कुछ मिनटों के बाद, मैंने हलके हलके से उसके होंठ चूसना शुरू किया। अब वो भी मेरे चुम्बन का उतर दे रहा था। उसने धीरे से मेरे एक हाँथ में अपना हाँथ फसा लिया। मेरा दूसरा हाँथ उसके छाती पे आकर ठहरा तो वो बिलकुल ही तेज़ी से धकधक कर रहा था। मानो आवाज़ बाहर तक आ रही हो। मैंने महसूस किया की मेरा भी दिल काफी तेज़ी से धड़क रहा था। बिलकुल इसी अवस्था में हम 15 मिनट रहे।
तभी मैंने ध्यान दिया की उसके पैंट में एक तम्बू सा बन गया है। मैंने अपनी चुम्बन तोड़ दी। कल दोपहर से अब ये पहली बार था जब हम दोनों की नज़रे मिली। हम दोनों की धड़कने तेज़ थी।
मैंने उसका हाँथ पकड़ा और उसे खींचते हुए चल पड़ी। हम गाड़ी में आ गए और मैंने ड्राइवर को कहा की वो हमें वापस ऑफिस छोड़ दे, हमें एक मीटिंग की तैय्यारी करनी है। ऑफिस पहुँचते ही हम उतरे और मैंने ड्राइवर से कह दिया की वो गाड़ी घर पे लगा दे। वो गाड़ी लेकर चला गया। मैंने घर पे कॉल करके नौकरानी को कह दिया की बाकी बच्चों को सुला दे, हम किसी काम में फंसे हुए हैं, आने में देर होगी।
ऑफिस के अंदर घुसते ही मैंने गेट को बाहर से लॉक कर दिया। अभिषेक के हाँथ पकड़ कर अपने केबिन में आ गयी और उसका गेट भी बंद कर दिया। गेट बंद करते ही मैं अभिषेक के तरफ मुड़ी और उसके होंठों को खींच कर अपने होंठो में फसा कर चूमने लगी। अब मेरा बेटा भी मेरा साथ दे रहा था। वो भी अब मुझे मेरे कमर से पकड़ कर चुम रहा था।
अब शायद सही समय है मैं ज़रा अपने बारे में बता दूँ। जब मेरी शादी हुयी थी, उस वक़्त मेरे दूदू 32B थे, कमर सिर्फ 26 और नितम्ब 30 थे। मुझे आज भी याद है, जब मैं पहली बार आलोक जी के सामने अपने सुहागरात वाले दिन नंगी हुयी थी। वो मुझे देखते रह गए थे। मेरा रंग गोरे और सांवले के बीच का एक अलग सा रंग है जो कुछ लोगों को काफी मोहित करता है। मेरा कद 5 फ़ीट 6 इंच का है।
शादी के बाद मैंने काफी मेन्टेन करने की कोशिश की लेकिन कारोबार बढ़ने के बाद थोड़ी सी वज़न बढ़ गयी थी। लेकिन आलोक जी के जाने के बाद मैं मुरझा गयी थी और 2010-11 में दूदू 34C, कमर 30 और नितम्ब 30 था। तो कुल मिला कर 36-37 के उम्र में मैं काफी जवान दिखती थी। मेरा पेट आज भी बिलकुल सपाट है। ये मेरे लिए भी आश्चर्य की बात है की इस पेट में मैंने 4 बच्चों को पाला है पर पेट में बस एक हलकी सी ही स्ट्रेच मार्क है।
वैसे मैं साधारण तरीके के ही कपड़े पहनती हूँ, ज़्यादा चमक धमक वाले कपड़े पसंद नहीं, लेकिन क्यूंकि अपना कारोबार भी कपड़ो का ही था और मेरे पति पढ़े लिखे थे, वो मुझे हमेशा अच्छे पोषक पहनने को कहते थे। मैं कांजीवरम साड़ी ही पहनती हूँ, कभी-कभार जीन्स और शर्ट, पति के जाने के बाद मैंने बिज़नेस सूट पेहेनना शुरू कर दिया था। मेक-अप का कुछ ख़ास शौक़ नहीं था। बस एक हलके रंग की लिपस्टिक लगाती थी ताकि होंठ रूखे न लगे।
मैं बारहवीं पास ही थी पर मेरे रहने के रंग-ढंग से कोई कह नहीं सकता। मुझे देख के हर कोई कहेगा की मैंने शायद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से एम०बी०ए० की हो। मुझे व्यक्तिगत तौर पर ऐसे कॉर्पोरेट लुक में रहना अच्छा लगता था। आलोक जी जब थे, वो मुझे भी पढ़ाते, मेरी भाषा काफी साफ़ की उन्होंने। मेरी बस अंग्रेजी थोड़ी कमज़ोर रह गयी।
अब वापस आते हैं कहानी में।
