पिछला भाग पढ़े:- अजब गांडू की गजब कहानी-28
चित्रा पक्का ही हल्के नशे में थी। राज और युग की बातें सुन कर चित्रा ने टांगें मोड़ कर सोफे पर रखी और चित्रा ने नीचे हाथ डाल कर चूत की फांकें खोली दी। चित्रा की गुलाबी चूत गीलेपन के कारण चमक सी रही थी और अजीब कामुक नजारा पेश कर रही थी।
ये सीन देख कर पहले युग उठा और जा कर चित्रा चूत चूसने चाटने लगा। युग हटा तो चित्रा ने राज को बुला लिया। राज के चूत चूसने से चित्रा को इतना मजा आया की उसकी चूत पानी ही छोड़ गयी। अब आगे
मैं अभी चित्रा की चूत चूस ही रहा था, कि चित्रा ने जोर से चूतड़ हिलाये, और सिसकारी लेते हुए बोली, “राज… साले निकाल दिया तूने मेरी चूत का पानी, मजा आ गया मुझे।”
चित्रा ढीली हो गयी और मैं उठ कर वापस सोफे पर अपनी जगह पर आ गया। मैं और युग दोनों चित्रा को देख रहे थे। मजे के मारे चित्रा की आंखें बंद थी।
दो मिनट के बाद चित्रा ने आखें खोली और युग से बोली, “देख लिया युग? तू पूछ क्या थी मेरी चूत की हालत? ये थी मेरी चूत की हालत। एक चुसाई भी नहीं झेल पाई, चुदाई तो अभी होनी है।”
ये कह चित्रा ने अपना गिलास उठा लिया और मस्ती में बोली, “आज असली मजा आने वाला है चुदाई का। चलो खाली करो अपने-अपने गिलास और चले अंदर।” फिर वो बोली, “और पीनी होगी तो एक-एक चुदाई का ट्रिप लगाने के बाद देखेंगे।”
चित्रा अंदर जाने के लिए उठ खड़ी हुई और डगमगाते क़दमों के साथ अंदर कमरे की तरफ चले लगी।
अपना गिलास पकड़े झूमती-झूमती चित्रा आगे-आगे चल रही थी, और चूत के पिस्सुओं की तरह जुबान लपलपाते, दुम हिलाते हम दोनों चित्रा के पीछे-पीछे चल रहे थे।
हम तीनों को दारू की मस्ती आ चुकी थी। सुरूर में शर्म तो खत्म ही हो चुकी थी। चित्रा का तो ये हाल था कि वो जो मन में आये वो बोल रही थी। मुझे तो डर लग रहा था की कहीं चित्रा अपने और अंकल के बारे में ही ना कुछ बोल दे। यही गनीमत थी की युग को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।
— शुरू हुई चित्रा राज और युग की चुदाई
अंदर जा कर चित्रा ने गिलास में से एक बड़ा घूंट लिया और पटाक से खाली गिलास पास वाले मेज पर पटक कर बोली, “अब तुम दोनों सुनो मेरी बात ध्यान से भोसड़ी वालो। मैं लेट रही हूं चूतड़ ऊपर करके। जिसका जो मन आये करो। जो मर्जी, जितना मर्जी चूसो, चाटो, चोदो। जिसको जो करना है करो, मुझे कुछ करने के लिए मत बोला। मैं आज बस चुदाई करवाऊंगी और कुछ नहीं करूंगी।”
फिर कुछ रुक कर बोली, “और हां एक बात और सुन लो तुम दोनों। चूत में लंड डालने से पहले अपना नाम बताना मत भूलना। मेरा चेहरा तो नीचे की तरफ होगा इसलिए मुझे पता होना चाहिए किसका लंड है मेरी चूत के अंदर। चलो आ जाओ अब, मेरा भी पानी छुड़ाओ, और अपना भी पानी छुड़ाओ।”
