अगले दिन से मेरी और अभिषेक की एक नयी दुनिया शुरू हो गयी। अगला दिन रविवार था तो सारे बच्चे रविवार को देर से उठते हैं और कामवाली भी देर से ही आती है। लेकिन माँ होने के नाते मैं आदतन जल्दी ही उठ जाती हूँ।
सारे बच्चे सो रहे थे, तो मैं चुपके से अभिषेक के कमरे में चली गयी। मेरा बेटु सो रहा था। मैं उसके बगल में जाकर सो गयी। और उसके गालों को चूमने लगी। वो जाग गया और डर गया, “माँ, आप यहाँ?”
“हाँ मेरा बेटु, रात भर मैं सो नहीं पायी। तुम्हारी नींद पूरी हुयी या नहीं?” ये कह कर मैं उसके पयजामे के ऊपर से उसका लंड सहलाने लगी। पर उसने मेरा हाँथ पकड़ कर हटा दिया।
मुझे कुछ अजीब सा महसूस हुआ।
इतने में वो बोल पड़ा, “माँ, क्या हम ये ठीक कर रहे हैं? मैं तुम्हारे साथ ऐसा कुछ नहीं करना चाहता था। कल जो कुछ भी हुआ, क्या वो ठीक था? मैं अपनी ही माँ के साथ सेक्स कर रहा था!”
मैं उसके भोलेपन को समझ रही थी, अभिषेक एक अच्छा लड़का था। वो जानता था की समाज में ये चीज़ घोर पाप है। उसे लग रहा था शायद उसकी गलती है। पर गलती किसी की भी नहीं थी।
मैंने उसे शांत करते हुए, उसके सीने में हाँथ रखते हुए पूछा, “बेटु, क्या तू मुझसे प्यार करता है?”
उसने हाँ में सर हिलाया। तो मैंने कहा, “मैं जानती हूँ तुझे समझ नहीं आ रहा ये गलत है या सही। पर मुझे तुझमें तेरे पापा दिखाई देते हैं। जब कल पार्क में मैंने तुम्हे चूमा, मुझे भी पता नहीं क्या हुआ। जब तूने कहा की तू मुझे समझेगा तो मेरे कानो में ये बात तेरे पापा के आवाज़ में पहुंची। तेरे बोल चाल के तरीके में, तेरे आँखों में और सबसे अचंभित बात, तेरे लंड से भी मुझे तेरे पापा ही याद आ रहे। मुझे तुमसे प्यार हो गया है, बेटा। ठीक उसी तरह जैसे तेरे पापा से प्यार हुआ था। मैं चाहती हूँ, की तू मेरा ख्याल रखे जैसे पापा रखते थे, मुझे प्यार करे, जैसे पापा करते थे, मेरे साथ सम्भोग करे, जैसे पापा करते थे। कल जब तू मेरे साथ सेक्स कर रहा था तो मुझे 7 साल बाद सेक्स करते हुए ख़ुशी हुयी। कर्मचारी बस मेरे शारीरिक इच्छा को शांत करते थे। पर कल तेरे लंड को लेकर मेरे मन को शान्ति मिली, बेटु।”
वो चुपचाप मेरी बातों को सुनता रहा।
“मैं जानती हूँ की, तू अभी नया नया जवान हुआ है। कई जवान खूबसूरत लड़कियां तुझे मिलेंगी। तू उन्हें पसंद करेगा, प्यार करेगा। मैं खुद को तुझपे थोपना नहीं चाहती। मैं तुझसे प्यार कर बैठी हूँ, लेकिन मैं तुझे ज़बरदस्ती खुद से प्यार नहीं करवाना चाहती। बस, थोड़ी बहुत मेरी ख्याल रख, बस इतना ही मांग रही हूँ तुझसे।”
अपनी बात रख कर जैसे ही मैंने उससे नज़रें मिलाई, वो अपने सर को पास लाकर मेरे होंठो को अपने होंठ में लेकर चूमने लगा। जैसे ही ये कारवां आगे बढ़ पाता, बहार की घंटी बजी। कामवाली के आने का वक़्त हो गया था। हम वहीँ रुक गए।
हमारी ज़िन्दगी काफी खुशाल हो गयी। पर अभिषेक भी काफी परिपक्व था। बाकी बच्चों के सामने बिलकुल पुराने स्वाभाव में ही रहता। लेकिन किसी पल अगर अकेले होते तो एक प्रकार का यौन तनाव महसूस हो रहा था। मैं बस रविवार के बीतने का इंतज़ार कर रही थी।
सुबह हम हमेशा की तरह ही ऑफिस के लिए निकले। ऑफिस जाकर अभिषेक ने ड्राइवर से कहा की अब उन्हें पर्सनल ड्राइवर की ज़रूरत नहीं। तो हमारे ड्राइवर साहब घबरा गए की शायद उन्हें नौकरी से निकाल रहे हैं हम। पर अभिषेक ने हँसते हुए कहा की अब वो कंपनी के लिए काम करेंगे और हम एक नयी पिक-उप वैन खरीद रहे हैं। मैं भी हैरान थी। पर अब ये कारोबार अभिषेक अपने तरीके से बदल रहा था और मैं उसके हर निर्णय पे साथ खड़ी थी। हम सब गए और हमने नयी वैन खरीद ली। जब मैं शोरूम में कागज़ों पे दस्तखत कर रही थी तो अभिषेक मेरे कानो में फुसफुसाया, “ये आपके लिए, माँ!”
