पिछला भाग पढ़े:- चित्रा और मैं-9
मेरी हिंदी सेक्स कहानी का अगला पार्ट शुरू करने जा रहा हूं-
बहुत याद आ रही थी चित्रा की। सुबह-सुबह नहा कर तौलिया लपेटे गुसलखाने से निकला ही था, कि पापा को मम्मी से कहते हुए सुना, “चित्रा के तो यहां रह कर बड़े अच्छे नंबर आ गये, और अपने राज ने भी लगता है उस लड़की की देखा-देखी पढ़ाई की ही होगी। क्योंकि वह भी ठीक-ठाक नंबर ले आया है।”
मम्मी का जवाब था, “असल में मुझे तो लगता है कि दोनों लगभग हम-उम्र हैं, तो घर ही में आपस में बातें करने के लिए कोई है, और तभी बाहर मटरगश्ती करना कम हो गया। ज़ाहिर है, पढ़ाई के लिए ज़्यादा टाइम मिलता होगा।”
पापा ने मम्मी को तब बताया कि, “चित्रा ने अपना ग्रेजुएशन भी हम लोगों के पास रह कर करने की इच्छा ज़ाहिर की है।” तब मेरे कान खड़े हुए। मैंने झट अपने कमरे का दरवाज़ा बंद किया, और ध्यान से पापा-मम्मी की बातें सुनने लगा। कुर्सी पर बैठा ही था कि सुना कि मम्मी कह रही थी, “चलो जी, चित्रा हमारे पास ही रह कर आगे पढ़ना चाहती है तो बुला लेते हैं उसे। राज को भी तो चित्रा का हमारे पास रहना लकी साबित हुआ है ना!”
कुर्सी पर बैठे हुए मुझे अनायास ही चेहरे पर मुस्कराहट आयी, लिपटा हुआ तौलिया खुल गया, लौड़ा देखते-देखते जैसे अपने आप कुर्सी पर आगे खिसक भी रहा था और फुदक भी रहा था। सामने जैसे बिंदास और बिना किसी भी हिचक के चित्रा तो मेरे सामने यूं ही नंगी भी हो जाती थी। मेरे लंड और टट्टों को प्यार से टटोल कर जब मर्ज़ी चूस लेती थी। और मज़े से जब भी मौक़ा मिलता अपनी चूत या चूचियां मुझसे चुसवा लेती थी।
उसके साथ बीते पिछले साल में सब कुछ याद भी आ रहा था, और मैं अपना लौड़ा भी हिला रहा था। हाय रे राम! चित्रा फिर हमारे यहां रहेगी! सोच के ही दो बार लगातार मुट्ठ मार कर अपने मुन्ने मास्टर को शांत किया, और कपड़े पहन कर बाहर जब तक आया, पापा ऑफिस जा चुके थे।
मम्मी किचन मैं नाश्ते के लिए पराठे बना रही थी। बोली, “राज प्लेट निकाल, अचार ले, और गरम पराठा खा कर चाय पी लेना, उतने में मैं नहा कर आती हूं।” मम्मी तो यह कह कर बाथरूम मैं घुस गयी, और मैंने परांठा तो ले लिया, मगर दिमाग में तो अभी तक नंगी, बेहद बदमाश, और चुलबुली चित्रा ही घूम रही थी।
दो बार मुट्ठ मारने के बाद भी मेरे ऊपर भी बदमाशी का ख़ुमार चढ़ा हुआ था। तो सोचा क्यों ना मम्मी को नहाते हुए नंगा देखा जाए। तो एक बड़ा सा पराठे का टुकड़ा मूंह में लिया, प्लेट किचन में छोड़ी, और दबे पांव बाथरूम की खिड़की पर पहुंच गया। दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था, पर जब दिमाग में खुराफात हो और लौड़ा जोर मार रहा हो, तो पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता था।
खिड़की के परदे को हलके से थोड़ा सा एक तरफ किया। जैसे कि अपने आप हवा से हुआ हो, और सामने दिखी मम्मी नंगी पटले पर बैठी हुई चेहरे पर साबुन लगा रही थी, और दोनों आँखें भींच कर बंद की हुई थीं। आराम से खिड़की के परदे को थोड़ा और खिसकाया, और शर्म आना तो दूर, अंदर नहाती मम्मी को देख रहा था, और दुसरे हाथ से लौड़े को बाहर निकाल कर हिला रहा था। झड़ना तो जल्दी था नहीं, क्योंकि दो बार तो चित्रा की याद में ही मुट्ठ मार लिया था। तो आज मैंने भी बेशर्मी की हद पार कर ही दी। मां की चूची और घनी झांटें देख ही ली। काफी माल है मेरी मां 41 की उम्र में भी।
अभी तक ना पापा ने और ना मम्मी ने सीधे मुझे चित्रा के आने के बारे में कुछ बताया था। लेकिन तीन बार तो झड़ चुका था मेरा मुन्ना। पर अभी भी साला बदमाश फूला हुआ था, और मुझे संभल कर चलना पड़ रहा था। नहीं तो मम्मी को (जो कि नहा कर खाली पेटीकोट और साड़ी में, यानी बिना ब्रा या ब्लाउज पहने डाइनिंग टेबल पर बैठी अखबार पढ़ रही थी) पता लग जाता कि मेरी पैंट के अंदर गड़बड़ हरकत हो रही थी।
कॉलेज खुलने में अभी एक सप्ताह था, और मुझे भी कुछ काम तो था नहीं। तो मैं भी वहीं सामने वाली कुर्सी पर बैठ कर एक बार का स्पोर्ट्स सेक्शन देखने लगा। कुछ ही देर बाद मम्मी ने अख़बार नीचे करते हुए अपना चश्मा उतारा और बोली, “एक बात बता, अगर चित्रा फिर से हमारे पास रहने आना चाहे, तो तुम्हारी क्या राय होगी?” मैंने कहा, “लेकिन क्यों आना चाहती है वो यहां?” “मुझे लगता है कि उसकी तुझसे अच्छी बनती है, आखिर सगी ना सही, पर है तो बड़ी बहन! और फिर तेरे पापा को और मुझे भी लगता है कि उसके यहां रहने से तुम दोनों की पढ़ाई में भी थोड़ा इम्प्रूवमेंट हो रहा है, तू क्या बोलता है?”
