राजू और उसके प्यारे सन्तोष मौसा-1

ये कहानी हैं राजू की और उसके मौसा की। कहानी तब शुरू हुई जब एक बार गर्मी की छुट्टीयों में राजू के मौसा ने उसके पिता जी से राजू को उनके यहां भेजने को कहा। बुलाने की वज़ह कुछ ख़ास नहीं बस इतनी सी थी, कि एक तो राजू को भी खेती किसानी का काम सिखा देंगे, और साथ में उनकी भी मदद हो जायेगी।

गांव में राजू के मौसा संतोष की बहुत जमीन थी। जबकि राजू के पिता जी सीमित जमीन में ही खेती करते, उस पर भी तीन भाईयों का सांझा काम जिससे राजू को इतना काम करना भी नहीं होता‌ था।

राजू के पिता जी ने सोचा चलो इसी बहाने साढू साहब की मदद भी हो जाएगी, और राजू को भी कुछ काम आ जायेगा। पिछले साल ही संतोष के बेटे की नौकरी लगने से खेती का सारा काम सन्तोष पर था। यहीं सोच कर राजू को मौसा के घर भेजने के लिए तैयार किया गया।

पहले तो राजू ने मना किया, क्योंकि उसका मौसेरा भाई अपनी नौकरी के सिलसिले में अब दिल्ली ही रहता था। जिस वजह से उसका अकेले वहां मन नहीं लगता था। लेकिन पिता जी ने काम सीखने के जोर डाला, जिस पर राजू मना नहीं कर पाया।

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