चित्रा की ये बात सुन कर मेरी और युग दोनों की हंसी छूट गयी। उधर इतना बोल कर चित्रा बेड के किनारे पर कुहनियों और घुटनों के बल उल्टी लेट गयी और चूतड़ उठा दिए। मैंने और युग ने एक-दूसरे की तरफ देखा। नशा तो युग को भी होना शुरू हो गया था। एक मैं ही था जो थोड़ा बहुत सोचने समझने लायक हालत में था।
युग मुझे से बोला, “जा भाई राज चढ़ जा चित्रा पर डाल दे लंड उसकी की चूत में। आज पहला नंबर तेरा है।”
मना करने की ना कोइ गुंजाइश थी और ना मेरी मंशा। आधे घंटे से खड़ा लंड फटने को हो रहा था। मैं आगे बढ़ा और चित्रा की कमर पकड़ कर लंड एक झटके से अंदर डाला और साथ ही जोर से बोला, “ले, ये गया राज का लौड़ा चित्रा की टाइट फुद्दी के अंदर।”
चित्रा भी नीचे से बोली, “आह राज क्या मोटा लंड है साले तेरा, कैसा रगड़ा लगा कर जाता है। चल चोद अब। झाग निकाल मेरी फुद्दी की।” चित्रा के ये कहते ही मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए और चित्रा ने जोर-जोर से सिसकारियां लेनी शुरू कर दी।
नशे की हालत में चित्रा कुछ भी बोल रही थी, “आआह राज क्या चुदाई हो रही है युग कहां हैं उसको भी दिखा कैसे तेरा लंड अंदर बाहर हो रहा है। मजा आ गया आज तो।”
चित्रा की सिसकारियां चालू थी, “घुस जा मेरी फुद्दी में राज। लगा जोर से राज, बस होने वाला है मेरा आआआह और जोर से लगा निकलेगा अब मेरा आआआह।”
कुछ ही धक्कों के बाद चित्रा ने एक जोर की सिसकारी ली, “आअह राज, निकल गया मेरी चूत का पानी।”चित्रा को मजा आ गया, मगर वो चूतड़ उठाये वैसे ही लेटी रही। मैंने भी धक्के बंद नहीं किये।
थोड़ी देर की चुदाई की बाद चित्रा ने फिर से चूतड़ घुमाने शुरू कर दिए। चित्रा की चूत फिर से तैयार हो चुकी थी। चित्रा ने जरा सी गर्दन घुमाई और बोली, “राज फिर गर्म हो गई मेरी फुद्दी। चल लगा एक और रगड़ा अब।”
दस मिनट की जोरदार चुदाई के बाद मेरा भी छूटने वाला हो गया। मैंने जोर-जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए। मेरे मुंह से अपने आप निकल रहा था, “आआह चित्रा, क्या चूत है, अब आएगा मजा आआह, मजा आ गया आज तो चुदाई का।”
उधर चित्रा की भी सिसकारियां निकल रहीं थी , “आआह राज ओह राज आआह राज।”
इन्ही सिसकारियों के साथ हमारा दोनों का पानी छूट गया।
चित्रा को दूसरी बार मजा आ गया था। जैसे ही मैं रुका, चित्रा मुंह पीछे की तरफ मोड़ कर मुझ से बोली, “कहां है मेरा प्यारा पति युग, भेज उसको डाले अपना लंड मेरी चूत में। कौन बार-बार उठे, लेटे, फिर उठे।”
मैंने लंड चित्रा की चूत में से निकाला और युग को बोला, “आजा युग तुझे याद कर रही है चित्रा।”
युग खड़ा लंड हाथ में पकड़े सोफे पर बैठा हुआ था। जैसे ही मैंने कहा, “आजा युग तुझे याद कर रही है चित्रा”, युग उठा और चित्रा के पीछे आ कर चित्रा की कमर पकड़ी और लंड चूत में डाल कर धक्के लगाने लगा।
आधे घंटे से युग का खड़ा लंड आठ दस मिनट की चुदाई भी नहीं झेल पाया और पानी छोड़ गया।