मुझे लगा कि अच्छा मौक़ा था, तो कह दिया, “हां मम्मी, बनती तो है अपनी आपस में। क्योंकि हम दोनों को ही अपने-अपने कॉलेज और दोस्त और पढ़ाई वगैरा की बातें तो होती ही हैं कहने को! अब आप से या पापा से, और चित्रा से बातों का फरक तो है ही ना! और फिर खाने-पीने के मामले में भी मैंने देखा है, कि हम दोनों के टेस्ट में काफी सिमिलरिटी है। ठीक है, आना चाहती है तो मुझे क्यों कोई ऐतराज़ होगा? आने दीजिये! कब आने का इरादा है उसका?”
मम्मी ने बताया कि पापा से बात करके फाइनल करेगी। मगर अगले मंडे से उसका और मेरा भी कॉलेज खुलने वाला था, तो फ्राइडे शाम या सैटरडे सुबह तक तो आ ही जायगी। मन में लड्डू फूटना तो बनता ही था ना? और मुन्ने के टोपे पर भी चिकनाई की एक और बूंद आती महसूस हुई मुझे।
अब सोचा कि इस मौके का थोड़ा और फायदा उठा लेता हूं, तो पूछ ही लिया मम्मी से, “मम्मी ये बताईये कि आप और पापा इतने आराम से चित्रा के हमारे पास रह कर पढ़ाई करने के लिये कैसे और क्यों तैयार हो जाते हैं?” मम्मी हंस पड़ी और बोली, “कुछ भी हो, तुझसे बड़ी भी है, और लड़कियों में अपने से छोटे भाई-बहनों का ख्याल रखना उनके स्वभाव में ही होता है ना। तू इतना बड़ा हो गया है, लेकिन अगर तेरे पापा और मैं दोनों घर में नहीं हैं, तो तुझे अकेला छोड़ने पर ज़्यादा फिगर होती है। अगर दो जने हैं तो हम दोनों काफी बे-फ़िक्र हो जाते हैं। याद है जब चित्रा आयी ही थी, और पापा और मैं दो-तीन दिन के लिए बाहर चले गए थे? तब तुम दोनों ने मिल कर ही तो एक-दूसरे का ख्याल रखा था ना? बहनें हमेशा अपने से छोटों को खुराफात से रोकती रहती हैं। ये तो उनकी फितरत में ही होता है!”
सब समझ गया मैं, और मेरा लटकन मुन्ना, जिसने चित्रा की बदमाशी भरी फितरत की मन ही मन दाद दी, और एक हल्का सा झटका मारते हुए मेरी उंगली को (जो कि पैंट की पॉकेट के छेद में से होती हुई मुन्ने के मुंह को सहला रही थी) थोड़ा और चिकना कर दिया।
“हां मम्मी, चित्रा है तो परफेक्ट लड़की, बहुत ही अच्छा ख्याल रखती है घर का, अपना, और मेरा। बिलकुल भी अकेलेपन या कोई भी फ़िक्र नहीं होती है उसे। बहुत ही खुले और साफ़ स्वभाव की है, और मुझे भी काफी अपने जैसा ही (बेहद बदमाश – ये मैंने कहा नहीं!) बना दिया है। शायद इसीलिये हमारी आपस मैं काफी बनती है।
चित्रा मुझे और मैं चित्रा को अच्छी तरह अंदर तक तभी तो जाने और पहचाने थे, जब आप लोग हम दोनों को घर पर अकेले छोड़ कर गए हुए थे। चित्रा की वजह से ही तो हमारी पड़ोसन आंटी भी मुझसे घुल-मिल गयी थी, और जैसा आप जानती ही हैं उन्होंने तो हम दोनों का लंच पर बुलाने के बाद सारी दोपहरी हमें वापस ही नहीं जाने दिया था।”
मम्मी बोली, “तो ठीक है, मुझे भी वह लड़की ठीक लगती है। मुझे तो लगता है कि अगर तेरी सगी बड़ी बहन होती, तो वैसी ही होती। तेरे पापा से कह दूंगी कि मेरी तुझसे बात हो गयी है, और तुझे उसके यहां होने से कोई ऐतराज़ नहीं है। तेरे कमरे के बगल वाले गेस्ट रूम में फिर से रह लेगी वह। लेकिन तुम दोनों अपना और अपनी पढ़ाई का पूरा ख्याल रखना, और हमें कुछ नहीं चाहिए। हां, तूने पड़ोसन का ज़िकर किया तो याद आया, वो लोग तो अगले हफ्ते ही जा रहे हैं, क्योंकि उनका तो कहीं और तबादला हो गया है।”
दोस्तों इससे आगे की हिंदी सेक्स कहानी अगले पार्ट में।
अगला भाग पढ़े:- चित्रा और मैं-11