पिछला भाग पढ़े:- बाप बेटी की चुदाई – मालिनी अवस्थी की ज़ुबानी-14
मानसी जब स्नेहा के घर गयी तो स्नेहा का अपने बॉयफ्रेंड प्रभात के साथ चुदाई का प्रोग्राम बना हुआ था। चुदाई के लिए दोनों दूसरे कमरे में चले गए। उनकी सिसकारियों की आवाजों से कुंवारी मानसी का मन चूत चुदवाने का होने लगा और वो अपनी चूत में उंगली करने लगी। जब चुदाई के बाद स्नेहा और प्रभात आये तो स्नेहा ने मानसी को चूत में उंगली करते देख लिया। स्नेहा के कहने से प्रभात मानसी को चोदने के दूसरे कमरे में ले गया। अब आगे।
मानसी बता रही थी, “आंटी प्रभात के बहुत कहने पर भी मैंने प्रभात का लंड मुंह में नहीं लिया। प्रभात का लंड मुंह में लेने के ख्याल से ही मुझे तो उल्टी होने को हो गई। जब प्रभात अपना लंड मेरे मुंह में डालने के लिये आगे की तरफ आने लगा तो मैंने प्रभात को पीछे धकेल दिया”।
“प्रभात समझ गया कि मैं लंड मुंह में नहीं लेना चाहती। हंस कर प्रभात पीछे हटते हुए बोला, “मानसी, स्नेहा तो बड़े मजे से मेरा लंड चूसती है। तुम्हे तो चुदाई के लिए ट्रेंड होने में वक़्त लगेगा। चलो उठो, लेटो और अपने टाइट फुद्दी के दर्शन करवाओ। तुमने लंड नहीं चूसना कोइ बात नहीं, मुझे तो चुसवाओ अपनी कुंवारी फुद्दी?”
“यहां मैंने मानसी को बीच में ही टोकते हुए कहा, “लेकिन मानसी लंड चूसना तो कोइ बड़ी बात नहीं। लड़कियां तो अक्सर लंड मुंह में लेती ही हैं। तुम भी तो अपने पापा आलोक का लंड मुंह में लेकर चूसती हो”।
मानसी बोली, “लेकिन आंटी वो तो मेरे पापा हैं”।
“मानसी की इस बात पर मेरी हंसी निकल गई”।
“मुझे लगा मानसी का ये कहने का मतलब था कि मानसी को प्रभात के साथ चुदाई सिर्फ चुदाई थी। कोइ प्यार या लगाव वाली बात नहीं थी, मगर आलोक से मानसी का रिश्ता कुछ अलग तरह का था”।
“मैं मानसी की बात से समझ गयी कि अगर स्नेहा और प्रभात की चुदाई मानसी के सामने ना हुई होती और मानसी ने उन दोनों की चुदाई की सिसकारियां ना सुनी होती, जिन सिसकारियों को सुन कर मानसी की चूत गरम हो गयी थी, तो शायद प्रभात और मानसी के चुदाई भी ना होती। उधर आलोक के साथ मानसी की चुदाई मानसी की पूरी मर्जी के साथ हो रही थी”।
“खैर, मैंने फिर मानसी से पुछा, “अच्छा मानसी फिर प्रभात ने आगे क्या किया”?
“आंटी जब प्रभात ने कहा, तुम्हें ट्रेंड होने में वक़्त लगेगा, चलो उठो लेटो, और अपने कुंवारी फुद्दी के दर्शन करवाओ। मैं उठ गयी और उठ कर खड़ी हो गयी”।
“प्रभात बोला, मानसी कपड़े तो उतारो, क्या ऐसी ही चुदाई करवाओगी”?
“जब मैं फिर भी नहीं हिली तो प्रभात ने ही मेरे कपड़े उतार दिए और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया”।
“प्रभात ने मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया लगा कर मेरी चूत ऊपर उठाई और चूत की फांकें चौड़ी कर के चूत का दाना चूसने लगा। मुझे तो प्रभात के मुंह से फुद्दी-फुद्दी सुनने से ही बड़ा मजा आ रहा था। मेरी चूत पहले ही गीली हुई पडी थी। प्रभात की इस चूत चुसाई में तो मुझे और भी बहुत ही मजा आने लगा, और मेरी चूत ने फर्रर्र से पानी छोड़ दिया”।
“कुछ देर बाद प्रभात उठा, और बोला, “क्या मस्त खुशबू है मानसी तेरी फुद्दी की”।
फिर प्रभात जैसे अपने आप से ही बोला, “ये लड़कियों की फुद्दी में से ऐसी मस्त करने वाली खुशबू आती है, तभी तो लड़के फुद्दी सूंघते ही चुदाई के लिए पागल हो जाते हैं”?