चित्रा ऐसे ही चूतड़ उठा कर लेटी हुई थी। उसने सर घुमा कर पीछे की तरफ देखा। साफ़ पता चल रहा था कि चित्रा की चूत का पानी नहीं छूटा था और चित्रा की चूत दुबारा से गर्म हो गयी थी और उसे खड़ा लंड चाहिए था।
युग ने चित्रा की पिछले दिन से अच्छी चुदाई की थी, मगर फिर भी चित्रा की चूत का पानी छूटने से पहले युग का लंड पानी छोड़ गया। युग थोड़ा शर्मिंदा सा हुआ और बोला, “राज यार निकल गया।”
मैंने कहा, “कोइ बात नहीं युग आज दूसरा ही तो दिन है। फिर भी देख तूने चित्रा की कितनी अच्छे से चुदाई की है। उधर चित्रा उंगली से चूत का दाना रगड़ रही थी।
जब चित्रा से नहीं रहा गया और वो युग से बोली, “युग, राज को बोलो आ कर मेरी चूत का पानी छुड़ाए।”
युग चूत में से लंड निकालता हुआ थोड़ा शर्माता हुआ सा बोला, “हां चित्रा मैं राज को बोलने ही वाला था।”
फिर युग मुझ से बोला, “जा राज जरा चित्रा का काम पूरा कर। निकाल चित्रा की चूत का पानी।”
उधर चित्रा सिसकारियां ले रही थी, “आआह युग, भेज भी राज को, राज आजा साले डाल लंड मेरी चूत में। आओ दोनों में से कोइ भी। चोदो भी अब मुझे।”
चित्रा दारू के नशे और चूत के अटके हुए मजे से बेसब्री सी हो रही थी। उसे चूत में लंड चाहिए था वो भी फ़ौरन। उधर युग का लंड तो बैठ ही चुका था, मगर मेरा लंड ये सारा सीन देख कर खड़ा हो गया था।
जैसे ही युग ने मुझे बुलाया, मैं चित्रा के पीछे गया खड़े लंड के साथ और एक ही झटके से लंड चित्रा की चूत में डाल दिया और चुदाई चालू कर दी।
चित्रा का मजा तो बस अटका सा ही हुआ था। पांच ही मिनट हुए होंगे कि चित्रा “आआआह राज ये क्या, निकल गया ये तो , हो गया मेरा” की आवाज के साथ झड़ गयी और आगे की तरफ लुढ़क गयी।
मुझे तो मजा आया नहीं था। मजा आने के बाद जैसे ही चित्रा आगे की तरफ लुढ़की, पल्प करता हुआ मेरा लंड चित्रा की चूत से बाहर निकल गया। मैं गया और जा कर युग के पास बैठ गया। युग ने मेरा लंड पकड़ लिया और बोला, “क्या हुआ राज, चित्रा के अंदर नहीं निकला?”
मैंने कहा, “चित्रा को मजा आ चुका है, जब दुबारा लंड मांगेगी, तब डालूंगा”।
चित्रा ढीली हो कर सीधी बिस्तर पर लेट चुकी थी। मैं और युग दोनों चित्रा को देख रहे थे। मजे के मारे चित्रा की आंखें बंद थी।
दो मिनट के बाद चित्रा ने आखें खोली और युग से बोली, “देख लिया युग? ये थी मेरी चूत की हालत। पांच मिनट की चुदाई भी नहीं झेल पायी आज।”
लेटे लेटे आखें बंद करके चित्रा अपनी चूत में उंगली ऊपर नीचे करने लगी। मेरा लंड तो खड़ा ही था। चित्रा को चूत में उंगली करते देख कर युग का लंड भी खड़ा हो गया।
मैं सोच रहा था, दो या पता नहीं तीन बार चित्रा की चूत पानी छोड़ चुकी है और अब फिर ये उंगली डाल कर अपनी चूत गरम कर रही है। क्या हो गया है चित्रा को? क्या व्हिस्की का करिश्मा है?
