पिछला भाग पढ़े:- राजू और उसके प्यारे सन्तोष मौसा-3
शाम हो ही चुकी थी। राजू को पानी पिला कर होश में लाकर थोड़ी देर बाद दोनों घर आ गये। राजू घर आते ही बिस्तर पर सो गया। 9 बजे जागा तो देखा बिस्तर पर एक पुरानी बनारसी साड़ी, ब्लाउज, और पेटीकोट रखा था। साथ ही पूरे बिस्तर पर फूल पड़े थे।
राजू सुबह से तीन बार मौसा के लंड का रसपान कर चुका था। थकान होती लेकिन हवस का आगे वो थकान कुछ भी नहीं होती। उसके अंदर की रंडी ना जाने कहां से ताकत ले आती। राजू जब सो कर जागा, तो उसने अपने पास एक बनारसी साड़ी को रखा देखा। बाहर आया तो मौसा खाना बना रहे थे।
वो बोले: आज तो मैं भी बहुत थक गया था। अभी कुछ देर पहले ही सो कर उठा हूं। तेरी मौसी के कपड़े बिस्तर पर रखे हैं। बाथरूम में बाल साफ करने की मशीन भी हैं। और शाम में जो मेकअप का सामान मिला वो भी ले आया हूं। तू जल्दी से नहा कर तैयार हो जा। आज से तू मेरी पत्नी होगी, और अब से तेरा नाम राजू नहीं रज्जो होगा। अब जल्दी से तैयार हो जा रज्जो।
कह कर मौसा ने सब्जी का छौंक लगाया। मौसा की बातों को सुन राजू का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा, और वो मन ही मन ख़ुद को एक औरत मानने लगा, अपने मौसा की दूसरी पत्नी। राजू ने गांड तक के सारे बाल साफ करके खुद को चिकना बनाया। पहले काले रंग की पेंटी और ब्रा पहन कर ख़ुद को बहुत देर निहारा। फिर पेंटी के अंदर अपने लंड को कपड़े से बांध दिया, तांकि वो पूरी तरह से औरत लगे बिना किसी लंड के उभार के।
पेटीकोट ब्लाउज़ पहन कर ख़ुद को मेकअप से तैयार किया। पहली दफ़ा लगा रहा था तो उतना कुछ समझ नहीं आया। लेकिन फिर भी काफी मेहनत के बाद राजू पूरी तरह से रज्जो में बदल गया। साड़ी को बांध कर वो दरवाजा खोल कर बिस्तर पर बैठ गया। आंगन में बैठे सन्तोष को दरवाजा खुलना एक बुलावे के रूप में लगा। वो अंदर आएं तो देखा अंधेरे में राजू पूरी तरह रज्जो बन कर बेड पर बैठा था।
उन्होंने लाइट जलाई तो उसके हाथ में एक छोटा सा बैग था, जिसमें से पहले पायल निकाल कर उन्होंने राजू को पहनाई। उसके बाद उसके मुलायम हाथों में सोने की चूड़ियां चढ़ाई, उसे बिस्तर से उठा कर शीशे के सामने खड़ा किया, और पीछे से एक लंबा सा हार निकाल कर जब राजू के गले में पहनाया, तो राजू की गांड में सन्तोष का लंड उसे चुभता हुआ महसूस हुआ।
संतोष ने बताया: ये गहने तेरी मौसी के हैं। और अब से तू मेरी पत्नी हैं, तो तू पहन इन्हें।
उन्हीं कपड़ो और गहनों में सन्तोष ने राजू को अपने हाथ से खाना खिलाया। खाना खाने के बाद राजू ने सन्तोष को दारू का गिलास बढ़ाया, पर आज सन्तोष गिलास से नहीं बोतल से पीने के मन में था। सन्तोष ने गिलास राजू के मुंह में लगाया। पहली बार तो उसने मना किया, पर जब सन्तोष ने उसके मुंह को कस कर दबा कर खोला तो उसे वो गिलास पीना पड़ा।
उसके बाद एक घूंट सन्तोष बोतल से खुद पीता और एक राजू के मुंह में उढ़ेलता। इंग्लिश की हॉफ दोनों को मदहोश कर रही थी, कि तभी सन्तोष ने अपना असन्तोष दिखाया और राजू को जोर से बेड पर दे मारा।