“फिर प्रभात उसी तरह ही जैसे अपने आप से ही बोला, “वैसे तो जानवर भी यही करते हैं। कुत्ते और सांड़ भी तो चोदने से पहले फुद्दी सूंघते चाटते ही हैं”।
“आंटी प्रभात की ये बात सुन कर तो नीचे लेटे हुए भी मेरी हंसी छूट गयी”।
“फिर प्रभात उठ कर मेरे ऊपर आते हुए बोला, “मानसी लगता है तुम्हारी फुद्दी लंड लेने के लिए तैयार हो चुकी है। पानी से भरी पड़ी है”।
“ये बोल कर प्रभात ने मेरी टांगें चौड़ी करके लंड चूत के छेद पर रखा, और धीरे-धीरे लंड चूत में लंड ऊपर-नीचे करने लगा। कुछ देर ऐसा ही करने के बाद प्रभात ने लंड एक जगह रोक दिया और अंदर की तरफ हल्का सा दबाया”।
“मुझे साफ़ पता चल रहा था प्रभात का लंड मेरी चूत के छेद पर था। प्रभात धीरे-धीरे लंड चूत के अंदर करने लगा। आधा लंड चूत के अंदर करने के बाद प्रभात रुक गया”।
“प्रभात का लंड चूत में जाने से मैं मस्ती मैं आ चुकी थी। मुझे बड़ा मजा आ रहा था। जब प्रभात आधा लंड चूत में डालने के बाद रुक गया तो मैंने सोचा प्रभात रुक क्यों गया, लंड पूरा डाल क्यों नहीं रहा”।
“तभी प्रभात ने अपनी बाहें मेरे पीछे करके मुझे जकड़ा और एक झटके से लंड पूरा बिठा दिया। मुझे चूत के अंदर बड़ी जलन सी हुई, दर्द भी हुई। मन कर रह था प्रभात को बोलूं थोड़ा रुक जाए। मगर प्रभात नहीं रुका और मुझे चोदने लगा”।
“दस मिनट की चुदाई के बाद अचानक मुझे मजा आने को हो गया। मेरे चूतड़ हिलने लगे। मैंने प्रभात को अपनी टांगों में जकड़ लिया। मेरे मुंह से आआह प्रभात… बड़ा मजा आ रहा है… आअह प्रभात लगाओ और… की आवाजें निकल रहीं थीं।
“प्रभात के लंड के कुछ और धक्कों के बाद मेरे चूतड़ अपने आप ही जोर से हिले और मुझे मजा आ गया। मेरी चूत झड़ गयी। पानी निकल गया मेरी चूत का”।
“तभी प्रभात ने मेरे कान में कहा, “मानसी मेरा निकलने वाला है , क्या करूं लंड निकाल लूं या अंदर ही छुड़ा दूं? जल्दी बोलो नहीं तो तुम्हारी चूत में ही निकल जाएगा”।
“मगर मुझे बड़ा मजा आ रहा था। मेरा कुछ बोलने का मन ही नहीं हो रहा था”।
“जब मैंने प्रभात को नहीं छोड़ा, और प्रभात के पीछे से टांगें नहीं हटाई तो धक्के लगाते-लगाते तभी प्रभात ने जोर की आवाज निकाली, “आआह मानसी निकला मेरे लंड का पानी तेरी चूत के अंदर”।
“आंटी मुझे साफ़ लग रहा था प्रभात के लंड का गर्म-गर्म पानी मेरी चूत में गिर रहा था”।
“मजा मुझे भी आ चुका था मगर मैंने अपनी टांगें प्रभात के पीछे से नहीं हटाई और प्रभात को टांगों में जकड़े रखा। मैं एक बार और चुदाई का मजा लेना चाहती थी। मुझे एक चुदाई और चाहिए थी”।
“प्रभात भी समझ गया कि मैं एक बार और चुदवाना चाहती हूं। प्रभात ने मेरे होठ अपने होठों में लिए और चूसने लगा। कुंवारी टाइट चूत की एक और चुदाई के ख्याल से ही प्रभात का लंड फिर सख्त होने लगा”।