मेरे केबिन में एक बड़ा सा टेबल था। चूमते चूमते मैंने उसे टेबल के तरफ धक्का दिया और वो टेबल पे बैठ गया। इस वक़्त मुझे सही और गलत का कोई फासला नहीं दिख रहा था।
मैंने उसके आँखों में देखते हुए निचे झुकी और और उसके पैंट का ज़िप निचे करके उसके लंड को निकला। और उसके लंड को देखते ही मैं हैरान रह गयी। मैं सच में अपने आँखों से जो देख रही थी वो विश्वास नहीं कर पा रही थी। अभिषेक के लंड का आकार, टोपे का आकर, लम्बाई, गोलाई, सब कुछ, बिलकुल आलोक जी के लंड जितना था। ऐसा लग रहा था मेरे पति, मेरा प्यार वापस आ गया है।
मैंने एक क्षण भी देरी ना करते हुए पुरे लंड को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी और अभिषेक सिसकारियां लेने लगा। बिलकुल धीमी आवाज़ में “आह आअह, ओह्ह उह, ओह, आह” करने लगा। मैं बस बिना कुछ कहे चूसे जा रही थी।
मेरे पति के मृत्यु के बाद ये पहली बार था जब मैं लंड अपने मुंह में ले रही थी। कर्मचारियों को बस चुत खोल के खड़ी हो जाती थी। उनका कभी मुंह में नहीं लिया। मैं अपनी शारीरिक शांति के लिए उनसे चुदती थी, उन्हें मज़े देने के लिए नहीं।
करीबन 5-6 मिनट चूसने के बाद अभिषेक ने अचानक मेरे सर को पकड़ लिया और उसका वीर्य काफी तेज़ी से मेरे मुंह में आया और वो झड़ गया। मैंने उसका सारा वीर्य अपने गले के अंदर उतार लिया।
जब मैं उठी और उसे देखा तो वो बिलकुल पसीने से लथपथ था। ये शायद उसके लिए पहली बार था। मैंने अपनी साड़ी को खोला, और अपने ब्लाउज़ को जैसे खोला मेरा दूदू उछल कर बाहर निकल आया। उसके एक हाँथ को पकड़ कर मैंने अपने दाएं दूदू पे रख दिया और उसे आँखों ही आँखों में दबाने को कह दिया। वो धीरे धीरे मेरे दूदू को दबाने लगा और मैं फिर से उसके होंठों को चूमने लगी। और मैं अपने हाँथ से उसके लंड को सहलाने लगी।
ना मैं कुछ कह रही थी, न वो कुछ कह रहा था। हम आँखों ही आँखों में बातें कर रहे थे। चुम्बन तोड़ कर मैंने उसका सर पकड़ कर अपने दूदू के तरफ खींच दिया और आँखों से इशारा कर दिया मेरी दूदू चूसने को। मेरा बेटु बिलकुल एक छोटे बाबू के तरह मेरे दूदू को चूसने लगा। मैं अभी उसके लंड से खेल रही थी। क्यूंकि वो अब भी जवान था, उसका लंड फिर से काफी जल्दी खड़ा हो गया।
मुझे बस अब मेरे बेटु का प्यार चाहिए था। मेरे बस ऊपर के हिस्से खुले हुए थे। मैं अब ज़रा सा हट कर खड़ी हुयी और अपने साड़ी को उतारने लगी। मैंने अपना पेटीकोट उतरा और अपनी पैंटी भी उतार दी। और बिलकुल नंगी अपने बेटे के सामने खड़ी हो गयी।
जब मैंने अपना चेहरा उठा कर अभिषेक को देखा, वो अचंभित होकर मुझे देख रहा था, बिलकुल उसी तरह जैसे उसके पापा ने मुझे पहली बार नंगी देखा था। मुझे लग रहा था मेरे आलोक वापस आ गए हैं। अभिषेक को देख मैं शर्मा गयी लेकिन अब मुझे बस अपने बेटु का लंड मेरे अंदर चाहिए था।
मैं अपने टेबल पर चढ़ कर लेट गयी, अपने टांगो को फैलाते हुए अभिषेक को इशारा किया। वो खड़ा हुआ और टेबल पर चढ़ कर मेरे ऊपर आ गया। उसने अपने लंड को मेरी चुत पर लगाकर सेट करने की कोशिश की, तो मैंने उसके लंड को पकड़ कर अपने चुत में सेट कर के आँखे बंद कर ली, उसने धीरे धीरे अंदर डालने को ज़ोर लगाया।
पार्क में चुम्बन करने के वक़्त से ही मेरी चुत गीली हो गयी थी। और मेरे पति और दोनों कर्मचारियों से चुदते हुए मेरा चुत ज़रा ढीला हो गया था। तो बेटु को ज़्यादा मुश्किल नहीं हुयी।
