करनाल में दूसरा दिन
रात हो गयी – खाना सब खा ही चुके थे।
लड़कियों की चूत और गांड के छेद फड़क रहे थे और लड़कों के लंड फनफना रहे थे। सब चोदने चुदवाने के लिए तैयार थे।
मैंने सारे कपड़े उतार दिए थे और चद्दर ओढ़ कर लेट गयी और दीपक का इंतज़ार करने लगी। रजनी और सरोज उधर संतोष के पास जा चुके थे।
थोड़ी ही देर में दीपक आ गया – नंगा – खड़े लंड के साथ।
आते ही लेट गया। लंड खूंटे की तरह खड़ा था।
दीपक के फूले हुए सुपाड़े ने मेरी चूत गीली कर दी। मैं उठी और लंड मुंह में ले कर चूसने लगी। लंड चूसते चूसते मैं घूमी और अपनी चूत दीपक के चेहरे के ऊपर कर दी। दीपक मेरी चूत चाटने लगा।
कुछ ही देर में मैं उठी और सीधा लेट गयी। ये दीपक के लिए आमंत्रण था – “आओ और चोदो मुझे”।
दीपक भी उठा, मेरी टांगें अपने कंधों पर रखी और आगे की तरफ होने लगा। मेरे चूतड़ ऊपर उठते चले गए – साथ ही चूत भी उठ गयी। दीपक का लंड मेरी चूत की फांकों को छू रहा था। चूत पूरी गीली थी।
“दीपक को कल वाली बात याद थी”।
उसने अपने लंड का सुपाड़ा मेरी चूत में डाला और बाहर निकल लिया।
“मेरी तो सिसकारी ही निकल गयी “। दीपक कुछ देर ऐसे ही करता रहा।
फिर दीपक ने पूरा लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया और धक्के लगाने लगा। मुझे सरोज की रजनी की मां की चूतड़ घुमाने वाली बात याद आ गयी ।
क्यों की मेरी टाँगें दीपक के कंधों पर थी, इस लिए मैं उसे अपनी बाहों में जकड़ तो नहीं सकती थी, मगर मैंने अपने चूतड़ नीचे से घुमाने और ऊपर नीचे करने शुरू कर दिए।
लगता है दीपक पर इसका असर हुआ उसने धक्कों की रफ्तार एकदम तेज़ कर दी – साथ ही अब वो पूरा लंड निकल कर मेरी चूत में डाल रहा था।
जल्दी हे मैं झड़ने को हो गयी। मैंने दीपक को बोला, “दीपक लेट जाओ “।
दीपक सीधा लेट गया – लंड सख्त हो चुका था।
मैंने दो चार मिनट लंड का सुपाड़ा चूसा और लंड के ऊपर बैठ गयी।
“अब मैं अपनी मर्जी की चुदाई कर रही थी – कभी लंड पूरा बाहर और फिर एक झटके के साथ अंदर। कभी अंदर ले कर चूत को टाइट करती थी। ऐसे करते करते दीपक का पानी छूट गया – गर्मागर्म लेसदार पानी मैं अपनी चूत के अंदर महसूस कर रही थी। तभी मेरी भी चूत झड़ गयी। मुझे चूत के अंदर सररररर सररररर सा कुछ महसूस हुआ”।
मैं कुछ देर ऐसे ही बैठी रही। जब दीपक का लंड ढीला होने लगा तो मैंने एक टांग उठाई और दीपक के ऊपर से उतरने लगी। मगर ऐसा करते हुए मैंने एक काम किया।
मैंने उतारते उतारते जोर लगाया और दीपक का पूरा वीर्य मेरी चूत में से निकला और उसके लंड और टट्टों पर फैल गया। मैंने उस सफ़ेद लेसदार हल्के नमकीन पानी को चाटना शुरू कर दिया।
“इसी लिए तो मैंने दीपक के ऊपर बैठ कर चुदाई की थी “। पूरी नमकीन मलाई चाटने के बाद मैं दीपक की बगल में ही लेट गयी।
दीपक बोला, “आभा आज तो बड़ा मजा दिया तूने “।
“तो सरोज ठीक ही कह रही थी। चुदाई के समय रजनी की मां का फॉर्मूला कामयाब है “।
दस मिनट लेटने बाद मैंने दीपक का लंड हाथ में ले लिया।
“दीपक अब ” ?