“प्रभात ने मेरे होंठ छोड़ कर कहा, “मानसी एक बार और चुदाई करवाओगी? मेरा लंड फिर खड़ा हो गया है। मैंने प्रभात के पीछे टांगें कसते हुए बस “हूं-हूं ” की आवाज निकाली”।
“प्रभात ने मुझे फिर चोदना शुरू कर दिया। इस चुदाई मैं तो मजा ही मजा आ रहा था। मेरे चूतड़ अपने आप घूम रहे थे। अब मैं आअह्ह आह के साथ कुछ और भी बोल रही थी, “आह प्रभात ये तो बड़ा मजा आता है आआह प्रभात, हां ऐसे ही करो… हां और जोर से… आह प्रभात… आआआह”।
“उधर प्रभात भी बोल रहा था, ” आआह मानसी क्या चूत है तेरी… कसी हुई… टाइट… आअह लंड जकड़ा हुआ है तेरी फुद्दी ने मानसी”। कुछ देर की इस चुदाई के बाद प्रभात का गर्म पानी मेरी चूत में जैसे ही निकला मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया”।
“प्रभात कुछ देर मेरे ऊपर वैसे ही लेटा रहा फिर लंड मेरी चूत में से निकाल कर चला गया”।
“मैं चुदाई की मस्ती में कुछ देर ऐसे ही लेटी रही”।
“थोड़ी देर के बाद ही स्नेहा अंदर आयी और मेरे पास बैठ कर बोली, “क्या बात है मानसी, पहली बार में ही दो बार चुदवा ली? बड़ा खुश लग रहा था प्रभात। लगता है चुदाई का पूरा मजा दिया तूने उसे”।
“फिर स्नेहा ने मेरी चूत वाली जगह का बिस्तर देखा। वहां थोड़ा खून लगा हुआ था। स्नेहा बोली, “मानसी तेरी चूत कुंवारी थी। प्रभात ठीक ही बोल रहा था। कह रहा था उसने तेरी चूत की सील तोड़ी है। बोल रहा था तेरी चूत बड़ी टाइट है”।
“चल बाथरूम जा कर फ्रेश हो जा। मैं चद्दर बदल देती हूं”।
“मैं कपड़े उठा कर बाथरूम चली गयी। फ्रेश हो कर वापस ड्राईंगरूम में आई तो स्नेहा चाय बना चुकी थी। चाय पीते पीते मुझे स्नेहा ने एक गोली का रैप्पर दिया। वो i-pill का रैप्पर था। स्नेहा बोली, “मानसी मेरे पास ये गोलियां थी, मगर खत्म हो गयी हैं। किसी केमिस्ट से ये गोली ले कर 24 घंटे के अंदर खा लेना। प्रभात बता रहा था दोनों बार की चुदाईयों उसके लंड का पानी तेरी चूत में ही निकाला है”।
“फिर स्नेहा जैसे अपने आप से ही बोली, “साला चूतिया मजे के मारे वो लंड बाहर निकाल ही नहीं सका होगा”।
“मैंने रैप्पर तो ले लिया, मगर मुझे समझ नहीं आ रहा था केमिस्ट से गोली कैसे मांगूंगी”।
शाम को घर पहुंची तो मम्मी हस्पताल जा चुकी थी। अब घर में बस पापा ही घर पर थे। मैं सोच रही थी पापा को कैसे ये गोली लाने के लिए बोलूंगी। वो क्या सोचेंगे – उनकी बेटी चूत चुदवा कर आयी है”?
“पापा मिले तो मेरी उनसे नजरें मिलाने की हिम्मत ही नहीं हुई। मैं सीधा अपने कमरे में चले गयी”।
“जब भी मैं घर लौटती थी, कभी भी पापा से बात किये बिना अपने कमरे में नहीं जाते थी। उस दिन जब मैं बिना पापा से बात किये बिना कमरे में चली गयी तो पापा को जरूर कुछ अजीब सा लगा होगा। थोड़ी देर में पापा कमरे में आ गए और बोले, “क्या बात है मानसी, तबियत तो ठीक है”?
