अभिषेक उठ कर मेरे चुत पे एक चुम्मी देकर चुत के दीवार को खोलने लगा और अपने खड़े लंड को सीधे अंदर घुसा दिया। अब वो सिखने लगा था। इतने तेज़ी से घुसाया की मेरी बहुत ज़ोर की चीख निकल गयी। चुत में काफी रस था और “फच फच्च फच फच” की आवाज़ आ रही थी।
अभिषेक अब तेज़ी से चोद रहा था और मैं बड़बड़ाये जा रही थी, “हाय बेटु, और ज़ोर से मेरे शोना, और ज़ोर से मेरे बाबू। आह बेटा, उफ़ आह आह आह और तेज़ चोद अपनी माँ को बेटा। उफ़, ओह्ह, ओह, अपने पापा की जगह ले ले बेटा। मुझे चोद के मेरा बुरा हाल कर दे बेटा। चुत को लाल कर दे बेटा।”
इसी बीच अभिषेक भी मेरे बातों का जवाब देता, “हाँ माँ, तेरा चुत लाल कर दूंगा माँ, तुझे हर दिन चोदूँगा माँ, तुझे रोज़ खुश रखूँगा माँ।” और हर जवाब पे उसकी तेज़ी बढ़ती जाती।
इसी बीच मैं झड़ गयी, “आह, ओह्ह, बेटु, मैं झड़ गयी।” और मैं जल्दी से उठ कर निचे ज़मीन पर आ अपने घुटनो पर बैठ गयी और मेरा बेटा मेरे ऊपर आ गया। उसका लंड लेकर मैं ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगी और बेटा भी झड़ गया। उसका पूरा वीर्य मेरे चेहरे पर गिर गया। एक दो बूँद ज़मीन पर भी गिरे। मैंने एक एक बूँद उठा के पी लिया और लंड में लगे आखरी बूँद तक को नहीं छोड़ा।
अब हम दोनों निढाल हो गए। पाँच मिनट आराम कर के हम घर को निकले। हम दोनों बहुत खुश थे। गाड़ी में अभिषेक मेरा हाँथ पकड़े रहता, कभी कभार मेरे जाँघों को सहलाता। मैं भी उसके जांघ पे अपना हाँथ रख कर फिराती।
हमारा चुदाई का सफर शुरू हो गया। हर शाम कर्मचारियों के जाने के बाद हम चुदाई करते। मैंने अपने बेटे को कुछ कंडोम के डब्बे लाकर रखने को कहा। हमने ऑफिस के ऊपर एक रेस्ट रूम बनवा लिया जहाँ पे एक छोटा सा पलंग रखवा लिया, क्यूंकि टेबल पर हमें चुदाई करने में तकलीफ होती थी।
हमने घर पे कामवाली को परमानेंट ही रख लिया क्यूंकि बाकी बच्चों के देख रेख का भी ख्याल रखना था। हम कोशिश करते थे की जल्दी से जल्दी घर चले जाए ताकि बाकी सब के साथ समय बिता सकें। पर एक दूसरे से दूर रहना काफी मुश्किल लगता था।मुझे वो दिन याद आते थे जब मुझे आलोक जी से दूर रहने में तकलीफ होती थी।
संडे को हम सारे काम छोड़ कर घर पे ही रहते, बाकी बच्चों के साथ घूमने फिरने जाते, परिवार के साथ ही वक़्त बिताते। पर सोमवार सुबह एक घंटे पहले जाकर हम एक दिन की हुयी दूरी को मिटाते।
पर मेरे और अभिषेक के इस नए रिश्ते का असर घर पर, बाकी बच्चों के सामने या कर्मचारियों के सामने नहीं दीखता था। वो बाकियों के सामने उतनी ही इज़्ज़त और सत्कार करता जितनी पहले करता था। पर जैसे ही हम अकेले या एक दूसरे के आगोश में होते, वो बिलकुल मेरे पति के जैसा व्यवहार करता। जो मुझे बेहद पसंद होता। हमारे रिश्ता का असर हमारे बिज़नेस पर भी बिलकुल नहीं पड़ा। जैसे जैसे हमारा प्यार बढ़ता गया, हमारा बिज़नेस भी बढ़ता गया।