मैं कुछ समझी नहीं। पर मैं खुश थी की मेरा बेटु अब मेरे लिए सोचने लगा था।
वापस ऑफिस आ गए, बाकी कर्मचारियों को मिठाई दी हमने और मैंने ड्राइवर के हांथो घर पर भी मिठाई और नाश्ता भेजवा दिया अपने बाकी बच्चों के लिए।
6 बजे सबकी छुट्टी हुयी और सारे कर्मचारी घर जाने लगे। मैं भी अपना सामान समेट कर निकलने के लिए खड़ी हुयी तो अभिषेक ने मुझे आँखों ही आँखों में अभी बैठने को कहा।
ड्राइवर ने आके पूछा की क्या वो हमें आज आखरी बार घर छोड़ देगा? तो अभिषेक ने मना कर दिया, “आप आज जाके आराम कीजिये ड्राइवर साहब। कल से आपको बड़ी ज़िम्मेदारी मिलने वाली है। और कल से मैं गाड़ी चला के आऊंगा। आप सीधे ऑफिस में ही आईयेगा।”
ये सुन कर ड्राइवर चला गया। अभिषेक मैं गेट लॉक करके मेरे पास आया।
मैं चेयर में बैठी थी।
वो मेरे सामने आकर घुटने टेक कर बैठ गया, मेरा हाँथ पकड़ लिया, “माँ, मैं तुझे समझूंगा। तेरे हर ख़ुशी को समझूंगा, तेरे हर दुःख को समझूंगा। मैं तुझे प्यार करता हूँ। मेरा प्यार किस प्रकार का है मुझे नहीं पता। तुझे कैसा प्यार चाहिए मुझसे, वो भी नहीं पता। पर मैं तुझे खुश देखना चाहता हूँ। तुझे खुश रखना चाहता हूँ। जब पापा चले गए, मुझे पता है तू रोना चाहती थी, पर सिर्फ हम चारों को संभालने के लिए तूने अपने आँसुओं की एक बूँद भी हमारे सामने नहीं गिरने दी। मैं सबसे बड़ा हूँ पर फिर भी तेरे दुःख को समझ नहीं पाया। आज हम इतने अच्छी स्थिति में हैं क्यूंकि तू बहुत मज़बूत थी, माँ। तूने घर को भी संभाला, हम चारों को संभाला, दादा-दादी की सेवा की, बिज़नेस को गिरने नहीं दिया। हर इंसान को एक साथी चाहिए पर तेरे साथ तेरा दुःख सांझा करने के लिए कोई नहीं था। उस दिन तुझे वैसी अवस्था में देख मैं गुस्सा गया था, माँ। मुझे माफ़ कर दे। मैं तुझे हर तरह से खुश रखूँगा। तेरे शारीरिक, मानसिक, हर ज़रूरत को पूरी करूँगा।”
मेरा सर झुखा हुआ था और मेरे आँखों से मानो नदियाँ बह रही थी। उसने मेरे चेहरे को उठाया, अपने हांथो से पकड़ा और मेरे होंठों को चूमने लगा। बस, अब न कोई झिझक थी और न कोई शर्म। मेरे बेटे के मन में जो भी सवाल थे, उनके जवाब उसने खुद ही ढूंढ लिए।
उसके चुम्बन से मेरे आंसू ख़ुशी में बदल गए और अब मैं उसका उसकी प्रेमिका की तरह साथ देने लगी।
और अब हम धीरे धीरे एक दूसरे के सामने खुलने लगे। मैंने उसे कहा, “बेटु, मैं तुम्हारा लंड मुँह में लेकर चूसना चाहती हूँ।”
उसने झट से अपनी पैंट उतारनी शुरू की, इतने में मैं अपना ब्लाउज़ और ब्रा खोल कर उसके सामने आकर निचे बैठ गयी।
“ये तुम क्या कर रही हो, माँ?” उसने पूछा।
मैंने बिना कोई जवाब देते हुए, उसके लंड को पकड़ा और धीरे धीरे आगे पीछे करने लगी। उसका लंड अब बड़ा हो गया था। मैंने अपने सर को आगे बढ़ाया और उसका 6 इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा लंड अपने मुंह में लेकर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी।
उसने सिसकारी लेनी शुरू कर दी, “ओह माँ, चुसो, ठीक से चुसो, पूरा अंदर लेलो अपने मुंह में, माँ। बहुत अच्छे से चुस्ती हो तुम, माँ।”