“मैंने कोइ जवाब नहीं दिया तो पापा ने वही बात दुबारा पूछी, “मानसी तबियत ठीक है”।
“मैं परेशान हो रही थी कि क्या बात करूं, कैसे बात करूं। फिर मैंने सोचा कोइ और चारा नहीं है बोलना तो पड़ेगा ही। मैंने उन्हें रैप्पर देते हुए कहा, “पापा ये i-pill लानी है”।
“पापा ने i-pill का रैपर पकड़ते हुए रैपर को उलट-पलट कर देखा और पूछा i-pill? तूने i-pill क्या करनी है मानसी? क्या तू…? पापा ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी”।
“पहले तो मैं चुप रही फिर मैंने बता दिया मैं एक लड़के के साथ सेक्स करके आयी हूं”।
“मैंने पापा को ये भी साफ़-साफ़ बता दिया कि उस लड़के प्रभात ने मुझे दो बार चोदा और दोनों बार उसका जो भी निकला वो मेरे अंदर ही निकला था। मैंने पापा को ये भी बता दिया कि सेक्स के दौरान खून भी निकला था”।
“पापा उठ कर खड़े हो गये के चेहरे पर गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था”।
“कुछ देर तो पापा ऐसे ही खड़े-खड़े कुछ सोचते रहे फिर पापा बिना मुझसे बात किये बाहर निकल गए और पापा ने बाजार से मुझे i-pill के चार पैकेट ला दिए”।
“इसके कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए। इस बारे में मेरी और पापा की इस बारे में कोई बात नहीं हुई”।
“मगर मैं प्रभात के साथ हुई अपनी चुदाई नहीं भूल पा रही थी। दो बार की चुदाई का भरपूर मजा लेने के बाद मैं तो यही सोचती रहती – ‘कमाल है, इतना मजा आता है चुदाई में? प्रभात और अपने चुदाई के बारे में सोचते सोचते मैं अपनी चूत में उंगली ले कर चूत का पानी छुड़वा लेती थी”।
“एक दिन शाम को मैं थकी हुई आई और अपनी जींस भी नहीं उतारी और सो गयी। पापा ड्राईंग रूम में बैठे TV पर कोइ मैच देख रहे थे। पता नहीं मैं कितनी देर सोती रही। उठी तो साढ़े दस ग्यारह बजे हुए थे”।
“ड्राईंग रूम के लाइट बंद थी। मेरे कमरे और ड्राईंग रूम का बाथरूम एक ही है। बाथरूम का एक दरवाजा मेरे कमरे में खुलता है, दूसरा ड्राईंग रूम में खुलता है”।
“मैं कपड़े बदलने के लिए बाथरूम गयी और पेंट उतार कर पायजामा पहनने के लिए खूंटी की तरफ देखा जहां मेरा पायजामा लटका हुआ था। देखा तो पायजामा वहां नहीं था”।
“ड्राईंग रूम का गलियारे की तरफ वाला दरवाजा खुला था। सामने पापा मम्मी के कमरे का दरवाजा थोड़ा सा खुला था और अंदर छोटा बल्ब जल रहा था। मैं उत्सुकतावश नंगी ही कमरे के तरफ बढ़ गयी। मैंने ऐसे ही दरवाजे में से देखा तो जो मैंने देखा, वो देख कर मैं हैरान हो गयी”।
“मेरा पायजामा पापा के हाथ में था और पापा उसे सूंघते हुए कुछ-कुछ बोल रहे थे। मैं ये देख कर हैरान हो गयी। पापा ये मेरे पायजामे को क्या कर रहे है? मैंने धीरे से दरवाजा खोला और दबे पांव अंदर चली गयी”।
“मैं अंदर कमरे में बेड के पास पहुंची तो मुझे साफ़-साफ दिखाई देने लगा। पापा के एक हाथ में मेरा पायजामा था और दूसरे हाथ में अपने अपना लम्बा लंड पकड़ा हुआ था और पापा हाथ से लंड को आगे पीछे कर रहे थे, और साथ ही आआह रागिनी… आअह रागिनी बोल रहे थे”।
“मैं समझ गयी पापा मेरे पायजामे में से मेरी चूत की गंध ले रहे हैं। मुझे प्रभात की बात याद आ गयी जो उसने मुझे चोदने से पहले मेरी चूत चूसते हुए कही थी। प्रभात ने कहा था, “ये लड़कियों की फुद्दी में से ऐसी मस्त करने वाली खुशबू कैसे आती है”?
“सच आंटी मुझे सच में पापा पर बड़ा तरस आया और मुझे उस वक़्त बड़ा बुरा सा भी लगा कि पापा को मम्मी की चूत सूंघने चूसने को नहीं मिल रही इसलिए अब मेरी चूत की खुशबू लेते-लेते ही मुट्ठ मार कर मजा निकाल रहे हैं”।
“पापा की आंखे बंद थी, और पापा जोर जोर से लंड को आगे-पीछे कर रहे थे। नीचे से तो मैं नंगी ही थी। पापा का लंड देख कर मेरी चूत भी गीली सी होने लगी। मुझे अपनी और प्रभात की चुदाई याद आ गयी। मैंने कुछ सोचा और कहा, “पापा ये क्या कर रहे हो”?