अभिषेक ने ब्रांड और कंपनी को पंजीकृत करवा ली, हमें बगल वाले ऑफिस को भी रेंट पे लेना पड़ा, हमने अपनी पहली दो शोरूम खोल ली और अब कर्मचारी भी बढ़ गए थे। काम बढ़ गया था पर अच्छे लोग जुड़ते गए और काम बंटता गया। हिसाब-किताब कंप्यूटर से, माल का लेन-देन सब फ़ोन से ही होता, दो और पिक-अप वैन ले लिया। हर कुछ अच्छा चलने लगा।
हमारी आये भी बढ़ गयी। अभिषेक की मेहनत दिख रही थी। इतनी कम उम्र में उसकी तरक्की बहुत बड़ी बात थी। भले ही मैं उसके साथ सम्भोग करती, एक औरत के तरह उससे प्यार करती, पर सबसे पहले उसकी माँ थी मैं। तो इन बातों को देख कर उसपर गर्व भी होता था।
हमारा प्यार बढ़ता रहा। कुछ दिनों बाद अभिषेक ने मेरी गांड भी चोदी। अभिषेक को जब मैं कहती मुझे प्यार से चोदने, वो बहुत ही रोमांटिक अंदाज़ में चुदाई करता और जब मैं उसे कहती मुझे रगड़ दो, तो वो मुझे कुत्ते की तरह बजाता। बिज़नेस में थोड़ी बहुत ऊंच नीच चलती रहती है, कभी कुछ परेशानी होती तो वो मुझे गुस्से से चोदता, मेरे बालों को हांथों में लपेट कर खींच खींच के चोदता, गुस्से में मेरी गांड पे थप्पड़ मार मार कर लाल कर देता। मैं बस इस दर्द का आनंद उठाती।
इसी बीच में गर्भवती हो गयी। मैंने जब अभिषेक को ये बात बतायी तो वो ख़ुशी से मुझे बहुत प्यार करने लगा। पर हमने तुरंत निर्णय लिया की हम ये बच्चा गिरा देंगे। बच्चा गिराना पाप है लेकिन हमारे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था। हम दोनों नहीं चाहते थे क्यूंकि ये हमारे प्यार की पहली निशानी थी पर हम बच्चे को जन्म देने की स्थिति में थे नहीं। हमने बच्चा गिरा दिया और उस दिन मैं अभिषेक को लिपट कर खूब रोई।
दो दिन मैं ऑफिस नहीं गयी। बाकी बच्चों ने जानने की कोशिश की पर मैंने तबियत बहुत खराब होने का बहाना बनाया। बाकी तीनो मेरी खूब सेवा और प्यार करते। बीच बीच में मेरे आंसू निकल जाते तो आरती पूछती की मैं क्यों रो रही तो मैं उसे कहती मेरी छोटी अब बड़ी जो हो गयी और उसे पकड़ कर गुदगुदी करने लगती और सब हंस पड़ते।
मेरी तबियत थोड़ी और बिगड़ सी गयी तो सब ने मुझे कुछ दिन आराम करने को कहा। मेरे पति के देहांत के बाद, ये शायद पहली बार था की मैं लगातार 4 दिन से ज़्यादा ऑफिस नहीं गयी थी। पर अब अभिषेक था संभालने के लिए तो मैंने भी सोचा घर पे रहना ठीक होगा।
अभिषेक शाम में ऑफिस से आकर मेरे पास बैठता, चाय पीता, दिन भर की ऑफिस में हुयी घटनाओं को बताता। मेरे सर पे हाँथ फेरता और मौका मिलने पर मेरे होंठों को चुम लेता।
दिन में बाकी बच्चें अपनी पढ़ाई लिखाई में व्यस्त रहते, अभिषेक भी ऑफिस चला जाता और घर के काम करने के लिए अब दो दो कामवाली थी। मैं बिस्तर पर पड़े पड़े बोर होती थी। टी०वी० देखे ज़माना हो गया था और मन भी नहीं करता था। कुछ पुराने रिश्तेदारों को भूले भटके कॉल कर लेती।
मैंने इसी बीच अपने उस किट्टी वाली एक सहेली को कॉल मिलाया। किट्टी गए अब काफी समय हो गया था और वहां जाना मुझे समय की बर्बादी ही लगती थी। तो मेरी उस सहेली ने कहा की वो अपने किट्टी का एक व्हाट्सप्प ग्रुप बनायी है। उस वक़्त व्हाट्सप्प नया नया प्रचलन में आया था।