“अब गांड चुदाई करेंगे – कल ही की तरह “।
इसके बाद गांड चुदाई हुई। दीपक ने वैसे ही किया – सुपाड़ा अंदर बाहर और फिर चुदाई।
मैंने भी रजनी की मां की तरह गांड चुदाई के समय अपने चूतड़ों को खूब आगे पीछे किया। बड़ा मजा आया।
दीपक ने पूरा लेसदार पानी मेरी गांड में ही छोड़ दिया।
आज चुदाई के वक़्त रजनी की मां की सरोज की कही हुई वो बात याद आ गयी, जब उसने कहा था, “देखो जीजी, बीबी जी की एक बात की तो मैं भी कायल हूं। जब चुदाई करवाओ तो पूरी बेशर्मी से करवाओ – पूरा मजा लो और पूरा मजा दो”।
“रजनी की मां की उम्र भी तो बड़ी है – उसी हिसाब से चुदाई का तजुर्बा भी ज़्यादा था”।
दोनों कार्यक्रम – चूत चुदाई और गांड चुदाई – पूरे हो चुके थे।
“अब पीछे की छोड़ आगे का सोचना था – कल का”
थोड़ी देर हम यों ही लेटे रहे।
दीपक बोला, “आभा मूतवाना है “?
मैं बोली, “चलो”।
बाथ रूम में जा कर मैं बैठ गयी और दीपक ने ऊपर ढेर सारा मूत किया। फिर पता नहीं उसके मन में क्या आया, वो वहीं जमीन पर ही लेट गया और बोला, ” आभा अब तुम मेरे ऊपर मूतो “।
मैं टांगें चौड़ी कर के उसके अगल बगल रखी। खुली हुई चूत दीपक को दिख रही होगी। “सरररररररर सररररररर की आवाज के साथ मैंने दीपक के ऊपर गरम मूत की धार छोड़ दी। मूतने की साथ साथ मैं आगे पीछे भी हो रही थी। उसके चेहरे से शुरू हो कर उसके लंड तक गयी और फिर वापस आ कर सारा मूत उसके चेहरे पर छोड़ दिया। दीपक ने मुंह खोल दिया। मूत उसके मुंह में जा कर बाहर बह रहा था। मूत के साथ साथ उसका वीर्य मेरी गांड से टपक टपक कर मूत के साथ ही उसके ऊपर गिर रहा था।
मैंने पूछा, “दीपक क्या रजनी की मां भी मूतती है तुम्हार ऊपर और तुम ” ?
“आभा उनकी बात छोडो, वो सब कुछ करती है – उनकी एक बात का तो मैं भी कायल हूं। जब चुदाई करवाओ तो पूरी बेशर्मी से करवाओ – पूरा मजा लो और पूरा मजा दो”।
“बिलकुल यही बात सरोज ने भी कही थी”।
जब मैं मूत चुकी तो वो बोला,”आभा आओ जरा अपनी चूत चटवाओ – तुम्हारा नमकीन पेशाब चाटना है “।
मैं बेड पर लेट गयी और दीपक मेरी चूत चूसने चाटने लगा।
फिर अचानक से पता नहीं उसे क्या हुआ, उसने मेरी टांगें उठाई, अपने कंधों पर रक्खी और लंड चूत के अन्दर डाल कर चुदाई शुरू कर दी।
नॉन स्टॉप – बिना रुके, लगातार – सुपर फ़ास्ट चुदाई।
“जितनी तेज वो धक्के लगा रहा उतनी तेज तो मैं चूतड़ भी नहीं घुमा पा रही थी”।
ये दस मिनट की धुआधार चुदाई ने तो मेरी चूत का भी धुंआ निकल दिया।
मजा भी आया तो कस के आया। मजे के मारे तो मेरी सिसकारियां रुक ही नहीं रहे थी।
“रोज नया नया तजुर्बा हो रहा था चुदाई का ” – और अभी ये करनाल में हमारा दूसरा ही दिन था।
इस बार चुदाई के बाद दीपक उठा और चला गया।
“आखिर में तीन बार की चुदाई आसान तो नहीं होती”।
हम लड़कियों ने तो टांगें उठा फैला कर गांड और चूत के छेद आगे कर देने हैं, “आओ जी डालो अपने लौड़े इनमें और करो इनकी चुदाई घिसाई। बाकी असली मेहनत वाला काम तो मर्दों ही करते हैं “।
मैं भी लेट गयी और आने वाले दिनों का सोचने लगी।
अगले दिन राकेश के आने की उम्मीद थी। मुझे उसके मोटे लंड का अपनी गांड में इंतज़ार था रजनी की सूजी और लाल हुई गांड देख कर मुझे अपनी गांड फड़वाने की ठरक लग गयी थी।
संतोष से चूत चुदाई में अब मेरी ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी, “मैं सोच रही थी संतोष न भी चोदे तो कोइ बात नहीं। पंकज, कुणाल दीपक और आने वाले दिनों में दीपक के दोस्त – ये सब चूत ही तो रगड़ने वाले थे”।
राकेश का मोटा लंड गांड लेने की इच्छा जरूर थी।
मैं सोच रही थी की सरोज भी गयी होगी रजनी के साथ या नहीं, बातों से तो लगता था नहीं जाएगी। राकेश से गांड चुदाई के समय तो वो रजनी के साथ ही थी।
आधे घंटे के बाद रजनी आयी।
“दो ढाई घंटे तो मेरी और दीपक की चुदाई चली थी – ये रजनी कितना चुदी होगी, वो भी तब जब की इस बार गांड नहीं मरवानी थी”।
आ कर धड़ से लेट गयी।
मैंने पूछा “क्या हुआ रजनी बड़ा टाइम लग गया। तूने तो खाली चूत ही मरवानी थी, उसी में इतना समय लग गया और इतना थक गयी ” ?