“पहली बार तो पापा ने सुना नहीं। मैंने दुबारा आवाज लगाई और कहा, “पापा ये क्या कर रहे हो”? इस बार पापा ने आखें खोली, और मुझे नंगी बेड के पास खड़ी देख कर मुट्ठ मारना ही बंद कर दिया”।
मैंने फिर कहा, “पापा ये क्या कर रहे हो, मेरा पायजामा क्यों सूंघ रहे हो। मैं कहां थी? मुझे बुला लेते”।
“पापा हैरानी से मेरी तरफ देखते जा रहे थे मगर बोल कुछ नहीं रहे थे”।
“फिर ना जाने मुझे क्या सूझा, मैंने अचानक से पायजामा पापा के हाथ से ले कर बेड पर फेंक दिया और मैंने अपनी दोनों टांगें पापा के मुंह के दोनों तरफ करके घुटनों के बल पापा के मुंह के ऊपर बैठ गयी”।
“मैंने नीचे हाथ करके अपनी चूत की फांकें खोलीं और चूत पापा के मुंह से सटा दी और बोली, “लो पापा, अब जो भी करना है करो”।
“मेरे चूतड़ पापा के मुंह की तरफ थे और मेरा मुंह पापा के लंड की तरफ था। पापा का लंड डंडे की तरह खड़ा था। पापा का खड़ा लंड प्रभात के खड़े लंड से कम से कम डेढ़ गुना लम्बा था”।
“कुछ देर तो पापा ऐसे ही लेटे रहे। मैं चूत पापा के मुंह पर आगे-पीछे करती रही। मेरी चूत में से पानी टपक-टपक कर निकल रहा था। जल्दी ही पापा ने मेरी चूत चूसनी शुरू कर दी”।
“चूत चूसते-चूसते पापा मेरे चूतड़ों को सहला रहे थे”।
“चूत तो मेरी प्रभात ने भी चूसी थी, मगर पापा की चूर चुसाई में मुझे बहुत मजा आ रहा था। अचानक से चूत चूसते-चूसते पापा ने मेरी चूतड़ों से अपने हाथ हटाए पीछे अपने हाथ मेरी बाहों के नीचे से निकाल कर मेरी चूचियां पकड़ ली और धीरे-धीरे चूचियों के निपल मसलने लगे”।
“कुछ देर बाद ना जाने क्या हुआ, पापा ने मेरा सर अपने लंड पर झुका दिया। मुझे लगा पापा मुझे लंड चूसने के लिए कह रहे थे। मैंने पापा का लंड मुंह में लिया और चूसने लगी”।
“मेरी बीस साल के जवान चूत उस वक़्त लेसदार नमकीन पानी से भरी पड़ी थी, जो मेरी चूत ने पापा को मुट्ठ मारते देख कर छोड़ा था। पता नहीं पापा को मेरी चूत में कोइ खुशबू आ रही थी या पापा को मेरी चूत के पानी में कोइ स्वाद आ रहा था”।
“पापा जोर-जोर से मेरी चूत चाट रहे थे। उधर पापा मेरी चूत का पानी चाटते जा रहे थे, पीते जा रहे थे, इधर मेरी चूत फर्रर्र फर्रर्र और ज्यादा पानी छोड़ती जा रही थी”।
“अचानक पापा ने मुझे उठाया और कहा, “बस मानसी”।
इतना कह कर पापा ने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया। पापा ने मेरे घुटनों के नीचे अपने कुहनियां फंसाई और मुझे आगे की तरफ कर दिया। मेरे चूतड़ और चूत ऊपर उठती चली गयी और टांगें चौड़ी होने के कारण चूत थोड़ी सी खुल गयी”।
“पापा अपना लंड मेरी चूत में ऊपर-नीचे कर रहे थे। लंड ऊपर नीचे करते-करते एक जगह पापा ने लंड रोक लिया। पापा के लंड को मेरी चूत का छेद मिल गया था। पापा ने एक पल के लिए लंड को वहीं रोक लिया। मुझे याद आ गया प्रभात ने भी कुछ ऐसे ही किया था”।
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