तो मैंने व्हाट्सप्प डाउनलोड किया, उसे अपना नंबर दिया और उसने मुझे उस ग्रुप में शामिल कर लिया। ग्रुप में 17 -18 औरतें थी। और वही घिसी-पीटी बातें, एक दूसरे की चुगली, ओछे चुटकुले, नॉन-वेज जोक्स, व्यंजनों की रेसिपी, अपने पति और सास की चुगलियां। किट्टी में जाना या फिर इस ग्रुप में रहना, एक ही बात थी।
शाम तक मैं बोर हो गयी। पर जब कुछ करने को ना हो तो ऐसी बेकार चीज़ों में भी मज़ा आने लगता है। मैं ग्रुप में चुटकुले और उनकी बातें पढ़ पढ़ के हंस रही थी।
इतने में एक औरत ने लिख डाला, “फ्रेंड्स, मेरे हब्बी चोदते ही नहीं, कितनी भी तैयारी कर लो, वो काम में ही व्यस्त रहते हैं। और कितने दिन उँगलियों से काम चलाऊं?” मेरी आँखें चमक गयी, और बस बाकी सारी औरतों के लिए मानो पिटारा खुल गया।
कुछ उदासी कहानियाँ बताने लगी, कुछ चुदासी। कुछ ने यहाँ तक कबूल लिया की वो अपने यार से चुदवाती हैं क्यूंकि उनके पति उनकी उत्तेजना शांत नहीं कर पाते। मुझे भी अपने बेटे के साथ चल रही मेरी कहानी बताने की इच्छा हुयी पर उससे मेरे परिवार के इज़्ज़त को ठेंस पहुंचेगी, ये सोच कर मैंने खुद को रोक लिया। लेकिन उसमे से मुझे एक महिला की बातें काफी रोचक लगी।
उस महिला ने कहा, “फ्रेंड्स, मेरे पति और मैं बहुत संस्कारी हैं, कभी कोई गाली नहीं देते, घर में गाली-गलौच का कोई माहौल नहीं है, पर जब वो मुझे चोदते हैं, मुझे बेहद गन्दी गन्दी गाली देते हैं, और मैं भी उनको गन्दी गालियां देती हूँ। ये हम पहले नहीं करते थे, पर उनके किसी दोस्त ने उन्हें ये सुझाव दिया है। और अब हम बिना गाली-गलौच के चुदाई नहीं कर पाते। मज़ा ही नहीं आता।”
ये बड़ी विचित्र बात थी। पर काफी उत्तेजित करने वाली भी बात थी। आलोक जी ने मेरी इतनी चुदाई की, पर भाषा की मर्यादा नहीं तोड़ी। मेरा बेटा भी इतने महीनों से मुझे चोद रहा है पर गालियों का प्रयोग कभी नहीं हुआ। ना मेरे द्वारा, ना उसके द्वारा।
और ये बात मेरे दिमाग में बैठ गयी। हर दिन एक ही तरह से चुदने में बोरियत आ ही जाती है। मैंने सोचा की ये मेरे और अभिषेक के बीच कोशिश करुँगी पर फिर लगा की कहीं इससे जुबां गन्दी न हो जाए। वैसे भी अच्छी और साफ़ जुबां बहुत ज़रूरी है।
कुछ दिन बीतें, और मैं अब घर पे रहने में असहज महसूस करने लगी और अभिषेक के लिए बुरा लगने लगा। अगले दिन से वापस से ऑफिस जाने का निर्णय लिया। अगले दिन जब ऑफिस जा रहे थे, तो हमेशा की तरह मेरा हाँथ अभिषेक की जांघ पर और उसका हाँथ मेरे जांघ पर था।
“माँ, आप मेरी चिंता मत करो। मुझे पता है आप सिर्फ मेरे लिए ऑफिस आ रही हो। आप जब बिलकुल ठीक हो जाओ, तब हम फिर से शुरू करेंगे। आप रेस्ट करो”, अभिषेक ने कहा।
उसको काटते हुए मैंने कहा, “बेटु, मैं अपना नसबंदी करवाना चाहती हूँ”
उसने अचानक गाड़ी साइड में रोका और ज़ोर से पूछा, “क्या?”
