थोड़ा ऊपर उठा दिया और बोले, “अरे ये देखो भाभी आपकी गोरी-गोरी टांगों पर तो थोड़ा भी रंग नहीं लगा।” कहते हुए उन्होंने मां की साड़ी घुटने के थोड़ा और ऊपर तक उठा दी।
मां बिलकुल से शर्मा गई और एक झटके में साड़ी नीचे कर दी और बोली, “आप लोग तो बिलकुल पागल हैं।” बोल कर साड़ी का पल्लू हटा कर अपनी गर्दन और गले के नीचे का हिस्सा दिखाया, कि देखो यहां तक रंग लगाया है।
“अरे भाभी जी, ये तो ब्लाउज के ऊपर रंग लगाया है, ब्लाउज के अंदर तो सब साफ़ साफ़ गोरा-गोरा पड़ा है ना। हम तो अंदर तक जाना चाहते हैं”, यादव अंकल मुस्की मारते हुए बोले।
मां थोड़ा दिखावे का ग़ुस्सा करते हुए बोली, “आप लोगों के साथ तो बैठना भी मुश्किल है। अगर ब्लाउज के अंदर रंग लगाना है ना तो अपनी बीवी को जाकर लगाइए।” बोल कर मां उठ कर जाने लगी।
यादव जी से रहा नहीं गया तो बोल पड़े, “अरे भाभी जी, अगर हमारी बीवियों का आपके जैसा भरा पूरा बदन होता, तो हम क्यों आपके बदन की तरफ़ सारा दिन ताक लगाये बैठे होते?”
चारों अंकल हंस पड़े, आपस में इशारा किया, और उतने में मां उठ कर जाने लगी। लेकिन त्रिपाठी अंकल पूरे मूड में थे। वो भी मां के पीछे उठे और उन्हें गोदी में उठा लिया।
वो बोले, “अरे भाभी जी इतनी जल्दी कहां है जाने की? सब तो अभी यहीं होली खेल रहे। थोड़ा हमारे साथ भी आज रंग खेल लीजिए। आज तो आपको पूरा रंग लगा कर ही छोड़ेंगे।” बोल कर उन्होंने मां को अपने कंधे पर उठा दिया, और पीछे के रास्ते से कॉलोनी के पीछे एक सुनसान जगह ले जाने लगे।
मां अपने हाथ-पैर मारने लगी, और उनसे भीख मांगने लगी कि गोदी से उतार दे। लेकिन वो हाथ पांव मारने के अलावा ज़्यादा कुछ बोल नहीं रही थी। बल्कि थोड़ा-थोड़ा मुस्कुरा रही थी। अंकल भी मां की गांड को प्यार से थपथपा रहे थे। एक दो बार तो वो मां की गांड के बीच के छेद पर भी अपना हाथ मल दे रहे थे। इससे मां के मुंह से आह भी निकल जा रही थी।
अंकल बोले, “बस भाभी थोड़ा रंग खेल कर आते हैं। उसके बाद आप चले जाना।” पीछे-पीछे वो तीनों अंकल चलने लगे जिससे की किसी को दिखाई ना दे और शक ना हो। जल्दी से वो बिलकुल सुनसान जगह से होते हुए वह कॉलोनी के पीछे एक बिल्डिंग जो की आधी बनी थी, और उस पर काम चल रहा था, उसके सामने खड़े हो गये।
वहां पानी का एक बड़ा सा टैंक था, जिसको चारों तरफ़ ईंट से घेरा हुआ था। अंकल ने मां को उसी पानी में फेंक दिया। पानी में गिरते ही मां की साड़ी बिलकुल जांघ तक उठ गई। वो जल्दी से अपने हाथ से साड़ी नीचे करने लगी कि तभी त्रिपाठी अंकल भी पानी में कूद गये और मां की तरफ़ चल कर आने लगे। मां थोड़ा हंस कर और थोड़ा शरारत से बोली, “अरे भाई साहब, रंग लगाने के लिए पानी में डालने की क्या ज़रूरत है?” अंकल बिना कुछ बोले मां के पास आते रहे।
“वंदना भाभी हम पानी में आपको आज रंग भी लगायेंगे और अंग भी लगायेंगे।” बोलते-बोलते त्रिपाठी अंकल ने पानी में हाथ डाला, और मां की साड़ी और पेटीकोट दोनों को जाँघों के ऊपर तक उनकी चूत से बस थोड़ा सा ही नीचे लाकर रोक दिए।
ऊपर खड़े तीन अंकल बहुत बेचैन हो रहे थे, “अरे थोड़ा अच्छे से देख त्रिपाठी भाभी जी ने चड्ढी पहनी है या हम लोगों को रिझाने के लिए ऐसे ही नंगी आ गई?” यादव अंकल की बेचैनी उनकी आवाज़ में झलक रही थी।
“तो ख़ुद ही आकर देख ले ने भाभी ने चड्ढी पहनी है या नहीं।” त्रिपाठी अंकल हंसते हुए मां के चेहरे के पास गये और उनके मुंह पर मुंह रख दिया और किस करने लगे। मां ने थोड़ा ज़ोर लगा कर उनको पीछे धक्का देने की कोशिश की, लेकिन उस कोशिश में ज़ोर बहुत था, पर इच्छा कम थी। ना चाहते हुए भी उनके होंठ अंकल के होंठ से जुड़ गये और उनका चुंबन गहरा होता गया।
अंकल ने एक हाथ से मां का एक हाथ उनकी पीठ के पीछे पकड़ रखा था, और दूसरे हाथ से वो मां की चूची दबा रहे थे। यादव अंकल से अब रहा नहीं गया, और वो भी पानी में कूद पड़े। हालांकि मां त्रिपाठी अंकल के काफ़ी क़रीब थी, लेकिन यादव अंकल से उन्हें थोड़ा भी लगाव नहीं था। लेकिन यादव अंकल को क्या फ़र्क़ पड़ता था। वो तो बस देखना चाहते थे कि मां ने चड्डी पहनी थी कि नहीं।
अंकल ने मां की साड़ी पूरी कमर तक उठा दी, और उनकी पैंटी को खींच कर घुटने तक ला दिया। अब मां हर तरफ़ से फस गई थी। उनकी काली पैंटी जिस पर सफ़ेद सफ़ेद प्रिंट बने हुए थे, अब वो सब को दिख रही थी।
इसके आगे की कहानी अगले पार्ट में।
अगला भाग पढ़े:- होली पर मां की सामूहिक चुदाई-2