होली पर मां की सामूहिक चुदाई-2

पिछला भाग पढ़े:- होली पर मां की सामूहिक चुदाई-1

अरोड़ा अंकल से अब रहा नहीं जा रहा था। “अरे अब देख कर बता भाभी जी चिकनी है कि झांट लेकर होली खेलने आई है?”

त्रिपाठी अंकल 2 सेकंड के लिए अपना मुंह मां के मुंह से बाहर निकाले, और बोले, “अबे शर्मा क्यों रहा है, ख़ुद आकर देख ले ना”। अरोड़ा अंकल अपने लंड को टटोलते हुए पानी में कूद पड़े। वो मां के पीछे खड़े होकर सीधा हाथ उनकी टांग के बीच में डाल कर उनकी चूत को मलने लगे।

“भाभी जी तो चिकनी है”, बोलते-बोलते अंकल ने अपनी उंगली मां की चूत के अंदर डाल दी। दूसरे हाथ से वो मां की गांड को मल रहे थे। मां कोशिश बहुत कर रही थी कि उनको रोके, उनका दिमाग़ कह रहा था कि उन्हें ये नहीं करना चाहिए। लेकिन उनका दिल और उनका शरीर साथ नहीं दे रहे थे।

उधर त्रिपाठी अंकल 5 मिनट तक चुम्मी लेकर गरम हो चुके थे। उन्होंने मां की साड़ी पूरा गोल-गोल घुमा कर उनके बदन से निकाल दी। अब वो सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी। उनकी पैंटी अभी भी घुटने पर अटकी थी।

“पहले रंगे? या पहले चोदे?” शुक्ला अंकल से रहा नहीं जा रहा था।

“अरे अकल के दुश्मन पहले अच्छे से चोद ले, फिर रंग लगा कर भाभी जी को घर भेज देंगे।” किसी ने तो बोला।

मां ये सुन कर मुंह बना ली। “प्लीज़ मुझे जाने दो। चाहे जितना रंग लगा लो, जहां चाहे लगा लो, लेकिन प्लीज़ वो मत करो।” मां अपने हाथ जोड़ने लगी। लेकिन हाथ जोड़ने के बाद उन्होंने अपने पाओं नहीं जोड़े।

त्रिपाठी अंकल मां के ब्लाउज का हुक खोलने लगे। मां बार-बार धक्के मार कर उनके लिए मुश्किल कर रही थी। लेकिन मुंह से बिलकुल आवाज़ नहीं निकाल रही थी। एक तो ऐसे ही ब्लाउज गीला होने से खोलना मुश्किल हो रहा था। जब मां ने 2-3 बार रोक दिया तो अंकल बिलकुल से ग़ुस्सा गए।‌ फिर शुक्ला अंकल बोले, “अरे क्यों गुस्सा हो रहे हो? खड़ी तो है ये रण्डी की तरह चुदने के लिए”। मां फिर दुबक कर पानी में बैठ गई थी।

सब ने एक झलक मां को देखा और उसके आधे नंगे बदन को ऊपर से नीचे तक निहारा। फिर ज़ोर से ठहाका मार कर हंस पड़े। “बिलकुल रण्डी लग रही है वंदना भाभी आज। बस पूरी नंगी हो जाये फिर हम इसे अपना लंड खिलायेंगे।” कहते-कहते शुक्ला अंकल मां के पेटीकोट का नाड़ा खोलने लगे। मां ने नाड़ा बहुत टाइट से लगाया था, और बहुत ज़्यादा गांठ लगा रखी थी। अंकल कोशिश करते रहे लेकिन नाड़ा नहीं खुला।

मां के मुंह से हंसी आ गई। अंकल का चेहरा ग़ुस्से से लाल हो गया। “उधर त्रिपाठी अंकल फिर से ब्लाउज का हुक खोल रहे थे, और मुश्किल से एक हुक खोल पाये थे। मां से रहा नहीं गया और हंसते हुए बोली, “लगता है तुम लोगों की बीवियों को तुमसे कपड़े खुलवाने की आदत नहीं है।” मां ने अपनी बात ख़त्म भी नहीं की थी, कि यादव अंकल पीछे से मां के चूत में उंगली डाल दिये।