अचानक हुई इस चीज़ से राजू को डर जाना चाहिए था। लेकिन राजू के अंदर की रज्जो नाम की रंडी तो कब से इसी चीज़ का इंतज़ार कर रही थी। तो रज्जो को इसमें मजा आया। सन्तोष ने सबसे पहले रज्जो के ब्लाउज को एक झटके में ही खोल डाला, और साड़ी खोल कर पेटीकोट के नाड़े को खोल दोनों चीज़ों को एक साथ नीचे खींच कर उतार दिया। राजू के पूरे बदन पर सिर्फ काली पैंटी ब्रा और वो गहने थे।
राजू को नंगा करने के बाद मौसा ने अपने पायजामे का नाड़ा खोला, और खोलते ही वो फनफनाता लंड सामने आ गया। आज मौसा ने अंडरवियर नहीं पहना था। सन्तोष ने शीशे के पास रखी छोटी वेसिलीन की डिब्बी से आधी क्रीम से अपना लंड चिकना किया, और बची आधी क्रीम को राजू की गांड में दो उंगलियों से अंदर तक भर दिया।
अब राजू गांड में 2 उंगली बहुत आराम से ले रहा था। ये देख कर ही सन्तोष को सन्तोष मिला। राजू को घोड़ी बना कर सन्तोष ने जैसे ही लंड गांड के छेद पर टिकाया, राजू ने अपनी हवस की वजह से गांड को लंड की तरफ को खिसकाया, जिससे देख संतोष जोश से भर गया और पूरा टोपा एक झटके में गांड में उतार दिया।
आगे के काम में राजू ने अपनी गांड को खोल कर पूरा साथ दिया, और सिर्फ तीन झटकों में ही मौसा अपना पूरा लंड राजू में उतार चुके थे। शुरुआत में मौसा ने राजू की टाइट गांड का मजा लिया, और धीरे-धीरे ही काम किया। लेकिन 5-7 मिनट में लंड गांड में अंदर-बाहर ऐसे जाने लगा, जैसे गांड रोज चुद रही हो। उधर राजू भी गांड को आगे-पीछे करके मौसा को मजे देने में लगा था।
मौसा और राजू की ये चोदम पट्टी की रेलगाड़ी अगले डेढ़ घंटे ऐसे ही चली, जिसमें कभी मौसा ने राजू को कुतिया बनाया, तो कभी अपने ऊपर बिठाया। कभी राजू को बिस्तर पर पट लिटा कर उसकी गर्दन पर पैर और गांड में लंड किया, तो कभी कंधो पर पैर रख कर उसे खूब चोदा।
बीच-बीच में दारू की बची बोतल को भी खाली किया। पूरे एक घंटे तक कमरे में फक्क-फक्क पट्ट-पट्ट की आवाज़ आती रही। कभी रज्जो दर्द से कराहती, तो कभी मजे से आह आह करती। उसका साथ देने के लिए मौसा भी भरपूर चोदम चादी किये जा रहे थे। उसके पैरों में पड़ी पायल मौसा के अंडों के राजू की गांड पर लगने के साथ ही आवाज़ कर रही थी। तो कभी चूड़ी बोल रही थी।
पूरा कमरा सेक्सी आवाजों से गूंज रहा था। गांड मरवाते हुए राजू दो बार झड़ा। लेकिन मौसा का मूसल टस से मस नहीं हुआ। डेढ़ घंटे बाद मौसा ने राजू को घोड़ी बना कर लगातार 5 मिनट तक तेज स्पीड के धक्के लगाए, जिससे राजू को लगा कि लंड गांड से होता हुआ हलक में ही जाएगा।
इतनी देर और तेज धक्कों के बाद 2 मिनट तक राजू की गांड को मौसा के लंड से मिलने वाले रस की धार गांड में जाती हुई मालूम हुई। माल रिस-रिस कर नीचे टपकने लगा, और मौसा वही निढाल हो गये। दोनो गांड और लंड को बिना अलग किये वैसे ही सो गए
अगले दो दिन तक राजू बुखार और कमजोरी के मारे बिस्तर से नहीं उठा। मौसा ने उसकी दवाई और दारू में कोई कसर नहीं छोड़ी। 3 दिन में ही राजू एक दम मस्त होकर फिर चुदने को तैयार होता भी क्यों ना, पिछले 3 दिन से रोज रात को मौसा उसे अपने लंड का रस जो पिला रहे थे।।
गर्मी की छुट्टियां ख़त्म होने तक राजू की गांड को मौसा ने हर तरह से हर जगह बजाया और उसे पूरा गांडू बना दिया। राजू वापस घर आया और यहां फिर बहुत से लंड देखें, लेकिन राजू को किसी और से गांड मरवाने का मन ही नहीं करता। मन करता तो बस सन्तोष मौसा से मरवाने का। आगे की कहानी फिर कभी।