पर सृष्टि भी क्या खूबसूरत चीज़ है। किसी भी नर को मादा के चुत तक पहुँचा दो, बस। उसके बाद वो खुद ही कर लेता है हर कुछ। जैसे ही चुत में अभिषेक का लंड घुसा, मेरे मुंह से ज़ोर से “आह” निकल गयी और मेरे आँखों में आंसू थे, ख़ुशी के आंसू।
अब अभिषेक मुझे चोदने लगा। एक मर्द के तरह चोदने लगा। धक्के की तेज़ी बढ़ाने लगा। चोदते हुए वो कभी कभी मेरे दूदू को मसल देता और जब थकता तो झुक कर मेरे होंठो को चुम लेता।
मैं बस सिसक सिसक कर आहें भर रही थी।
अब वो काफी तेज़ चोदने लगा तो मैं समझ गयी वो झड़ने वाला है। मैंने आँखों से ही कह दिया की मैं पहली बार उसका अपने अंदर ही लेना चाहती हूँ। दो मिनट बाद वो झड़ गया और उसका सारा वीर्य मेरे अंदर गिर गया।
हम दोनों थक गए थे और पसीने से लथपथ थे। वो मेरे पास आकर लेट गया, मुझे पीछे से लिपट कर सो गया।
मेरी नींद उड़ गयी थी। मेरी ज़िन्दगी एक नयी मोड़ ले चुकी थी। मेरे आँखों में आंसू, थोड़े दर्द के, थोड़े ख़ुशी के, थोड़े प्यार के। अभिषेक का हाँथ मेरे पेट पर था। उसके लंड को अपने पीछे महसूस कर पा रही थी। उसके साँस की गरम हवा सीधे मेरे गले पर लग रही थी। मैं उसके हांथो को जकड़ कर सो गयी।
करीबन साढ़े नौ बजे फ़ोन बजने पर हमारी नींद खुली। मैंने उठाया तो नौकरानी के फ़ोन से आरती का कॉल था। उसने पूछा की हम कहाँ हैं, तो मैंने बहाना करते हुए कहा की ऑफिस में काम में देरी हो गयी है, बस आते हैं।
हम दोनों उठे, कपड़े पहने और एक टैक्सी में निकल पड़े। हम दोनों एक दूसरे से बात नहीं कर पा रहे थे। पर उसका हाँथ मेरे हाँथ में था। आलोक जी के जाने के बाद पहली बार महसूस हो रहा था, कोई मेरा साथी है मेरे साथ।
उम्र चाहे कितनी भी हो उस वक़्त अभिषेक की, पर एक मर्द और एक औरत का मिलन किसी भी उम्र में हो सकता है। और पिछले कुछ दिनों से मैंने उसे भांप लिया था, वो भले ही अभी सिर्फ 19 साल का था, पर उसमे समझदारी काफी अधिक थी, काफी परिपक्व था, समय की नज़ाकत, रिश्तों की एहमियत समझता था।
अगर वो मेरी एहमियत नहीं समझता तो मेरे दर्द को नहीं समझता, भले ही गुस्से में था सुबह तक, पर खुद से बात करने की पहल नहीं करता और मुझे नहीं समझता। और अपने बेटे से, अपने संतान से तो प्यार करती ही थी, लेकिन अब उसे एक मर्द के रूप में प्यार कर बैठी थी। उसके तौर तरीके बिलकुल आलोक जी जैसे थे। मुझे अपने जीवन में जिस दूसरे मर्द से प्यार हुआ, वो पहले का ही बेटा था।
मुझे बिलकुल भी इसमें कुछ भी गलत होने का एहसास नहीं लग रहा था। कर्मचारियों से चुदवाना एक पल को पाप लगता था, पर अपने बेटे के लंड को अपने चुत में लेने में मुझे कोई शर्म नहीं आयी। शाम तक हम दोनों का ऐसा कोई इरादा नहीं था, ना ही हम दोनों की ऐसी कोई गलत नज़र थी एक दूसरे पे। प्यार आपको किस बात पे, किस पल हो जाए, पता ही नहीं चलता। इसीलिए एक कहावत है की प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है।
मैं अपने बेटे के प्यार में थी। अब वो मेरे प्यार में था या नहीं, ये आने वाले भागों में जानेंगे।आने वाले भागों में और भी रोमांच है, मसाला है, थोड़ी बहुत मस्ती है, शरारत है। ये शुरुआत थी और बिलकुल ही अभूतपूर्व अनुभव था हम दोनों के लिए इसीलिए उन पलों में हमारा कोई नियंत्रण था नहीं। बस, बिना कुछ कहे होता चला गया।
कहानी अभी काफी बाकी है।