रजनी की चुदाई उसीकी जुबानी-17 – जन्नत करनाल में ही है

करनाल का दूसरा दिन

रजनी बता रही थी -“अब जो संतोष ने धक्के लगाए, मेरा तो पूरा शरीर ही हिल गया। बिना रुके संतोष चोद रहा था। मैं भी नीचे से चूतड़ घुमा घुमा कर उसका साथ दे रही थी। पता नहीं कितने देर उसने मुझे चोदा। अचानक मेरी चूत का पानी छूट गया, मगर न तो संतोष का झड़ा ना ही वो रुका – चोदता गया चोदता गया। मेरी चूत बेतहाशा पानी छोड़ रही थी। अब चुदाई में फच फच फच फच फच की आवाजें आ रही थी I संतोष था की चोदता ही जा रहा था, चोदता ही जा रहा था”।

मेरे मुंह से सिसकारियां निकलने लगी, “उई.. उई.. उई.. आह.. आह.. आह.. चोदो.. चोदो.. चोदो संतोष और जोर से चोदो – आह सरोज कितनी अच्छी है तू सरोज मजा आ गया सरोज उह.. उह.. ओह.. ओह.. आअह आह आआआह सरोज, और मैंने जोर से संतोष को जकड़ लिया। तभी मुझे लगा की संतोष के धक्कों की स्पीड बहुत बढ़ गई थी। मुझे लगा वो झड़ने वाला है। उसने मेरे कंधों के पीछे हाथ डाल कर मुझे जकड लिया “।

तभी संतोष ने गले से एक जोरदार घरररररर घरररर आअह अअअअअह की आवाज निकली और उस आवाज़ के साथ ही उसने ढेर सारा गर्म लेसदार पानी मेरी चूत में छोड़ दिया। मैं निढाल हो चुकी थी। चार पांच मिनट के बाद संतोष उठा – लंड मेरी फुद्दी में से निकाला और जा कर सोफे पर बैठ गया।

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