मां बेटे की चुदाई – एक मनोचिकित्सक की ज़ुबानी-2

पिछला भाग पढ़े:- मां बेटे की चुदाई – एक मनोचिकित्सक की ज़ुबानी-1

हां तो हम बात कर रहे थे साईंस की तरक्की की। तरक्की का आलम तो ये है कि रबड़ के लंड ही नहीं, रबड़ की चूत, रबड़ की गांड, रबड़ के मम्मे, रबड़ के होंठ – चुदाई के मजे लेने के लिए सब कुछ मिलता है – बस जान पहचान होनी चाहिए।

वैसे जो मजा सच-मुच के लंड से आता है वो इन नकली रबड़ के लंडों में कहां। वैसे मेरी तो कोशिश होती है इन चुदाई के खिलौनों का कम से कम इस्तेमाल किया जाये जाए, इमरजेंसी में। इमरजेंसी, हिंदी में कहा जाये तो आपातकालीन में। अब अगर आधी रात को चूत गरम हो ही जाए, और लंड मिलने की कोइ सूरत ना हो, तो कोइ कर भी क्या सकता है? ऐसे ही मौके पर ये लंड और दूसरी चीजें काम आती हैं।

मैं जब कभी कानपुर से बाहर जाती हूं और किसी होटल में रुकती हूं तो कभी-कभी वहां भी चुदाई करवा लेती हूं।