पिछला भाग पढ़े:- राजू और उसके प्यारे सन्तोष मौसा-2
नाश्ता करके दोनों ही रोज की तरह चुप-चाप खाना बनाने में लगे, और खाना बनने के बाद उसे पैक कर खेत पर ले गए। खेत पर बने कमरे में राजू ने घर से लाया खाना रखा और मौसा के पीछे-पीछे मज़दूरों की तरफ जाने लगा।
मजदूर सुबह बारिश रुकने के बाद से ही काम पर लगे थे, और धूप बढ़ने के साथ-साथ अपने काम को रोकने की सोच रहे थे, जिस पर मौसा ने भी हां कर दी। मजदूर अपना काम समेट के जाने लगे और राजू और मौसा दोनों खेत पर बने कमरे की तरफ आ गए। वहां आकर मौसा ने हाथ पैर धोये, और चारपाई पर एक करवट से लेट गये। राजू को कमरे के पास लगी घास को काटने की बोल दिया।
सुबह से ही दोनों ने एक-दूसरे से कोई बात नहीं की थी, और ना ही एक-दूसरे की तरफ़ देखा था। लेटे-लेटे मौसा राजू के मुंह में अपने लंड की छूटती पिचकारियों से राजू के मुंह में भरे अपने माल को याद कर रहे थे, और इधर उनका लंड सलामी दें रहा था। लंड के तनाव को छुपाने के लिए मौसा भरसर कोशिश कर रहे थे। लेकिन लंड रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।
लेता भी कैसे, आखिर इतने सालों बाद उसे कोई मिला था, वो भी इतना चिकना। दरवाजे के पास की घास काटते हुए जब मौसा को उनका लंड को सहलाता हुआ देखा, तो राजू समझ गया कि मौसा का लंड उन्हें फिर परेशान कर रहा था।
इस बात से राजू के अंदर की रंडी एक बार फिर जागी। उधर राजू को अपने सामने देख मौसा की भी ठरक जाग गयी।
दोनों ने सुबह से पहली बार एक-दूसरे को देखा और देखते ही राजू खुरपी को वहीं छोड़ चारपाई पर लेटे अपने मौसा के होंठों को अपने मुंह में रख कर चूसने लगा। अगले 15 मिनट तक राजू और मौसा ने एक-दूसरे को ऐसे चूमा जैसे मधुमक्खी फूल को। राजू की जवानी का रसपान करते हुए मौसा का 8 इंची लंड फनफनाते हुए तड़प रहा था।
मौसा की तड़प को शांत करने के लिए राजू ने उनके लंड को मुंह में रखा, और मौसा ने अपना पूरा लंड राजू के अन्दर उतार दिया। सुबह की जोरदार मुंह चुदाई से पूरा लंड एक ही बार में बिना दिक्कत के अंदर समा गया। राजू बहुत देर तक उसे ऐसे ही चूसता रहा। फिर उसके खुराफाती दिमाग को कुछ सूझा, और लंड को यूं ही तना छोड़ के घर से लाएं खाने के बर्तनों में कुछ ढूंढने लगा।
अचानक लंड को मुंह से बाहर पाकर मदहोश मौसा होश में आएं तो देखा राजू नीचे रखें बरतनों में से एक छोटे डिब्बे को उठा कर वापस चारपाई पर आ गया। मौसा कुछ समझ पाते उस से पहले ही राजू ने डिब्बे से रबड़ी को निकाल कर मौसा के लंड पर लपेट दिया। ठंडी रबड़ी को अपने लंड पर पाकर मौसा स्वर्ग की सैर करने लगे।
तभी राजू उस रबड़ी को चाट-चाट कर साफ करने लगा, और लंड को चूसते-चूसते रबड़ी खाने लगा। आधे घंटे ऐसे ही जोरदार चुसाई के बाद मौसा की सांसे तेज हो गयी, और लंड मुंह में ज़्यादा अंदर तक धक्के मारने लगा। 2-4 तेज धक्कों के बाद मौसा ने अपनी रबड़ी से राजू का पूरा मुंह भर दिया। कुछ रबड़ी मौसा के झांट के बालों और अंडों पर भी चिपक गयी, जिसे राजू ने चाट-चाट कर साफ कर दिया।
सुबह से दूसरी बार लंड चूसने से राजू भी बहुत गर्म हो गया था, जिसकी मदद के लिए मौसा ने उसका लंड हाथ से हिला कर उसका पानी निकलवाया। फिर अपने हाथ से उसका पानी राजू को ही पिलाया।
बाहर धूप बहुत तेज थी, और आस-पास के खेत पर भी कोई था नहीं, तो राजू और मौसा कमरे में ही सो गए। राजू दो-दो बार मेहनत करके थक चुका था, तो लेटते ही सो गया।
लेकिन मौसा को कोई थकान महसूस नहीं हो रही थी। मौसा तो अपने मन में अपने फाइनल निशाने के बारे में सोच-सोच कर लंड को सहला रहे थे। जब राजू करवट से हुआ तब मौसा ने देखा कि वो बिना अंडरवियर के उनकी लुंगी लपेट कर ही लेटा हुआ था। जिसके अंदर से झांकती राजू की गोरी चिकनी उभरी गांड को देख मौसा का मन ललचा गया। लालच बढ़ा तो मौसा का हाथ भी लुंगी में अंदर को बढ़ा और इस बार बिना किसी डर या शर्म के उन्होंने राजू की गांड को सहलाया।