“हाँ बेटु, मैं अब किसी का बच्चा पैदा नहीं कर सकती। लोग क्या कहेंगे? बच्चे को जनम देने के लिए हम शहर और पूरा बसा हुआ संसार छोड़ के भाग भी नहीं सकते। और हमारी चुदाई भी डर डर के होगी की कहीं फिर से गर्भवती ना हो जाऊं। और ये बच्चा गिराना ठीक नहीं। और कंडोम लगाके चुदाई का मज़ा नहीं आता। मैं चाहती हूँ तू मुझे बेफिक्र होकर चोदे और मैं बेफिक्र हो कर चुदु।”
अभिषेक ने ऑफिस में कॉल करके कह दिया की हमें ज़रा देर होगी। हम एक अस्पताल गए और मैं वहां एडमिट हो गयी। कुछ ही देर में मेरा ऑपरेशन हो गया। डॉक्टर ने मुझे कम से कम एक हफ्ते सेक्स करने को मना किया।
फिर वहीँ से हम ऑफिस चले गए। हम दोनों काफी खुश थे। शाम में छुट्टी के बाद वैसे तो हम रेस्टरूम में जाकर चुदाई शुरू कर देते थे पर आज बस वहां जाकर एक दूसरे से लिपट कर बातें कर रहे थे और बीच बीच में चुम्बन कर रहे थे।
मुझे मेरे बेटु के लिए बुरा लग रहा था की वो दिन भर इतनी मेहनत कर रहा है, मेरा ख्याल भी रख रहा है और बेचारे को मैं अपनी चुत नहीं दे पा रही।
मैं अचानक उठ खड़ी हुयी और घुटनो के बल निचे बैठ गयी और अभिषेक को एक आँख मारी। वो समझ गया।
“नहीं माँ, अभी कोई ज़रूरत नहीं है। आप आराम करो। आप ठीक हो जाओ फिर सब करेंगे।”
पर मैं उसे मनाने लगी। और वो आकर खड़ा हो गया। मैंने उसके पैंट को खोल के निचे खींचा और उसका टाइट लंड फुदक कर खड़ा हो गया।
मैंने कहा, “मेरे बेटु को प्यार करने वाला कोई नहीं था?”
और ये कहते हुए मैंने उसके लंड को चूसना शुरू कर दिया। उसके गरम मोटे लंड को मैं लॉलीपॉप के तरह चूसने लगी और 10 मिनट के बाद अभिषेक झड़ गया और मैंने उसके पुरे वीर्य को गटक लिया।
“थैंक यू, माँ। मैं बहुत दिनों से तड़प रहा था।” अभिषेक ने कहा।
“मुझे पता है मेरे शोना बेटा, माँ हूँ तेरी, समझती हूँ कब मेरे बच्चे किस वजह से परेशान हैं।”
फिर कुछ देर चूमने के बाद हम घर आ गए।
ये सिलसिला एक हफ्ते तक चला। हमने दो दिन और लिया ताकि कोई मेडिकल रिस्क न हो।
और फिर कड़ी धुप के बाद बारिश का वो दिन आ गया। मैं बेहद खूबसूरत तरीके से तैय्यार हुयी थी और अंदर अभिषेक की पसंदीदा ब्रा-पैंटी का सेट पहनी थी।
सब कुछ ठीक चल रहा था पर इतने दिनों से मेरे अंदर वो चुदाई के वक़्त गालियों की बात अटकी रह गयी थी। मैं उस बात को भुलाये नहीं भूल पा रही थी। हर बार ख़याल आता की अभिषेक के साथ कोशिश करुँगी पर फिर अजीब लगता। मेरे अंदर से ये बात निकल नहीं रही थी।
पढ़ते रहिये, क्योकि कहानी अभी जारी रहेगी।