मैंने सोचा वही होगा – दारू का असर। अंकल की तरह वाली कोइ विआग्रा जैसी गोली तो खाई नहीं थी चित्रा ने। उधर चित्रा की नजर जैसे ही युग के खड़े लंड पर पड़ी तो वो बोली, “क्या हुआ प्यारे पतिदेव, खड़ा हो गया? आ जाओ फिर वहां क्यों बैठे हो, चूत तो यहां है, बिस्तर पर।”
पक्का ही चित्रा पर दारू का नशा हावी था।
युग उठा और जा कर चित्रा के चूतड़ों के नीचे तकिया सरका कर चूत ऊपर उठाई और लंड अंदर डाल कर चुदाई शुरू कर दी। इस बार तो लग रहा था युग सही चुदाई कर रहा था। चित्रा ने पीछे से टांगें डाल कर युग को जकड़ लिया। युग ने भी चित्रा को बाहों में ले लिया।
पति पत्नी की ये वाली चुदाई देख कर सच में ही मेरे मन को बड़ी तसल्ली सी हुई। युग जोर-जोर से धक्के लगा रहा था और चित्रा मस्ती में सिसकारियां लेते हुए चूतड़ घुमा रहे थी।
दस मिनट की चुदाई के बाद युग के धक्के एक-दम तेज हो गए, और फिर एक जोरदार आवाज “आअह चित्रा ले निकला तेरी चूत में” के साथ युग का लंड पानी छोड़ गया।
चित्रा ने भी एक बार जो से चूतड़ घुमाये और एक जोर की सिसकारी लेते हुए मेरी तरफ देखते हुए बोली, “राज तेरे लंड का क्या हाल है? अगर खड़ा है तो आजा मेरा पानी छुड़ा दे, बस अटका ही हुआ है। एक मिनट भी नहीं लगने वाला। बस दो चार तगड़े धक्कों की ही जरूरत है। आजा और कर दे मेरी चूत का कल्याण।”
ये सुन कर युग ने लंड चित्रा की चूत से बाहर निकाला और चित्रा के पास ही लेट गया।
चित्रा और युग की मस्त चुदाई देख कर मेरा लंड तो खड़ा ही था।
मैं खड़ा लंड लेकर चित्रा के ऊपर गया और एक झटके के साथ लंड अंदर डाल दिया। मेरे और युग के लंड के पानी से चित्रा की चूत चिकनी हुई पड़ी थी। लंड बिना रगड़ाई के चूत में चला गया। पांच ही मिनट की चुदाई के बाद चित्रा आआह राज आअह युग की आवाजों के साथ झड़ गयी और ढीली हो कर लेट गयी।
— चुदाई का एक दौर पूरा हुआ
जिस तरह चित्रा की चूत ने बार-बार पानी छोड़ा था और चित्रा ढीली हो कर लेटे हुई थी, मतलब चित्रा की तरफ से चुदाई का ये दौर पूरा हो चुका था। मैं भी चित्रा के ऊपर से हटा और जा कर सोफे पर बैठ गया।
पांच-सात मिनट के मजे के बाद चित्रा उठी और वैसी ही लड़खड़ाती आवाज में बोली, “कैसे चुदाई करते हो तुम सालों। मजा आना ही बंद नहीं हो रहा। अच्छा तुम लोग बैठो मैं चूत धो कर आती हूं। भरी पड़ी है साली तुम लोगों के लंडों के पानी से।”
ये कह कर हल्के लड़खड़ाते क़दमों से कमरे के साथ लगे बाथरूम में चली गयी। कुछ देर बाद बाहर निकली और बिना किसी की तरफ देखे ड्राईंग रूम में चली गयी।
चित्रा के ड्राईंग रूम की तरफ जाने से मैंने सोचा चित्रा अपने कपड़े लेने गयी होगी, मतलब आज के चुदाई पूरी हुई।