रजनी बोली, “कुछ मत पूछ आभा, पिछली बार की चुदाई तो आज वाली चुदाई के सामने कुछ भी नहीं थी। ये संतोष तो जानवरों की तरह चोदता है, बिलकुल उस डेयरी वाले सांड की तरह।
पिछली बार लगता है सरोज ने ही समझाया होगा संतोष को कि लड़की नयी नकोर है इसका लिहाज करना। तभी सरोज उस बार पहले अकेली अंदर गयी थी और फिर मुझे भेजा था “।
“पर हुआ क्या ये तो बता”।
रजनी ने जो बताया वो सुन कर तो मेरा संतोष से ना चुदवाने का आईडिया ही बदल गया। अब तो मेरा मन कर रहा था अभी जाऊं और संतोष के सामने अपनी फुद्दी खोल कर लेट जाऊं और बोलूं, “चोद साले इसको भी, कचरा कर दे इसका जैसे रजनी की चूत का किया है “।
रजनी ने बताया, “सरोज और मैं सरोज के कमरे में चली गयी। संतोष बैठा शराब पी रहा था। सरोज ने बताया जब कभी थक कर आता है तो दो तीन पैग लगा लेता है। इससे शरीर की थकान भी दूर हो जाती है और चुदाई का जोश भी बढ़ जाता है। संतोष लगता है दो या तीन पैग पी चुका था। वो पैग खत्म करने के बाद उसने सरोज को ईशारा किया और सरोज ने सारा सामान उठा लिया”।
रजनी बोलती गयी,” फिर संतोष बाथ रूम में चला गया। नहाने की आवाज आ रही थी फ्रेश हो रहा था। सरोज ने मेरे सारे कपड़े उतार दिए। मैंने कहा संतोष को तो आने दो तो सरोज बोली ”अरे जीजी टाइम बचेगा’ नंगी हो कर मैं सोफे पर बैठ गयी।
संतोष आया, बिलकुल नंगा। आ कर मेरे सामने खड़ा हो गया। संतोष का लंड तो मैंने पिछली बार भी चूसा था। मैंने लंड मुंह में लिया और और सुपडे के ऊपर जुबान फेरने लगी। संतोष के मुंह से आह आह की सिसकारियां निकलने लगी। तभी सरोज ने कहा मैं चलती हूँ।
मैंने कहा, “तुम अब कहां जाओगी सरोज, यहीं रहो। दोनों करवायेंगी बारी बारी”।
संतोष ने कहा “ठीक ही कह रही है रजनी”।
“संतोष पूरी तरह गरम हो गया था। लंड उसका लकड़ी की तरह सख्त हो चुका था। उसने मुझे गोद में उठाया और बेड पर लिटा दिया। सरोज तकिया लाई और मैंने पैरों और कंधों के सहारे अपने चूतड़ उठा दिए। सरोज ने तकिया मेरे चूतड़ों के नीचे रख दिया”।
“मैंने नोट किया की तकिया कुछ ज्यादा ही मोटा था। मेरी चूत अच्छी खासी ऊपर उठ गयी थी। संतोष घुटनों के बल मेरी चूत के सामने बैठ चुका था”।
“मेरी टांगें खुदबखुद ऊपर उठ गयी। बाकी काम संतोष ने कर दिया। मेरी जांघों से पकड़ कर उसने मेरी टांगें चौड़ी की और एक ही झटके में लंड पूरा अंदर कर दिया। मजा तो बड़ा आया, पर हैरानी भी हुई”।
“पिछली बार तो इसने बड़े ही सबर के साथ चुदाई शुरू के थी और बड़े ही धीरे धीरे से चोदा था”।
“शायद इस लिए की पिछली बार मैं मेहमान थी और इस बार तो हम चुदाई के मजे लेने के लिए ही आये थे “।