पहले एक, फिर दो, फिर तीन, और खूब ज़ोर-ज़ोर से उंगली अंदर-बाहर करने लगे। यादव अंकल ने मां का नाड़ा पकड़ा,‌ और 2-3 झटके में ही उसके टुकड़े कर दिये। पूरा पेटीकोट पांव से सरक कर नीचे आ गया। अब उसकी चूत साफ़ नज़र आ रही थी। समझ नहीं आ रहा था कि उसने शेव किया था, या स्वाभाविक रूप से चिकनी थी। त्रिपाठी अंकल ने फिर थोड़ा सब्र दिखाया और एक दो हुक और खोलने की कोशिश की।

अब उनसे और रहा नहीं जा रहा था और उन्होंने भी एक ज़ोर का झटका देकर सारे हुक फाड़ डाले। पीछे से यादव अंकल ने मां का ब्रा का हुक खोल दिया, और उनके कंधे से ब्रा की तनी‌ को नीचे सरका दिया, और चूचे दोनों बाहर खुली हवा में कर दिये।

मां के नंगे चूंचे बाहर लटकते ही जैसे अंकल लोगों की आंख फटी की फटी रह गई। उनके भूरे-भूरे निपल उत्तेजना से लंबे हो गए थे। अरोड़ा अंकल ने मां की एक चूची को मुंह में लिया और चूसने लगे। यादव अंकल ने दूसरा वाला मुंह में लिया। अब मां भी कुछ नहीं बोल रही थी, और बस आंखें बंद करके आहें भर रही थी।

त्रिपाठी अंकल से अब रहा नहीं जा रहा था, और उन्होंने जल्दी से अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपना खड़ा लंड बाहर निकाला।

मां अब फिर से बोली: प्लीज़, मैं नंगी तो खड़ी हूं। जहां चाहे रंग लगा लो, बस ये सब मत करो।

“चुप रण्डी, नंगी खड़ी है और बड़ी-बड़ी बात कर रही है। पकड़ मेरा लंड और अच्छे से हिला, अभी और बड़ा होगा”। करीब 6 इंच का लंड देख कर मां तो डर गई कि और कितना बड़ा होगा। धीरे-धीरे मां ने उसको आगे-पीछे किया तो वो एक इंच और लंबा हो गया। अब अंकल ने लंड को मां की चूत के ऊपर रखा, उनका कंधा पकड़ा, और धीरे-धीरे अंदर डालना शुरू किया।

पहले 2-3 धक्के में आधा अंदर घुस गया था, और मां ने अपनी आंखें बंद कर ली थी। वो बराबरी से अंकल के धक्कों का जवाब धक्कों से दे रही थी। इतने में यादव अंकल ने अपनी पैंट उतार दी, और अपना लंड लेकर खड़े हो गये।

अरोड़ा अंकल देख कर हंस कर बोले। “अबे रुक जा यादव, क्यों बेचैन हो रहा है? एक म्यान में दो तलवार नहीं जा सकती। भाभी जी रण्डी बन गई है आज, इसका मतलब ये नहीं कि चूत रंडियों वाली है। एक बार में एक ही डालते हैं।” सुन कर सब हंस पड़े।

यादव अंकल बोले, कौन सा मुझे चूत चाहिए अभी। मुझे तो भाभी जी का मुंह चाहिए। बोल कर वो पानी से बाहर निकल गये, और किनारे पर खड़े होकर मां का मुंह अपनी लंड पर लगाया, और एक झटके में अंदर डाल दिया। अब एक तरफ़ मां की चूत में त्रिपाठी अंकल घपा-घप कर रहे थे, और दूसरी तरफ़ यादव अंकल मुंह में डाल रहे थे।

मां धीरे-धीरे आह भरते हुए दोनों को अपने अंदर ले रही थी। अभी शुक्ला अंकल और अरोड़ा अंकल मां की दोनों चूचियों को चूस रहे थे। मां पूरी गरम हो रही थी और मुंह से आहें और आवाज़ निकाल रही थी।

इसके आगे की कहानी अगले पार्ट में पढ़ने को मिलेगी।

अगला भाग पढ़े:- होली पर मां की सामूहिक चुदाई-3