होली पर मां की सामूहिक चुदाई-1

हर होली की तरह इस होली भी मां घर से बाहर निकली होली खेलने। हम कॉलोनी में रहते थे, जहां का रिवाज था कि हर औरत एक-एक करके उतरेगी, और उसको रंग पोता जाएगा, और फिर पूरा झुंड अगले घर की तरफ़ बढ़ेगा, अगली औरत को रंग लगाने ।

इस होली पर जब मां उतरी तो उसके साथ भी वैसा ही हुआ। कुछ अंकल आंटी लोगों ने मिल कर मां को अच्छे से रंग लगाया, और आगे बढ़ गये। आम तौर पर मां भी उनके साथ जाती‌ थी। लेकिन मां ने देखा कुछ अंकल लोग कोने में बैठ कर गप्पे मार रहे थे, और भांग पी रहे थे। उनमें से एक अंकल मां के काफ़ी अच्छे दोस्त थे। उनमें काफ़ी हसी-मज़ाक होता था। मां वहां जा कर सीढ़ी पर उनके साथ बैठ गई और गप्पे मारने लगी। अंकल लोग भी थोड़ा मूड में थे और मां को छेड़ने लगे।

“अरे भाभी आपको तो बिल्कुल भी रंग नहीं लगाया। पूरा ख़ाली-ख़ाली लग रहा है आपका”, शुक्ला अंकल बोले।

मां खीझ कर बोली, “क्या बात कर रहे हैं? ये देखिए कहीं भी नहीं छोड़ा”, मां ने अपना हाथ और पेट दिखाया। वो नीली रंग की साड़ी, और गुलाबी रंग का ब्लाउज पहने थी। उसकी साड़ी और ब्लाउज के बीच में काफ़ी पेट दिख रहा था। मां ने जब पेट दिखाया तो अरोड़ा अंकल ने वहां हाथ लगा कर देखने की कोशिश की। मां ने शरारत भारी आवाज़ में उनको हाथ पर धीरे से मारा और बोली, “हाथ दूर ही रखिए अरोड़ा साहब। आपकी बीवी देख लेगी तो आप कहीं भी हाथ रखने लायक़ नहीं रहेंगे।”