मैं उसके लंड को बिलकुल लॉलीपॉप की तरह ज़ोर ज़ोर से चूस रही थी। मेरा बेटा अब धीरे धीरे धक्के देने लगा था और मेरे सर को पकड़ कर मेरा मुँह चोद रहा था। बिलकुल अंदर तक, मेरे गले के दिवार तक अपने लंड को धकेल रहा था। और मेरे मुंह से “गौ गु गौ गो गौ उघ गौ” की आवाज़ आ रही थी।
और मेरा मुँह चोदते चोदते वो मेरे अंदर ही झड़ गया और मैं उसके सारे रस को पी गयी।
मैं उठी, अपने पुरे कपड़े खोले, और पैर फैला कर लेट गयी। अभिषेक अब अपने लंड को फिरसे खड़ा करता हुआ मेरे पास आया और मुझे चोदने की ओर बढ़ा।
तो मैंने कहा, “बेटु, अभी चोद मत। मेरी चुत चाँट दे। तेरे पापा के जाने के बाद मेरे चुत की चंटाई नहीं हुयी है इतने सालो से। प्लीज, चाँट ले। आज झांटों के ऊपर से ही चाँट दे। कल से मैं तेरे लिए हर रोज़ अपनी झांटें साफ़ करके आउंगी।”
उसने मेरे चुत पे जैसे ही अपनी जुबां रखी, मेरे मुंह से काफी ज़ोर से “आआह” निकल गयी।
बेटु अब मेरे चुत को धीरे धीरे चाँटने लगा, बीच बीच में अपनी जीभ से चोदता और फिर चुत की दीवारों को अंदर से चाँटता।
“आह बेटु, आह शोना। और प्यार कर अपनी माँ को बेटा। मेरी चुत हर रात रोती थी, किसी मर्द के जुबां को तरसती थी। बहुत सताया है इसने मुझे, बेटु, आह, ओह, ओह्ह, उफ़, आह, ओह्ह बेटु, बेटु ज़ोर से चाँट, बेटु। मेरा पानी निकाल दे, मेरे शोना”। मैं बड़बड़ाती रही और अपने दूदू को मसलते रही। अपने दूदू के निप्पल को भींच रही थी, मसल रही थी।
करीब 15 मिनट तक मेरा बेटा मेरी चुत को चाँटते रहा और फिर मैं पूरी झड़ गयी। और उसका पूरा चेहरा मेरे रस से भींग गया।
मैं हँसते हुए उठी और उसके चेहरे को अपने हाँथ से साफ़ करने लगी, “हाय रे मेरा बेटु, मेरी जान। पूरा गन्दा कर दिया तेरे चेहरे को।”
और फिर उसके होंठो को चूमने लगी और वो मेरे दूदू को मसलने लगा। बीच बीच में वो चुम्बन तोड़ कर मेरे दूदू को चूसता और फिर होंठो को चूमने लगता।
मैं और अभिषेक एक दूजे के साथ लिपट कर टेबल पर लेट गए।
कुछ मिनटो के अंतराल के बाद अभिषेक मेरे दूदू को अपने बड़े पंजो में पूरा पकड़ कर काफी ज़ोर ज़ोर से दबाने और मसलने लगा।
“आह, बेटु, दर्द हो रहा है। इतने ज़ोर से मत दबा।” और उसके गाल पे हलके से थपड़ मारा।
अब धीरे धीरे अभिषेक के अंदर का मर्द जाग रहा था। अब वो मेरे ऊपर अपना कण्ट्रोल लेना चाहता था। ये स्वाभाविक है।और मुझे भी कुछ ऐसा ही चाहिए था।
उसने मेरे गांड के गोलाई पे हाँथ फेरा और एक ज़ोर का चांटा मारा।
“आह”, मुझे हल्का सा दर्द हुआ पर अच्छा लगा। मेरे नितम्बों पे थप्पड़ मारने की हिम्मत सिर्फ आलोक जी में थी और किसी में नहीं। पर मैं कुछ देर के लिए भूल गयी थी अभिषेक उन्ही का बेटा है।
उसका लंड कुछ देर में खड़ा होने लगा। “चोद दे बेटा, अपने लंड को घुसा दे मेरे चुत में। कबसे तेरा इंतज़ार कर रही है।”
जब चुत को भूख लगती है तो मज़बूत से मज़बूत महिला भी बिलकुल भीगी बिल्ली सी हो जाती है। फिर सामने चाहे किसी का भी लंड हो, लपक के लेने लिए गिड़गिड़ाने ही लगती है।
पढ़ते रहिये, क्योकि कहानी अभी जारी रहेगी।