मैं भी बाथरूम गया और पेशाब करके वापस आ गया। मैं आ कर सोफे पर बैठा और युग अंदर बाथरूम में चला गया। शायद युग ने भी वही सोचा होगा जो मैंने सोचा था – मतलब आज के चुदाई पूरी हुई।
— चित्रा उठा लाई व्हिस्की की बोतल
मगर कितना गलत सोच रहे थे मैं और युग। जैसे ही हमारी नजर ड्रांईग रूम से बाहर आते चित्रा पर पड़ी, हम हैरान हो गए – कम से कम मैं तो हैरान हुआ ही।
चित्रा ड्राईंग रूम से ट्रे में रक्खे हुई व्हिस्की की बोतल और गिलास उठा कर ला रही थी।
मैंने कहा, ” क्या हुआ चित्रा और पीनी है? तुझे तो पहले ही नशा हुआ पड़ा है।”
चित्रा उसी लय में मुझसे बोली, “रहने दे रहने दे तू राज। घंटे का भी नशा नहीं हुआ है मुझे। बोतल और गिलास उठा कर लाई हूं कि नहीं? मेरे हाथ से ट्रे फिसली क्या? इतना भी नशा नहीं हुआ मुझे जितना तू बोल रहा है।”
चित्रा सामने ही सोफे पर बैठ गयी और तीनों गिलासों में व्हिस्की डाल दी। अपने गिलास में पेप्सी डाल कर व्हिस्की पीती हुई इधर उधर देखते हुए बोली, “वो कहां गया मेरा पति परमेश्वर।”
मैंने कहा, “बाथरूम गया है मूतने।”
चित्रा को ये पूछे हुए अभी आधा मिनट भी नहीं हुआ होगा कि चित्रा फिर बोली, “इतनी देर बाथरूम में? देख कर आती हूं साला मुट्ठ ही तो नहीं मारने लगा। अभी एक चुदाई और करनी है उसने। मुट्ठ मार कर लंड ढीला कर लिया तो चुदाई क्या इसका बाप करेगा?” ये बोलते हुए चित्रा खी खी खी करके हंस दी।
फिर मेरे खड़े लंड को देख कर बोली, “तेरा तो मस्त खड़ा है भोसड़ी वाले।”फिर लड़खड़ाती आवाज में चित्रा बोली, “आज एक बात सच सच बता राज, तेरा ये लंड कभी बैठता भी है या ऐसे ही खड़ा रहता है। मैं तो जब भी देखती हूं ये खड़ा ही होता है।” ये बोल कर चित्रा अपनी ही बात पर हंस दी।
जिस तरह बात बात पर चित्रा हंस रही थी, पक्की बात थी चित्रा को चढ़ गयी थी। चित्रा युग को देखने जाने लिए उठी ही थी की युग बाथरूम से हिलता-डुलता आ गया।
युग का लंड खड़ा तो नहीं था, मगर बैठा भी नहीं था। मेरे तजुर्बे के हिसाब से युग ने मुट्ठ नहीं मारी थी। मगर चित्रा? वो तो उस वक़्त पूरे सुरूर में थी। युग को आते देख एक-दम से बोल पड़ी, “युग मुट्ठ तो नहीं मार कर आया बाथरूम से?”
सकपकाया सा युग बोला, “नहीं नहीं चित्रा, मैं तो पेशाब करने गया था। साला पेशाब निकलना बंद ही नहीं हो रहा था।”
युग आ कर मेरे पास ही बैठ गया और मेरे लंड को देख कर बोला, “ये क्या तेरा तो अभी भी खड़ा है।” ये कह कर युग ने मेरा लंड पकड़ लिया और हल्का-हल्का दबाने लगा।
मैंने सोचा चित्रा की सामने ये क्या कर रहा है युग? क्या युग के अंदर का गांडू जाग रहा था?
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