उसके मुलायम चूतड़ों को सहलाते हुए मौसा अपने लंड को एक हाथ से हिलाते रहे। कुछ देर सहलाने के बाद मौसा ने राजू के चूतड़ों के बीच बनी फांक में अपनी उंगली से सहलाना शुरू किया, और बीच-बीच में छेद में उंगली को अंदर करने की नाकाम कोशिश भी की। ऐसी ही एक कोशिश में राजू की आंख खुली, और मौसा का हाथ अपनी गांड पर पाकर राजू को फिर ठरक चढ़ गई, और इस बार गांड में खुजली होने लगी।
राजू ने अपने हाथ को मौसा के सर पर फेरा और सर को गांड के छेद की तरफ करके मौसा को बताया कि वो भी उसके छेद को चाटे, जैसे वो उनके लंड को चाट रहा था। मौसा ने उसकी बात मानी, और जोर-जोर से छेद को चाटना शुरू किया। बीच-बीच में मौसा अपनी जीभ को भी राजू की गांड में कर देते, जिससे छेद थोड़ा खुल गया था।
अब मौसा जीभ की जगह अपनी ऊंगली को राजू की गांड में कर रहे थे। पहले एक एक उंगली तो आराम से चिकनी गांड में सरक गयी, लेकिन दो ऊंगली करने पर राजू के मुंह से सिसकारी निकली जिसने मौसा को और पागल कर दिया। उस सिसकारी से पगलाए मौसा ने दोनों की दोनों उंगली राजू की गांड में उतार दी, जिससे राजू की चीख निकल गयी।
चीख से मौसा थोड़ा रुके, लेकिन ठरक उन पर हावी थी। राजू के चूतड़ों को आराम देने के लिए उन्होंने उसके चूतड़ों पर जोरदार चांटों की बारिश की। जिससे उसके चूतड़ लाल हो गए। मौसा चारपाई से उठे और खाने के साथ आए थैले में से खीरा निकाल कर ले आएं। उन्हें देख कर राजू समझ गया ये खीरा उसे ही खाना था, लेकिन मुंह से नहीं। मौसा ने पहले खीरे के ऊपरी हिस्से पर मक्खन लगाया, और राजू के छेद को उसी खीरे पर लगे मक्खन से चिकना किया।
फिर धीरे-धीरे खीरे को गांड में सरकाना शुरू किया। काफ़ी देर की मेहनत के बाद आखिरकार पूरा खीरा राजू की गांड में अंदर-बाहर जाने लगा। राजू की गांड को खुला पाकर मौसा ने अपना खीरे जैसा लंड राजू की गांड में देने की सोचा। लेकिन टोपा अंदर जाते ही राजू छटपटाने लगा।
पहले तो मौसा ने कोशिश की, लेकिन छटपटाहट कम ना होने पर उन्होंने राजू की गांड से अपने लंड की टोपी को बाहर निकालना ही सही समझा।
वो राजू को दर्द देकर उसे खोना नहीं चाह रहे थे। इतने दिनों बाद तो मौसा को कोई छेद मिला था। जबरदस्ती करके वो उसे भी खोना नहीं चाहते थे। खैर खीरा मोटा और लम्बा था, लेकिन मौसा के लंड बराबर तो बिल्कुल भी नहीं था। तो मौसा ने छेद को खोलने के लिए दूसरे तरीक़े को अपनाने की सोची। कुछ सोच कर मौसा ने अपनी लुंगी को शरीर पर लपेटा और बाहर खेत में जाने लगें।
कुछ देर बाद जब मौसा आएं तो उनके हाथ में एक लंबा सा बैगन था, जो देखने में लगभग मौसा के लंड जितना ही लग रहा था। बैंगन देख कर राजू की गांड फटने लगी थी। मतलब डर के मारे फटने लगी थी। वैसे तो पूरा खीरा ले चुकी गांड फटी हुई ही थी। मौसा ने कमरे का दरवाजा बंद किया, और बैगन पर मक्खन लगाया, और उसको राजू की गांड पर टिकाया।
राजू हल्का सा कसमसाया और चीखने को हुआ। उसकी चीख को मौसा ने अपना लंड मुंह में भर कर शांत किया। अब राजू भी मदहोशी में लंड फिर से चूस रहा था, और मौसा आराम-आराम से बैंगन को गांड में सरका रहे थे। बीच-बीच में मौसा लंड के टोपे से भी टेस्टिंग कर रहे थे, लेकिन गांड का छेद बिल्कुल भी ढीला होने में नहीं आ रहा था।
इधर मौसा का लंड फिर एक बार माल छोड़ने को तैयार था। जोश-जोश में मौसा ने राजू के मुंह में पिचकारी छोड़ी, और उसी जोश में राजू की गांड में पूरा बैगन एक झटके में कर दिया। दर्द से बिलबिलाया राजू चीखना चाहता भी तो नहीं चीख़ पाता। क्योंकि मौसा का मूसल लंड ऊपर मुंह में अपना माल बरसा रहा था, जिसका स्वाद राजू को दीवाना बना रहा था।
मौसा ने ऊपर से लंड और नीचे से बैंगन जब बाहर निकालें तो राजू कुछ देर होश में ही नहीं रहा। उसके मुंह से लार टपक रही थी, और साथ में मौसा का माल भी। पीछे गांड का छेद इतना चौड़ा हो गया था, कि मौसा की 3 उंगली आराम से जा सकती थी। एक बार को लंड करने का मन हुआ भी, लेकिन मौसा के शरारती दिमाग को आज की रात सुहागरात में बदलने का ख्याल आया।
इसके आगे क्या हुआ, ये आपको अगले पार्ट में पता चलेगा। कहानी पढ़ कर फीडबैक ज़रूर दे।
अगला भाग पढ़े:- राजू और उसके प्यारे सन्तोष मौसा-4